माया महाठगिनी .... त्रिगुण फाँस लिए
आधुनिक युग पार्टी युग है चाहे वह किट्टी पार्टी ही क्यों न हो. जिसमे केवल वह महिलाएं जाती हैं जिन्हें करने को और कुछ नहीं होता व समय काटे नहीं कटता है. इनके पति बड़ी राष्ट्रीय समस्याओं को हल करने हेतु जूझ रहे होते हैं ( या इस भ्रम में रहते हैं ) किटी पार्टी कि हर सदस्या को यही लगता है कि उनके पति के कन्धों पर ही देश चलता है. रक्तचाप, मानसिक दबाव, मधुमेह, ह्रदय रोग ये सब अच्छे भले न हों मगर हाई एक्ज्युकिटीव रोग हैं. इनसे सोसायटी में एक स्टेटस बनता है. इनमें से कोई रोग न जो तो आपके ‘वो’क्या ख़ाक ऑफिसर हैं. किटी पार्टी की तरह पुरुषों के पास स्टेग पार्टी हैं जिसमें वे ही होते हैं मगर उसका जिक्र फिर कभी. यहाँ इतना जानना काफी है कि ऐसी पार्टियों में बेशुमार दारू और दफ्तर की बातें होती हैं.
बात रिश्वत की हो रही थी. पार्टी, ट्रीट, केपिटेशन फीस, गुडविल मनी, वायिन्डिंग अप मनी, किकबेक मनी, (बोफोर्स याद कीजिये) सब स्त्रीलिंग हैं. ये सभी शब्द रिश्वत के बिगड़े-संवरे रूप को आगे बढाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. ‘सुपारी’ पनवाडियो से अपराधियों तक, लंबा सफर तय करके पहुंची है. इसी प्रकार जुर्म के अंधियारों से बहुत से व्यक्ति विशेष निकल कर सत्ता के गलियारों में चहलकदमी करते नज़र आते हैं और हो भी क्यों न, क्या आपने मल्टी डिस्प्लिन स्किल या ले मैन की भाषा में ‘जेक ऑफ आल ट्रेड’ का नाम नहीं सुना है. यह हमारी कृतघ्नता नहीं तो और क्या है हमें तो उलटे ऐसे नेताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए जो हमारे व देश के भले के लिए खुद अपराध की दुनियां में रह कर आते हैं ताकि उन्हें फर्स्ट हेंड ज्ञान व अनुभव रहे और कालान्तर में हेंडल करने में परेशानी न आये. जब तक समस्या की सम्पूर्ण जानकारी नहीं रखेंगे तो हल क्या निकालेंगे.
ये ले मैन भी अजब शै है. गाँव में चैन नहीं मिला तो खेती-बाडी छोड़ डिग्री बगल में दबाए आ पहुँचे निकट के नगर में,नगर वाले दौड़े गए और बस गए महानगर में जहाँ कुर्सी मेज की तरह उनके मूल्य भी फोल्डिंग हो गए. ये तो भला हो खाड़ी के शेखों का उन्होंने दनादन हमारे डॉक्टर,नर्स, ऐक्ट्रेस, गवर्नेस सबको अपनी सेवा में ले लिया और उनका मुंह पैसे से भर दिया. ( अब पता चल आपको खाड़ी से लौट के लोग क्यों फूले फूले फिरते हैं ) उन्होंने तो हमारी गरीबी और जनसँख्या की समस्या पर तरस खा कर ऊँट दौड भी शुरू कराई थी. मगर सरकार को यह कतई मंजूर नहीं कि हमारे बच्चे दूसरे देशों में जाकर मरें और हमारी बदनामी हो.फिर यहाँ हमारे ढाबे, कालीन,माचिस उद्योग का क्या होगा, कभी सोचा है ? हमें सिखाया भी यही गया है ‘रूखा सूखा खाय के ठंडा पानी पी’
रिश्वत का स्त्रीलिंग होना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि इसकी पैठ गहरी करने के लिए भाषाविज्ञों की काफी सोची समझी कारगुजारी है. अगर यह महज़ इत्तेफाक है तो कितना हसीन इत्तेफाक है. आपको नहीं लगता ? पुराने समय के होस्टलों में लड़कों के कमरों में बिल्ली का घुसना भी ‘शुभ’ माना जाता था.
इसे न भगाओ ये मेरी किस्मत के पाए हैं
बड़ी मुश्किल से मेरे कमरे में ज़नाने पैर आये हैं
बस रिश्वत के ज़नाने पैर जिस घर में पड़ गए वहां ईमानदारी से इसका सौतियाडाह हो जाता है.
आज का युग विज्ञान का युग है. यह सुनते-सुनते आपके कान पक गए होंगे. समाचारपत्रों और टेलीविजन के जरिये मैन इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि आज का युग विज्ञान का नहीं विज्ञापन का युग है. बाज़ार में बेशुमार वस्तुएँ हैं जो गिफ्ट में देने के लिए बनाई गयी हैं. अब चाहे वो चॉकलेट हो, ड्राई फ्रूट का डिब्बा हो, महंगी डायरी या डॉल हो. समय के साथ चलो. काम के मुताबिक़ काम के आदमी को गिफ्ट दीजिए और ‘मेरे बिगड़े संवारो काज’ की लय ताल पर अनवरत नाचते रहिये. आपको ‘गोपाल’ कब तक बिसरायंगे. आखिर गोपाल भी जानते हैं कि जैसे ‘मन नहीं दस बीस’ वैसे ही आप जैसे काम के आदमी भी दस बीस नहीं. हों भी तो आपकी बराबरी थोड़े ही कर सकते हैं. उन्होंने ये लेख कहाँ पढ़ा है.
(व्यंग संग्रह ‘मिस रिश्वत’ से )
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