जिन्हें पता न हो उनकी मालूमात के लिए बता दूँ कि ‘बो’ अमरीकी राष्ट्रपति के कुत्ता आई एम् सॉरी श्वान श्री का नाम है. पुलिस के कुत्तों को कुत्ता कहना बैड मैनर्स में आता है. उन्हें श्वान कहा जाता है. फिर अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्क के कुत्ते को क्या कहेंगे. मित्र लोग जब तक इस पर सेमीनार और पेनल डिस्कसन करें अपन अपनी सुविधा के लिए मिस्टर बो से काम चला लेते हैं
बहुत दिनों से यह खबर मीडिया में गर्म थी कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय वार्तालाप के लिए मि. बो हिन्दुस्तान आएंगे. उन्होंने अखबार में पढ़ा था कि भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में कुत्ताधिकारों का बहुत हनन हो रहा था. यहाँ कुत्ता अधिकारों के हित में काम करने वाली गैर सरकारी संस्थाओं और नेताओं का मखौल उडाया जाता है. कैबिनेट रेंक तो दूर,अत्याचार यहाँ तक है कि उन्हें टी.वी. के विभिन्न चैनलों पर प्राइम टाइम में कुत्ता अधिकारों पर बोलने के लिए समय भी नहीं दिया जाता है. इन सब बातों से अमेरिका को चिंता होना स्वाभाविक थी. अतः यह निर्णय लिया गया कि हिंदुस्तान में एक शिखर वार्ता का आयोजन किया जाये. एशिया के कुत्तों में शांति और समृद्धि के लिए आसान ऋण,अनुदान तथा अन्य सहायता योजनाओं की शुरुआत की जाये. मि. बो को बहुत दुःख हुआ जब उन्हें पता लगा कि क्लब,पार्लर और डिस्को तो दूर,हिंदुस्तान में कुत्तों के लिए बेसिक सुविधाएँ यथा एयर कंडीशन घर ,कार, दूध, फल, बिस्कुट,पिजा, बर्गर, मटन, विटामिन, टॉनिक आदि का नितांत अभाव है . कुपोषण के शिकार ये कुत्ते एडल्ट होने से पहले ही स्किन डिजीज जैसी मामूली बीमारियों से ही दम तोड़ देते हैं. उन्हें जीवन रक्षक दवाइयां भी मुहैय्या नहीं हैं. मि. बो को यह जानकार गहरा आघात लगा और ताज्जुब हुआ कि हिंदुस्तान में सब लोग आदमियों का डॉक्टर ही क्यों बनना चाहते हैं. उस में दाखिला न मिले तो वे दांतों का डॉक्टर बनना पसंद करते हैं वो भी आदमियों के दांतों का. इसके बाद कहीं जाकर कुत्तों के डॉक्टर बनने की सोचते हैं.
आनन फानन में कार्यक्रम तय करके वाशिंगटन डी.सी. में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गयी.मि. बो के हिंदुस्तान में रह रहे ‘पुअर ब्रदर्स’ की कंडीशन फर्स्ट हेंड जानने की मंशा सार्वजनिक कर दी गयी. तमाम पत्रकारों और टी.वी. चेनलों ने इसे बड़ी बड़ी हेड लाइनों में जगह दी. सेवानिवृत राजनयिकों ने इस बारे में अपने दृष्टिकोण दिए. सिवाय विपक्ष के सभी ने इसका गर्मजोशी से स्वागत किया व अमेरिकन तथा हिन्दुस्तानी कुत्तों के बीच एक नए युग का सूत्रपात बताया. रूस के प्रवक्ता ने कहा कि इससे विश्वशांति में एक नया अध्याय जुडेगा. उन्होंने कहा कि विश्वशांति और विकास में कुत्तों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता और कैसे रूस ने अंतरिक्ष में सबसे पहले कुत्ते ‘लायका’ को भेज कर अंतरिक्ष अनुसंधान को एक नयी दिशा दी थी.
मि.बो की यात्रा से पहले खोजी कुत्तों का एक दल अमेरिका से इंडिया आ पहुंचा था. यह दल सूंघ-सूंघ कर मि.बो के कार्यक्रम स्थलों और रास्तों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजामों से आश्वस्त हो रहा था.भारत सरकर अलग कन्फ्यूज थी कि मि.बो को एयर पोर्ट पर रिसीव कौन करेगा. जिन कुत्तों की अंग्रेजी अच्छी थी वे खालिस इंडियन न थे. एक-दो पीढ़ी पहले ही इंडिया की सिटीजनशिप लिए थे.अतः अलसेसियन,बुलडौग, शैपर्ड, पूडल, टेरियर और डॉबरमैन रूल आउट करने पड़े. यह तय हुआ कि इन सभी को शाम को ‘स्टेट बैंक्वट में बुला लिया जायेगा. देसी कुत्तों को ढूँढने चले तो राजधानी में एक भी न मिला पता लगा सब खदेड़ कर ‘कंट्री साइड’ भेज दिए गए हैं. जहाँ वे तथा उनकी अगली पिछली पीढ़ी बंधुआ मजदूरों की तरह भूखे मरने को विवश थी. आखिर दिल्ली की एक गन्दी स्लम बस्ती में एक देसी कुत्ता ‘मोती’ मिल ही गया. उसे ही सॉना बाथ दिला कर पार्लर से फेशियल आदि कराकर ए.सी. कार में एअरपोर्ट ले जाया गया. उसे यह ताकीद कर दी गयी थी कि वह बेकार की भों भों न करे. यह पूरे मुल्क की इज्ज़त का सवाल है. मोती उस वर्ग का कुत्ता था जो आज भी मुल्क के नाम से इमोशनल हो जाया करते हैं.
मि. बो जब एअरपोर्ट पर उतरे तो मोती ने बड़ी ही गर्मजोशी से पूंछ हिला हिला कर उनका स्वागत किया और प्रोटोकोल की परवाह किये बिना इधर-उधर मुंह मारना,सूंघना शुरू कर दिया. सारे रास्ते मि. बो की बातचीत में मोती पहले रटवाये गए शब्द ही बोलता रहा “ याह.. याह ..., आई सी...., यू नो....एक्सक्यूज मी...” मि. बो न कहा “इट्स वैरी वार्म आउट हीयर “ मोती खींसे निपोरते हुए बोला “ओ याह...याह “ मि. बो ने कहा “ आई लव इंडिया “ मोती ने कहा “ थेंक यू ..थेंक यू “
रात को स्टेट बैंक्वट से पहले कई समझौतों पर हस्ताक्षर होने थे जिनके विषय में मोती को न तो तकनीकी जानकारी थी और ना उसे यह सामान्यज्ञान था कि किस सौदे में कितनी ‘किकबैक’ कमीशन होती है. ये सब काम विशेषज्ञों पर छोड़ दिया गया था. मोती को अपनी हालत पर तब और रोना आया जब उसे ‘स्टेट बैंक्वट में नहीं बुलाया गया. कारण वही, न उसे अंग्रेजी बोलनी आती है न उसे पश्चिमी सभ्यता के अन्य रंग ढंग आते हैं. यहाँ तक कि छुरी-काँटे से खाना भी नहीं आता. ‘मुंसिपालटी’ की एक गाडी मोती को उसकी गन्दी बस्ती में चुपचाप छोड़ आई थी. मि. बो को कह दिया गया कि श्री मोती अचानक ‘इनडिस्पोज्ड” हो गए हैं.उनकी जगह भारत की ओर से मिस्टर अल्सेशियन जो दिखने में हिदुस्तान की तरह बड़े हैं, अंग्रजों की तरह अंग्रेजी बोलते हैं, चाल-ढाल में भी अंग्रेजी तबियत के हैं वार्ता जारी रखेंगे. मि. बो ने कहा “ ओह आई एम् सो सॉरी टू हियर दिस”
बस, तब से मेरे भारत महान और उसके तमाम मोतियों के फैसले मि. अल्सेशियन ही कर रहे हैं
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