Ravi ki duniya

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Sunday, June 11, 2023

व्यंग्य : सेफ़्टी-फंड, फुट मसाजर, क्रॉकरी और विंटर जैकिट

 

सुनने में आया है कि ऑडिटर्स ने एक रपट दी है जिसके अनुसार रेलवे को जो फंड सेफ़्टी के नाम से दिया था उससे रेलवे ने फुट मसाजर, क्रॉकरी और विंटर जैकिट खरीद ली हैं। इस बात को इस तरह से पेश किया गया है जैसे कि इन चीजों का रेलवे सेफ़्टी से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि ऐसा नहीं है। मैं साबित कर सकता हूँ कि तीनों ही चीज़ें रेलवे की सेफ़्टी के लिए अनिवार्य हैं। इनमें से एक का भी न होना सेफ़्टी के साथ खिलवाड़ है। सेफ़्टी को नज़र अंदाज़ करना है।

 

           आप अपने घर में फुट-मसाजर पता नहीं रखते हैं या नहीं। नहीं रखते तो कभी न कभी अपने बच्चे, अपने छोटे भाई या अपने किसी न किसी पारिवारिक सदस्य को अपने शरीर पर खड़ा कर दबवाते तो होंगे। जो दबवाते हैं उन्हे यह भान है कि इससे कितना आराम मिलता है। कितनी स्फूर्ति मिलती है। और आप पुनः काम पर जाने को तैयार हो जाते हैं। ऐसी ही कुछ ताज़गी का संचार होता है। अब बात लीजिये रेलवे के सेफ़्टी स्टाफ की। वे बेचारे सर्दी-गर्मी, बारिश-लू, रात-दिन पेट्रोलिंग करते हैं। एक ट्रैक मेंटेनर कितना पैदल चलता है आपको अंदाज़ा भी नहीं होगा। अतः फुट-मसाजर कोई आराम की या विलासिता की वस्तु, यंत्र या उपकरण नहीं बल्कि एक आवश्यक किट है। मैं तो कहूँगा अनिवार्य है।

 

        अब बात करते हैं क्रॉकरी की। भई इंसान ड्यूटी पर चाय-पानी पिएगा या नहीं। जब हाड़ कंपाने वाली ठंड पड़ती है, जब कप में डालते-डालते चाय ठंडी हो जाती है, जब हाथ जेब से बाहर निकालना भी दूभर होता है ऐसे में कोई गरीब क्रॉकरी में चाय-पानी भी न पिये। या क्या आप उसको यह कहेंगे कि कप-प्लेट चम्मच गिलास अपने घर से लेकर आओ या कहोगे कि जाओ ड्यूटी छोड़ो अपने घर से चाय-पानी पी कर आओ।सेफ्टी के साथ खिलवाड़ तो आप कर रहे हैं। सर जी ! क्रॉकरी उतनी ही ज़रूरी है सेफ़्टी के लिए जितने अन्य कोई हाई-फ़ाई उपकरण। आप इसे नज़र अंदाज़ नहीं कर सकते। याद है न एक कील की वजह से युद्ध हार गए थे। (बैटल वाज लॉस्ट ड्यू टू ए नेल) तो कप-प्लेट को आप इतने हल्के में न लें प्लीज़। कप यानि प्याले पर उर्दू शायरी में दीवान के दीवान लिखे जा चुके हैं। क्या उमर ख़ैयाम,

क्या मधुशाला। कप अर्थात प्याले से शुरू हो प्याले पर खत्म हैं। कभी एक प्याली चाय सेफ़्टी स्टाफ के साथ पी कर तो देखें आपको यकीन आ जाएगा क्रॉकरी की महत्ता का।

            अगली मद है विंटर जैकिट की। यह भी खूब रही। आप क्या चाहते हैं बेचारा गैंगमैन ठंड से ठिठुर कर ही मर जाये। आप तो अपने ड्राइंग रूम में बैठे हैं, हीटर लगा कर। उस बंदे से पूछो जिसे पूरी रात दिसंबर की सर्दी में खुले आकाश के नीचे पेट्रोलिंग करनी है। सिग्नल देना है। लैवल क्राॅसिंग गेट को हर ट्रेन के लिये बंद करना, खोलना है। लाइन क्लियर देनी है। यह ऑब्जेक्सन वगैरह लगाना आसान है ज़मीनी हक़ीक़त जानना भी ज़रूरी होता है सरकार। जिन्हें लगता हो आवश्यक नहीं है उनको मुझे याद है जब एक बार जॉर्ज फर्नान्डिज़ के रक्षा मंत्री के टाइम पर जब उनके मंत्रालय में से किसी ने सेना के लिए विंटर जैकिट पर आपत्ति की थी उन्होंने उस स्टाफ को बार्डर पर भेज दिया कहा कि खुद देख कर आओ, महसूस करके आओ, ज़रूरत है या नहीं। कहना न होगा कि तुरंत आनन-फानन में सब आपत्तियां उसी तरह पिघल गईं जैसे सूर्य के आने से स्नो पिघल जाती है।

 

        एक फुट- मसाजर को छोड़ भी दें तो बाकी चीज़ें इन पर अंग्रेजों के ज़माने से हैं। वो तो उन्होने आपसे फुट-मसाजर भी नहीं मांगना था। आपने अर्थात आपके अधिकारियों ने ज़रूरी समझा होगा तब न सैंक्शन किया होगा। एक कारण यह भी है कि अब आपने भर्ती तो लगभग-लगभग बंद ही कर दी है। अतः आपके ये फुट-सोल्जर अपने फुट की मसाज किस से कराएं ? पहले तो केजुअल लेबर होती थी, खलासी होते थे  प्यून होते थे। आपने सब बंद कर दिये। अब आपकी 'अच्छी नज़र' इन चरण दासों के चरणों पर बोले तो फुट-मसाजर पर है। क्या यह भारत जैसे विश्वगुरु को शोभा देता है कि जिसके चरणों में विश्व लोटने को लालायित हो उसके कर्मयोगियों को फुट मसाजरों के लिए तरसना पड़े।

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