अब समय
आ गया है कि नकल योद्धाओं को समाज में, व्यवस्था में उनको उनका
ड्यू दिलाया जाये। नकल के उद्यम में लगे लोगों को इंडस्ट्री का दर्जा दिया जाये।
उनको पेंशन, प्रोविडेंट फंड
मेडिकल जैसी सुविधाएं मुहैया कराई जाएँ। यह अब कोई कुटीर उद्योग या लघु उद्योग
नहीं रह गया है बल्कि एक विशाल उद्योग होयला है जिसमें लाखों लोग रोज़गार में हैं
और नकल उद्योग से अपनी आजीविका चला रेले हैं।
यह
पुराना समय नहीं है जब बस कुछ फर्रे या चिट से काम चल जाता था। अब पूरी की पूरी
बुक रखने से भी काम नहीं चलेगा। अन्य फील्ड्स की तरह यह फील्ड भी एकदम हाईटैक हो
गया है। एक बार मुझे एक क्रिमिनल लाॅ के वकील साब से मिलवाया गया जिनके बारे में
मशहूर था कि वो पूरे केस का ठेका उठा लेते हैं। मुझे कनफ्यूज देख उन्होने बताया वो
पुलिस थाने से ही काम करते हैं। एफ. आई. आर. बदलवाना उसमें दफा चेंज करना, दफा हटाना, केस में लूपहोल छोड़ना
आदि। एकदम ग्रासरूट एप्रोच है। उसी तरह नकल का काम बहुत मेहनत का काम है। पेपर लीक करना आसान नहीं होता। बहुत परसिवरेंस
चाहिये। बिलकुल हिन्दी फिल्म के इश्क़ में पागल लड़की के अमीर बाप की तरह कहना होता
है:
"इस
सूटकेस में इतने पैसे हैं ... ये ब्लैंक चैक़ है इस चैक़ पर जो चाहे रकम भर लो और
प्रश्नपत्र वाला एक पेज़ मुझे दे दो
ग्यारह क्या ? इक्कीस मुल्क़ों
की पुलिस भी तुम्हें ढूंढ नहीं पाएगी। पचास खोखे...ऑल ओ. के. ?"
उनका काम एकदम कॉर्पोरेट स्टाइल का हो गया है। मार्केटिंग, लॉजिस्टिक, एकाउंट्स, टेक्निकल टीम, एच. आर. आदि।एच. आर. को सॉल्वर एंगेज करने पड़ते हैं उनका सी. टी. सी. तय करना होता है। एग्रीमेंट साइन कराना आदि आदि। उसी तरह मार्केटिंग टीम को उम्मीदवारों को झूठी-सच्ची उम्मीद दिला दिला कर बीमा एजेंट की तरह शीशे में उतारना पड़ता है। फीस तय करनी होती है। फीस का स्ट्रक्चर फ्लेक्सिबल रखा जाता है। किसी से कुछ, किसी से कुछ, एक की दी हुई फीस दूसरे से काॅन्फीडेंशियल रखी जाती है। लाॅजिस्टिक वाले साॅल्वर को समय पर सेंटर पर पहुंचाने का काम करते हैं। उनके आराम का ध्यान रखते हैं। फाइव स्टार होटल में उन्हे रुकवाया जाता है। और उनके विज़िट को पूरी तरह सीक्रेट रखा जाता है। वैसे सिंगल विंडो पॉलिसी के अंतर्गत ये लोग मेडिकल आदि भी कराते हैं नहीं तो एक्स-रे वालों ने ही गड़बड़ बता कर आपको फेल कर देना है।
अपने
नवीनतम डायवर्सिफिकेशन प्लान में ये अब जनरल को एस. सी., एस. टी., ओ. बी. सी. सर्टिफिकेट भी
उपलब्ध कराते हैं। ए टू ज़ेड सर्विस, कंप्लीट सैटिस्फैक्शन गारंटीड, सबका अलग- अलग रेट है। ई.
डब्लू. एस. वालों के लिए आसान ई. एम. आई. का भी इंतज़ाम है। ई. एम. आई. रिकवरी की
टेंशन नहीं, बस एक कम्प्लेन्ट
और नौकरी गई, पोलिस का लोचा
अलग।
मेरा
सरकार से निवेदन है। निवेदन क्या आग्रह है। इस उद्योग में लगे लोगों की सुधि लें।
उनकी सर्विस कंडीशन सुधारें। निष्पक्ष देखे ! वे कितने पुण्य का काम कर रहे हैं।
आपके इंटरव्यू खत्म कर देने से इनके ऊपर कितना लोड आ गया है। अब सारा दारोमदार
लिखित परीक्षा पर ही है। बेचारे हमेशा प्रेशर में रहते हैं। कभी इस परीक्षा का
पेपर आउट कराओ, कभी उस परीक्षा
का। 24 बाई 7 काम, काम, काम। ये उच्च शिक्षित बेरोजगार साॅल्वर्स को बड़ी
तादाद में नौकरी दे रहे हैं। जिन्हें आप नालायक बेरोज़गार कहते हैं उनको वो 'लायक' बना आपके दफ्तरों में
बाबू, स्कूलों में टीचर, अस्पतालों को नर्स, डॉक्टर, इंजीनियर दे रहे हैं। दे
रहे हैं कि नहीं ?
खाली-पीली योद्धा कहने भर से योद्धा नहीं हो जाते हैं आप खुद देखें कितनी मेहनत का काम है। साला ! ये सोशल-सर्विस कभी किसी युग में आसान नहीं रही। कृपया इस असंगठित क्षेत्र की और उपेक्षा न करें।
नकल योद्धा
ज़िंदाबाद!
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