(आधा दर्जन रेलवे स्टेशन उरण लाइन पर उदघाटन का इंतजार कर रहे हैं। नेता कोई खाली नहीं है --एक समाचार)
एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं
दूर ढूंढो पास मिलते हैं
मेरे को तो त्रास हो गया। खरच
सांगतो। हे काय साहेब ? आधा दर्जन तो
रेलवे स्टेशन ही उदघाटन को तरस रेले हैं। क्या धरती वीरों से खाली हो गई। आई मीन
! क्या अपने सूबे में नेताओं का अकाल आ
गया है। हम तो सुनते थे अकाल लाटूर में आता है। आप मेरे को बोलो साहेब ! येतो मी।
हरकत नहीं। ताबड़तोड़ सभी स्टेशनों का करुन टाकतो। करायचा काय हे ? फक़त झंडी हिलानी है। काय साहेब जहां पूरी
की पूरी सरकार को हिलाया जा सकता है वहां झंडी की क्या बिसात। मुझे याद पड़ता है
जब बान्द्रा सी-लिंक का उदघाटन था तो मंच पर कितनी गरदी थी। क्या नेता, क्या अभिनेता, सभी तो मंच उभय बसले होते। फोटो गिराने के वास्ते। काम के
वक़्त एक नज़र नहीं आयेगा। यह तो वही बात हो गई कि इतनी मेहनत लगा कर हीरो बने अब
उनसे ही नजरें चुरा रहे हैं। मोठे-मोठे गागल लगा के।
आप हुकुम करो। मैं
अगले दिन ही पहुंच जाऊंगा। लौटती डाक से सूचित करना। नवीन कुरता - पायजामा सिलने
को देना है। गले के दो-चार पटकों का आप इंतजाम करके रखना। पता नहीं मेरे
पहुंचते-पहुंचते कौन से रंग/ढंग का पटका पहनना पड़ जाये।
घाबरु नका। मी लवकर येतो साहेब।
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