अकबर इलाहाबादी साब की एक ग़ज़ल ग़ुलाम अली जी ने गाई है:
हंगामा है क्यूँ
बरपा थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है
नेता जी ने कहा है कि भला सूबे के हालात के लिए वो क्यूँ
रिजाइन करें। उन्होने कोई चोरी तो नहीं की है। भई सूबे में अगर अमन-चैन नहीं है, परस्पर लड़ाई, मार-काट और आगजनी मुसलसल
चल रही है, लोगों को ज़िंदा जलाया जा
रहा है। उनके घर जला दिये गए हैं। यह खुले आम कहा जा रहा कि नेता जी दो समुदायों
में से एक का पक्ष खुला-खुला ले रहे हैं। मगर नेता जी का कहना है कि इससे
क्या...कुछ तो लोग कहेंगे। लोगों का काम है कहना। मगर फिर वही बात, मैं रिजाइन क्यूँ करूँ ? मैंने कोई चोरी तो नहीं की
है।
पहले ऐसा नहीं था। लाल बहादुर शास्त्री जी
ने नहीं कहा कि मैं रिजाइन क्यूँ करूँ ? मैं क्या रेल चला रहा था ? रेल ड्राइवर चला रहा था, रिजाइन
करे तो वो करे, रेल चलाने में मैं कहाँ से आ गया। इसी तर्ज़
पर नेता जी ने कहा है कि सूबे में मार-काट मची है तो इसमें मेरा क्या दोष ? मैं तो नही कर रहा और ना ही मैंने चोरी की है। दूसरे शब्दो में अगर मैंने
चोरी की है तो मैं रिजाइन करूंगा नहीं तो नहीं। ‘नो चोरी-नो
रिज़ाइन’। मार-काट, रेप, घर जला देने पर अगर रिजाइन करने का चलन चलेगा तो किस सूबे के नेता महफूज
रह पाएंगे। कोई ग़लत चलन नहीं चलाना है। शास्त्री जी ने गलत परंपरा डाल दी। आज तक हम
लोगों को उनका उदाहरण देकर उलाहना दिया जाता है, हम बहादुर हैं
हम डट कर सामना करेंगे। रण मैदान से भागेंगे नहीं। कितनी ही मार-काट मचे, कितनी ही रेल दुर्घटनाएँ हों। और फिर ये बताइये रिज़ाइन करना किस चीज़ का इलाज़ है ? मेरी जगह जो आयेगा वो भी तो आदमी ही होगा ना। कोई मंगल ग्रह से तो आयेगा नहीं।
वो मेरे रक़ीब पर थे क्यूँ इतने फिदा
आखिर वो
भी मेरी तरह इंसा निकला
वैसे ऐसा नहीं है कि नेता जी
हमेशा से ऐसे थे। असल में तो एक बार वे रिज़ाइन करने का मन बना चुके थे। मगर उनके सपोर्टरों
को पता चल गया और वो आनन-फानन में उस कागज को ही लेकर दौड़ गए जिस पर उन्होने रिज़ाइन लिखना था। बशीर बद्र साब ने एक जगह लिखा था:
मुझे
लिखने वाला लिखे भी क्या मुझे पढ़ने वाला पढ़े भी क्या
जहाँ मेरा नाम लिखा गया वहीं रौशनाई उलट गई
यहाँ तो अगले कागज ही ले उड़े। तब
से दूसरा कागज़ ढूंढ रहे हैं मगर मिला नहीं। हाँ इस बीच ये ज्ञान ज़रूर हुआ कि आखिर
रिजाइन क्यों किया जाये। कोई
चोरी तो नहीं की है। जैसे अकबर इलाहाबादी साब ने शराब ही तो पी थी और वो भी थोड़ी
सी। फिर हंगामा क्यूँ। नेता जी ने चोरी तो नहीं की फिर रिज़ाइन क्यूँ ?
वो असल बहादुर हैं। वो उनमें से
नहीं जो अपनी जिम्मेवारी से मुंह मोड लें और
भाग खड़े होते हैं। वो डट कर मुक़ाबला करेंगे। मांगने दो रिज़ाइन अगर दुनियाँ रिजाइन
मांग रही है। ये होते कौन हैं मुझ से रिज़ाइन मांगने वाले हो न हो ये विपक्ष की कोई
चाल है। मैं भी कहने वाला हूँ “जाओ जाकर पहले उस से साइन ले कर आओ जिसने मेरे हाथ पर
लिख दिया कि.... फिर भाई तुम जिस कागज पर कहोगे, जहां कहोगे, मैं साइन कर दूंगा”। क्या महज़ मार-काट, असंतोष, रेप, और पूरे सूबे
में आगजनी, पुलिस के हथियार लूट लेने मात्र पर मैं रिज़ाइन कर
दूँ ? ये क्या बात हुई। ऐसे चलती है सियासत ?
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जागो इंडिया जागो ! खेलो इंडिया
खेलो !
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