पुलिस में आप क्यों भर्ती होते हैं? बचपन का एक सपना होता है ! पुलिस बोले तो पाॅवर! पाॅवर बोले तो पैसा। अब पुलिस में अगर किसी को 'लाइट पनिशमेंट' देना हो बोले तो खुड्डे लाइन लगाना हो तो लाइन हाजिर कर दिया जाता है। ऐसा ही एक क्षेत्र है ट्रैफिक पुलिस। उनका एक ही सहारा है। एक ही चलन है वो है चालान।
अब चालान यूं ही तो नहीं हो जाता। आपको बताना पड़ता है कि रेड लाइट जम्प की है या खिड़कियों की शीशे ज्यादा काले हैं। सीट बेल्ट नहीं पहनी। स्पीड लिमिट का पालन नहीं किया। गो कि ले दे कर ऐसे ही आधा दर्जन उल्लंघन है जिसके इर्दगिर्द सारा ट्रैफिक सिस्टम घूमता है। अतः उसी अनुसार ट्रैफिक पुलिस के पास भी यही आधा दर्जन क्षेत्र हैं जहां से उन्होने अपने चाय-पानी का प्रबंध करना है। दूसरे शब्दों में रोज कुआं खोदना है रोज पानी पीना है। भई सड़क पर खड़े हुए बिना आप उल्लंघंकर्ता को पकड़ नहीं पाएंगे। अगर कैमरे ने ही पकड़ना है तो चालान भी कैमरे ने ही ले लेना है यानि 'ऑन-लाइन' होगा। आपका आमना-सामना फ्रेंडली पुलिसमैन से तो हो ही नहीं पाएगा। जब वो नहीं हो पाएगा तो कैसे आप अपने चालान को माफ करा पाएंगे ? कैसे तो ट्रैफिक पुलिसमैन चाय-पानी पिएगा। अपना नहीं तो उस बेचारे ग़रीब का तो ख्याल करो जो सर्दी-गर्मी, बारिश-तूफान की परवाह किए बिना आपकी सहायता को पेड़ की आड़ में कहीं छुपा है या रेड लाइट से टर्न लेते ही तीन-चार की गिरोहबंदी करके खड़े हैं। किसलिए ? सिर्फ इसलिए कि वे आपके किसी काम आ सकें। एक आप हैं जो उन्हीं से नजर बचाते फिरते हो। ये क्या बात हुई? सरकार आपके लिए परिवार नियोजन की एक से बढ़ कर एक योजनाएँ लायी मगर आप उन्हीं योजनाओं से नज़र बचाते घूमते रहे। ये जाने बिना कि असल में ये सब सरकार आपकी भलाई के लिए ही कर रही थी। उसी तरह ये ट्रैफिक पुलिस आपकी सेवा में आपके लिए ही है। स्कूटर- बाइक चला रहे लोग अव्वल तो हेलमेट पहनते नहीं, पहनते हैं तो उसे सर पर धर भर लेते हैं। उसका फीता नहीं बांधते। अब बताओ ऐसे हेलमेट का क्या लाभ ? जैसे पुलिस पर एहसान कर रहे हों। अलबता आप पुलिस के चालान से बच जाते हैं। धीरे-धीरे यह फार्मूला भी बासी हो गया। यानि लोग खुदबखुद फीता भी बांधने लगे। यह तो हद हो गई अब ट्रैफिक पुलिस क्या करे ? कैसे तो आपकी सहायता करे और कैसे अपना अस्तित्व जस्टीफ़ाई करे। उन्होने हार नहीं मानी।
लेटेस्ट खबर यह है कि ट्रैफिक पुलिस अब कार चालकों को भी रोकने लग गई हैं। उनसे पूछने लग पड़ी है उनका हेलमेट कहां हैं ? अब कार ड्राइवर का परेशान होना लाजिमी है। वह सोच रहा है ये कब में हो गया? अब इन बेखबर ड्राइवरों को कौन बताएगा ? अखबार वो पढ़ते नहीं। टी.वी. न्यूज वो देखते नहीं। फिर वो सोचता है हो सकता है उस को पता नहीं चला हो ये भी कोई नया कानून आ गया होगा कि अब कार चालकों को भी हेलमेट पहनना पड़ेगा। आखिर फ़ार्मूला रेस में ड्राइवर हेलमेट पहनता ही है।
उसे यह खुशी का एहसास भी हो सकता है कि गोया अब सरकार उसे भी फार्मूला रेस का ड्राइवर से कम नहीं समझती है। ये क्रेडिट की बात है। वह खुशी-खुशी चालान के नाम पर ट्रैफिक वाले को पैसे देने को तत्पर हो जाता होगा।और खुद जा पहुंचता होगा अपने लिए फार्मूला वन जैसा फैन्सी सुर्ख लाल हेलमेट खरीदने।