व्यंग्य:
सुन कर वाकई बहुत अच्छी सी फीलिंग आई। हिन्दी फिल्मों ने पुलिस की छवि को बहुत हानि पहुंचाई है। हमेशा वारदात के बाद पहुँचती है। फिल्म खत्म होने से जरा सा पहले, ग्रुप फोटो के टाइम पर। यह खबर बहुत उत्साहवर्धक है कि एक सूबे की पुलिस इतनी मुस्तैद हो गई है कि इधर वारदात हुई उधर चार मिनट चौंतीस सेकंड में पुलिस जा पहुंची। एक दम क्लॉक वर्क। जैसे पहले से प्लानिंग कर रखी हो।
पुलिस बल 'क्वान्टिटी' और 'क्वालिटी' दोनों में बड़ी है। आपने सुना होगा प्रति फलां नागरिक ढिकाने पुलिस वाले हैं। एक मकान को 'एक्स' मजदूर 'वाई' दिन में बनाते हैं तो अगर मजदूरों की संख्या दुगनी कर दी जाये तो मकान आधे वक़्त में ही बन जाएगा। करते करते क्या ऐसा भी समय आयेगा कि इतने मजदूर लगा दिये जाएँ कि आप दफ्तर जाते वक़्त देखते हैं कि नींव खुद रही है और शाम को लौटे तो मकान बन के खड़ा है। जाहिर है ऐसा मुमकिन नहीं चाहे कितने भी मजदूर लगा दो। मगर 'प्रीफ़ेब' के इस ज़माने में यह मुमकिन हो भी सकता है। वे बने बनाए दीवारें - छत -दरवाजे - खिड़कियाँ लाते हैं और पलक झपकते मकान खड़ा कर देते हैं।
मैं सोच रहा हूँ यदि पुलिस वारदात के पाँच मिनट से कम समय में पहुँच रही है तो मुमकिन है यदि उनकी मुस्तैदी में और संख्या-बल में वृद्धि की जाये तो ये टाइम इंटरवल और भी घटाया जा सकता है। यह घटाते-घटाते इतना कम रह जाये कि इधर घटना हुई उधर दूसरी तरफ से पुलिस आन पहुंची कुछ-कुछ स्पाइडर मैन या सुपर मैन की तरह। एक शहर में जब चरस की आवाजाही के वक़्त पकड़ धकड़ होने लगी तो यह देखा गया जब उनके 'म्यूल' पकड़े जाते हैं तब भी तो पुलिस को पैसे खिलाने पड़ते हैं माल अलग ज़ब्त हो जाता है। अतः एक हल यह निकाला गया क्यों न चरस पुलिस के माध्यम से ही इधर-उधर कराएं। पैसे तो खर्चने ही हैं। इस तरह चरस सुरक्षित भी रहेगी। भला पुलिस को कौन पकड़ेगा। कुछ इसी तरह अब यह भी योजना हो सकती है कि हर घर में एक पुलिस वाला तैनात कर दो कहीं आप जाओ आपके साथ साये की तरह साथ रहे और इधर कोई भी आपसे दायें बाएँ करे इधर वो थाम ले। इस तरह यह चार मिनट चौंतीस सेकंड का टाइम पीरियड और भी कम लाया जा सकता है। यह काम तो एक मिनट के अंदर अंदर में हो जाएगा। कितने क्रेडिट की बात होगी यह हमारी पुलिस के लिए।
अंग्रेजी में कहावत है 'देयर इज आलवेज रूम फॉर इम्प्रूवमेंट' अतः कम करते करते यह मुमकिन है कि लोग वारदात से पहले पकड़े जाने लगें। हाँ भाई इत आ ! कित वारदात करने चला है ? और खूब धर पकड़ होने लगे। ज़ाहिर है इसमें कुछ निरपराध लोग मासूम लोग भी फंस सकते हैं मगर ये रिस्क तो हमेशा रहता ही है। मासूम तो मासूम है। मासूम को मामू पाँच मिनट नहीं पाँच साल बाद भी बनाया जा सकता है और वो भी पाँच साल के लिये।
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