हमारा नोएडा एक अज़ब-गजब इलाका है। यूं कहने को इसका नाम शांति और अहिंसा के दूत गौतम बुद्ध के नाम पर रखा गया है किन्तु यहाँ इन दो चीजों का टोटा है। आए दिन कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है कि आपको इसके नामकरण पर शंका होने लगती है। नामकरण शांति दूत का किन्तु हम लोग जो लालची हैं, कपटी हैं और परले दर्जे के स्वार्थी हैं। उसका क्या ?
ताज़ा खबर यह है कि एक अर्जुन एवार्डी के पति-देव की चेन पुलिंग हो गई। एक बात समझ नहीं आई, ये इन भाई साहब को क्या पड़ी थी चेन पहनने की। फिर पता चला ये महोदाय खुद भी राष्ट्रीय स्तर की बाॅडी बिल्डर हैं। और तो और सरकारी महकमे में पत्नी जी तहसीलदार हैं। गोया कि अब ना तहसीलदार सुरक्षित हैं ना डिप्टी कलेक्टर।
पता ये चला है कि उस वक़्त ये मैडम पहलवान और उनके बॉडी बिल्डर पति रेहड़ी से गोलगप्पे खा रहे थे। मैं तो इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि बॉडी बिल्डर का और पहलवानों का यूं गोलगप्पे खाना कोई अच्छा शौक नहीं। यह सेहत के लिए मुफीद नहीं। कोई अच्छा उदाहरण सेट नहीं हो रहा होनहार पहलवानों के लिए। वो तो खाने को लेकर कितनी सावधानियाँ बरतते हैं। दूसरे यदि यही सब खाना है तो ये चेन पहनने की क्या ज़रूरत आन पड़ी। अब जबकि पुलिस कहती फिरती है की गहने पहन कर ना निकला करें। रोज़ खबर आती है चेन झपटने की और बातों में लगा कर चेन उड़ा देने की। फिर ये दंपति ने ऐसा क्यों किया। चेन भी छोटी मोटी नहीं उनके अनुसार पूरे तीन तोले की थी और अभी दीवाली पर ही खरीदी थी। ये क्या ? ये चेन तो बेचारी दूसरी दीवाली भी न देख पायी। हाँ मगर झपटमार की ज़रूर दीवाली से पहले दीवाली हो गई। वो गाना है ना ईद से पहले मेरी ईद हुई। अब ये दंपति इधर-उधर गुहार लगाते फिर रहे हैं और कह रहे हैं कि जब नोयडा का ये
हाई-प्रोफाइल इलाका ऐसी वारदातों से अछूता नहीं है तो आगे क्या ?
इससे हमें ये शिक्षा मिलती है कि पुरुषों को, भले वो बॉडी बिल्डर ही क्यों ना हों चेन नहीं पहननी चाहिए।
दूसरे चेन पहन कर गोलगप्पे नहीं खाने चाहिए। नुकसान ही नुकसान है। सवाल आता है कि इंसान चेन पहनना बंद कर सकता है मगर क्या सोना खरीदे भी नहीं ? अगर खरीदे तो फिर उसे रखे कहाँ ? घर में ? क्या वो वहाँ महफूज है ? बैंक के लॉकर मे ? तब क्या बैंक के लॉकर में रखने को खरीद रहे हैं। और तो और ये घटना भावी बॉडी बिल्डर्स के लिए बहुत ही डीमोटिवेटिंग है। वो कहेंगे जब इतना सब करके भी अगर चेन खिंच जाती है तो क्या फायदा ये सब बॉडी बिल्डिंग करने का। इसका बहुत बड़ा खतरा इतने सारे जिम को भी है। इस सब के चलते उनके जिम में कौन आयेगा और क्यूँ आयेगा ? अगर चेन खिंचवानी ही है तो जिम में पैसे कौन दे। अतः मैं तो चाहूँगा कि जिम भी इस वारदात के बाद कुछ सोचें और अपने आपको अपनी टैग लाइन को रि-इनवेंट करें। हमारे जिम में आयें बॉडी बनाएँ फिर मजाल है कोई आपकी चेन पर बुरी नज़र भी डाल पाये। खींचने-खिंचाने की बात तो दूर। रेलवे का अच्छा है आप चेन खींचे तो आप पर जुर्माना हो सकता है। आपको ट्रेन से उतारा जा सकता है आर पी एफ अपनी पर आ जाये तो आपको मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर सकती है और सज़ा भी दिला सकती है मगर गले से चेन खींचने पर ऐसा कोई नियम लागू नहीं होता है। बस एक अदद जिगरा चाहिए। कहीं-कहीं इसे गुर्दा भी कहते हैं। एक बाइक हो, बस हो गया। हमारे भारत महान में नारी गले में कुछ न कुछ ज़रूर पहनती है खाली गला सूना- सूना लगता है। चेन खींचने वाले को भी गली का, सड़क का यही सूनापन सुहाता है।
No comments:
Post a Comment