बचपन में सुनने में अच्छा लगता था कि फलां
बच्चा बहुत स्मार्ट है। स्मार्ट एक ऐसा शब्द था जो ईर्ष्या की हद तक पाॅजिटिविटी
लिए रहता था। काश: हम भी स्मार्ट होते। स्मार्ट लगना हम मिडल क्लास लोगों का एक 'माई एम्बीशन इन लाइफ' टाइप सपना होता है।
इसमें माता-पिता का बहुत हाथ होता था। वे चाहते थे कि बच्चा पढ़ाई करे और बस पढ़ाई
करे। इसके लिए ज़रूरी है कि वह फिल्में ना देखे, वह ज्यादा दोस्त-यारों
की सोहबत में ना रहे। ज्यादा खेलकूद भी वर्जित था और हाँ, बाल बड़े कदापि ना रखे।
अब इतनी सब बन्दिशों के चलते कोई कोई विरला ही स्मार्ट निकल पाता था या अपनी
स्मार्टनेस कायम रख पाता था।
बस सरकार ने और उत्पादकों ने ये बात पकड़
ली। अब फ्रिज स्मार्ट होने लग पड़े हैं। दरवाजे पर ही तफसील लिखी आ जाती है। टी.वी.
स्मार्ट हुआ तो पता ये चला कि केवल हम ही टी.वी. नहीं देख रहे टी.वी. भी हमें
दिन-रात देख रहा होता है और हमारी हर हरकत पर नज़र रखता है। गीज़र स्मार्ट हो गए
हैं पानी गरम होने के बाद अपने आप ऑफ हो जाता है। ए.सी. स्मार्ट हो गए हैं एक
तापमान के बाद खुदबखुद बंद हो जाता है और तापमान फिर बढ़ते ही पुनः चालू हो जाता
है।
बड़ा सवाल ये है कि क्या हम उस अनुपात
में स्मार्ट हुए हैं ? आप कहते नहीं थकते फलां मशीन वर्ड क्लास है पर क्या हम, उन चीजों को बापरने
वाले, वर्ड क्लास हुए हैं या हम अब भी वहीं फंसे हुए हैं। मुझे तो लगता है कि ये महज़
फट्टेबाजी है कि ये मशीन, ये अस्पताल, ये होटल वर्ड क्लास है। इसका मतलब क्या होता है ? यही न कि ये वैसा है
जैसा वर्ड में होता है। बोले तो इंटेरनेशनल टाइप। लेकिन हम तो वहीं के वहीं शुद्ध
भारतीय हैं। उसी तरह जब आप कहते हो कि मेरा शहर स्मार्ट हो गया तो मैं समझता हूँ
कि हवा साफ हो गई होनी है, पानी शुद्ध होगा, जहां मर्ज़ी नल से मुंह लगाओ और पियो। टैक्सी वाला, ऑटो वाला आपको 'चीट' नहीं करेगा। ना लंबे
रास्ते से से ले जाएगा ना ऊलजलूल किराया वसूल करेगा। गली हो या सड़क सब 'सेफ' होगी। रात-बिरात आप
बेधड़क चल फिर सकते हैं। आप बैंक जाएँ आपका काम फौरन हो जाये। आप सरकारी दफ़्तर में
जाएँ आपको सिंगल विंडो के माफिक पूरी तसल्ली से पूरा काम कर दिया जाये। ये नहीं कि
कल आना, परसों आना। सबको पेंशन समय पर मिले। मिलावट का कोई नाम न हो। दूध शुद्ध हो। घी
और मिठाई बिना मिलावट हो। अगर ये नहीं है तो बताओ फिर स्मार्ट है क्या ?
बाज़ार में खीरा जाने कैसा हाइब्रीड आया
है। न कोई खुशबू, ना कोई स्वाद। सब्जियाँ सब इंजेक्शन से चल रही हैं। अस्पताल वाले आपका इंतज़ार
कर रहे हैं कब आप आयें और वो आपका नाम और बीमारी बाद में पूछें, पहले आपको वेंटीलेटर
पर रख छोड़ें। आप ड्राइविंग लाइसेन्स बनवाने जाएँ और बाबू कहे सर ! आपने क्यूँ
तकलीफ की मुझे फोन कर दिया होता हम ड्राइविंग लाइसेन्स हो पी.यू. सी. हो, घर पर ही पहुंचा देते
बस एक मामूली सा सुविधा शुल्क आपसे लेते।
आप चचा ग़ालिब की तरह से सोचें:
मैं ने चाहा था कि अंदोह-ए-वफ़ा से छूटूँ
वो सितमगर मिरे मरने पे भी राज़ी न हुआ
तो हुज़ूर रुकिए ! इतना आसान नहीं। इसमें
भी दुनियाँ भर के रगड़े हैं। आपको डैथ सर्टिफिकेट चाहिए कि नहीं ? तो लाइये सुविधा
शुल्क।
स्मार्ट सिटी में आपका स्वागत है। आपको
छोड़ कर यहाँ सब स्मार्ट हैं क्या नेता क्या अभिनेता, क्या चोर क्या
व्यापारी। क्या वाशिंग मशीन क्या वोटिंग मशीन।
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