हमारे देश में लोग छुट्टी पाने के लिए नित नये, एक से बढ़ कर एक बहाने लगाते हैं। वहीं छुट्टी देने वाले भी एक से बढ़ कर एक छुट्टी ना देने के कारण बताते हैं। ऐसे ही एक कर्मचारी ने जब अपने 'पाइल्स' के इलाज के लिए छुट्टी मांगी तो बॉस को शक़ हुआ और उन्होने आवेदन पत्र पर ही लिख मारा "प्रूफ दीजिये आपको पाइल्स की बीमारी है"। अब बॉस ने तो, जहां तक मेरा ख्याल है, मेडिकल प्रमाणपत्र मांगा होगा। मगर जैसा कहा गया है कि वो तो डॉ. को अभी दिखाने जा रहा था मेडिकल प्रमाणपत्र तो डॉ. जाने के बाद ही देता। कर्मचारी ने आव देखा ना ताव अपने मल-द्वार का फोटू छुट्टी के आवेदन पत्र के साथ चस्पा कर दिया।
अब बॉस महोदय अपना सिर पकड़ कर बैठे हैं वो शेर है ना "....कभी हम आवेदन को कभी फोटू को देखते हैं...." मैंने अपने ऑफिस में जब एक कर्मचारी से जिसके बारे में पता था कि वो अपने गाँव जाकर किसी न किसी फर्जी वजह से छुट्टी बढ़ाता था। अत: जब उसने अपने दादा जी की मृत्यु का बहाना लगाया तो मैंने कहा उनका 'डैथ सर्टिफिकेट' लेकर आओ। अब तो वह फड़फड़ाने लगा। यूनियन वाले मेरे पास आए "सर ! एक तो उसके दादाजी नहीं रहे वह इतनी ग़मीं में चल रहा है और एक आप हैं जो उसके दादा जी का डैथ सर्टिफिकेट मांग रहे हैं। गांव-खेड़े में कहां डैथ सर्टिफिकेट होते हैं"।
इतिहास गवाह है कि लोग बाग क्या स्कूल, क्या दफ्तर क्या फौज, छुट्टी पाने के लिए एक से एक अनोखे कारण देते आ रहे हैं। ये बहाने शादी-ब्याह के मौसम में और फसल कटाई-बुवाई के सीजन में खूब इफ़रात में पाये जाते हैं। जो परदेस में नौकरी करते हैं उनके बारे में तो मशहूर है कि उन्होने गांव जाकर छुट्टी बढ़ानी ही बढ़ानी है। कई लोग जो छोटी-मोटी नौकरी करते हैं या घरेलू नौकरी करते हैं वो तो गाँव से तब तक नहीं हिलते जब तक उनके पैसे नहीं खत्म हो जाते और जब तक किराया उधार मांगने की नौबत नहीं आती। यहाँ आकर नौकरी चेंज या फिर कोई मेलोड्रामा। आजकल हम लोग भी तो इन पर खूब ही निर्भर हो गए हैं। वो दिन हवा हुए जब ये हम पर निर्भर थे। अब उल्टा हो गया है। इनकी डिमांड सतत बनी रहती है। अच्छे घरेलू पति और घरेलू नौकर आजकल कहाँ मिलते हैं ?
मेरे दफ्तर में एक बाबू जब अपने मुल्क़ जाये (मुंबई में अंग्रेजों के जमाने से मुल्क़ या नेटिव बोलते हैं) वापिस हमेशा लेट आए और एक से बढ़ कर एक कहानी सुनाये। जैसे एक बार उसने बताया कैसे वह ज़हरखुरानी का शिकार हो गया और वो लोग सामान,पर्स, घड़ी के साथ उसका मोबाइल भी ले गए। अतः वह कोई सूचना भी नहीं दे पाया। तबीयत तो खराब हो ही गई थी। ऐसे ही उसने एक बार कारण दिया की वह झुका और फोन जेब से खिसक कर गरम पानी की बाल्टी में गिर गया। बस फिर क्या था दूसरा मोबाइल लेने और डुप्लीकेट सिम लेने में एक हफ्ता और लग गया। एक कर्मचारी को जब चार्जशीट लेकर एक पते पर देने भेजा तो वो उल्टा जाकर उसी से मिल गया और आकर उसने जो कहानी सुनाई वो सुनिए: "साब मैंने जैसे ही डोर-बैल बजाई दरवाजा बिना खोले ही जवाब आया कौन है ? मैंने कहा मैं दफ़्तर से आया हूँ बड़े बाबू कहाँ हैं" अंदर से ही जवाब आया "हमें खुद नहीं पता कहाँ हैं हरिद्वार का कह कर गए थे पता नहीं कहाँ चले गए क्या हुआ ?” मैंने कहा दरवाजा खोलिए एक दफ्तर का पत्र देना है तो दरवाजा खुला और एक खूंखार कुत्ता मेरे ऊपर झपटा मैं जैसे तैसे जान बचा कर भागा। मरते मरते बचा हूँ। आप मुझे ऐसी जगह ना भेजा करें जहां शिकारी कुत्ते हुआ करें"।
तो जब बॉस ने उसके पाइल्स का प्रमाण मांग लिया तो वह पूरा पक गया और मलद्वार का फोटो नत्थी कर दिया। लीजिये देख लीजिये और जब तक कन्विन्स ना हो जाएँ देखते रहें। बस इसमें एक ही पेच है कि राजपत्रित अधिकारी के बिना अटैस्ट किये बॉस ने पहचाना कैसे होगा कि यह इसी कर्मचारी के मल द्वार की तस्वीर है ?
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