Ravi ki duniya

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Tuesday, October 15, 2024

व्यंग्य: गोबर से कैंसर का उपचार

 


 

 

           नेता जो न कहे थोड़ा, जो न करे थोड़ा। इस सीरीज़ में लेटेस्ट है  यदि आप गोबर में लोटते हैं और गोबर के सान्निध्य में गोबर से लथ-पथ  रहते हैं तो आप कैंसर से बच सकते हैं। यह कोई छोटी बात नहीं। हमें वैसे भी अभी तक मेडिकल का नोबल पुरस्कार नहीं मिला है। पता नहीं यह क्लेम अभी तक नोबल पुरस्कार समिति को भेजा गया है या नहीं। यदि नहीं भेजा गया है तो हो सकता है कुछ विचार-विमर्श चल रहा हो। हो सकता है हम अपनी खोज को दुनियाँ को बताना ही नहीं चाहते हों। भई ! देश का ये सीक्रेट बाहर क्यों जाये। अपनी गोबर-थैरेपी ज़िंदाबाद। जहां दुनियाँ भर की पैथी चल रही हों वहाँ एक गोबरपैथी और सही। हमारे मुल्क में स्वमूत्र चिकित्सा चली ही थी।

 

           नेता जी का यह कहना है कि गोबर में लोट लगाने के साथ-साथ गाय का दूध पीना है और गाय को सहलाने मात्र से बी.पी. के मर्ज से निजात मिल सकती है। अंग्रेज़ी में कहते हैं डस्ट दाऊ केम... उसी तरह गोबर दाऊ केम, गोबर दाऊ आर एंड गोबर दाऊ शैल रिटर्न। पहले घर-बाहर गोबर ही गोबर होता था। घर-चौबारा गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह इकनोमिकल होता था। गोबर में एक निश्चित अनुपात में भूसा, मिट्टी, आदि मिला कर घर तक बन जाते थे। जो गर्मी में ठंडक और ठंड में गर्मी का एहसास दिलाते थे। गोबर हमारी राष्ट्रीय पहचान है। आपने कहावत सुनी होंगी। फलां गोबर-गणेश है, उसने सब काम गुड़-गोबर कर दिया। तुम्हारे सिर में गोबर भरा है।

     

            कंडे बोले तो उपले सदियों तलक हमारे ईंधन रहे हैं। यह कितना सुलभ था सबको पता है। हम चूल्हे, अंगीठी, स्टोव से होते-होते आज माइक्रोवेव और कंडक्शन हॉट-प्लेट तक पहुंचे हैं मगर सोच के देखो उपले कितने किफायत वाले रहे हैं और घर की महिलाओं को सुबह से शाम तक बिज़ी अलग रखते थे। गोबर थापना, उपले बनाना, दीवाल से उनको निशाना साध कर चिपकाना और फिर सूखने पर छुड़ाना। इकट्ठे कर टोकरी में कायदे से रखना और बारिश से बचाने को सेफ जगह रखना। इसी में ज़िंदगी कट जाती थी। फेसबुक चेटिंग और वाट्स अप के लिए टाइम कहाँ था। इससे कितना सुख था जीवन में।

 

         मैं सोच रहा हूँ नेताजी थोड़ी और रिसर्च करें तो और भी अनोखे अनोखे सूत्र हाथ लग सकते हैं। मसलन गोबर का साग, गोबर की चाय, गोबर की रोटी, बंदूक में गोबर की बुलेट, गोबर की टोपी/हैट। रिसर्च उन्नत होते-होते यह भी हो सकता है की हमारे वस्त्र गोबर से बनने लग जाएँ। असीम संभावनाएं हैं गोबर में। बस नेताजी ये ही वाले रहने चाहिए। कहीं हार-वार गए तो सब किया धरा गुड़-गोबर हो जाएगा।

Sunday, October 13, 2024

व्यंग्य: फ्रेक्चर कूल्हे में ऑपरेशन दिल का

 

 

 

        नोयडा में एक ऐसा केस सामने आया है जहां पेशेंट कूल्हे के फ्रेक्चर की शिकायत लेकर आया मगर डॉ. ने अपनी विज़डम में ऑपरेशन कर दिया दिल का। अब देखा जाये तो सारा मामला दिल का ही तो है। आपने कहावत नहीं सुनी ? मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। उसी तरह दिल ही तो सब रोगों की जड़ है। दिल में न जाने कैसे-कैसे ख्याल आते हैं। ये दिल ही है जो उसको ऐसा लगता है कि कूल्हे में फ्रेक्चर हुआ है। दिल ठीक तो कूल्हा-वूल्हा सब ठीक। अतः डॉ ने जिस्म के मदर-बोर्ड यानि दिल का ही ऑपरेशन कर छोड़ा। अब दिल ठीक है आदमी का, तो क्या कूल्हा क्या घुटना। सब चंगा है।

 

           मैं ये सोच रहा हूँ कि डॉ ने दिल के ऑपरेशन में किया क्या होगा? अर्थात उसमें स्टेंट डाला या एक-आध वाल्व ही बदल दिया। वो होता है न एक के साथ एक फ्री। त्योहारों का मौसम चल रहा है कोई स्कीम निकाली हो। फाइव स्टार होटल हो, मॉल हो, रेस्टोरेन्ट हो, सभी त्योहारों पर स्कीम लाते हैं तो अस्पताल वाले ही पीछे क्यूँ रहते। अब जबकि दिल एकदम गार्डन-फ्रेश कर दिया है कि आपको कूल्हे का दर्द अव्वल तो महसूस होगा नहीं और अगर हुआ भी तो आप निस्संकोच आईये  हम देखेंगे क्या किया जा सकता है। इसी दिल का ऑपरेशन, आप ऑफ-सीजन में आते तो दस लाख से कम नहीं लगते। आप लक्की हो जो स्कीम में आ गए। अब अपने इलाके के सभी कूल्हे के, घुटने के, स्किन के, आँख के, डायबिटीज़ के मरीजों को हमारे यहाँ भेजें ताकि वे भी हमारी फेस्टिवल रिबेट का फायदा उठा सकें।

  

     देखिये यह नोएडा है। नोएडा का संधि-विछेद है नो-आइडिया होता है। आदमी-आदमी एक से। उसी तरह आदमी का अंग-अंग एक से। क्या कूल्हा, क्या दिल। भेदभाव नहीं करना है। हम डॉ होकर कतई ऐसा भेदभाव नहीं कर सकते। भई ! देर सबेर उसको दिल के ऑपरेशन की भी ज़रूरत पड़नी ही पड़नी थी। अब आपने दिल का ऑपरेशन पहले ही करा लिया है तो आप एक तरह से तैयार हैं। आपके दिल के आसपास भी अब कोई मर्ज नहीं आयेगा। हम आपके दिल में रहते हैं सनम।

              

            आप ही सोचिए आप दो-दो बार अस्पताल में दाखिले से बच गए। आजकल टाइम कितना कीमती है। टाइम है किसके पास ? कभी आप बिज़ी, कभी हम बिज़ी। अपने-अपने मुकाम पर कभी हम नहीं, कभी तुम नहीं। और फिर देख नहीं रहे मेडिकल खर्चे आसमान छू रहे हैं। अस्पताल में ढूँढे से बेड नहीं मिलते। एडवांस बुकिंग चल रही होती है। अस्पताल वाले ऑपरेशन की तारीख इतने बाद की देते है कि तब तक या तो आदमी वैसे ही ठीक हो जाता है, या मर्ज के साथ जीने की आदत डाल लेता है, डॉ अस्पतालों से उसका विश्वास उठ जाता है या फिर वो खुद ही दुनियाँ से उठ जाता है। अब इस कूल्हे के मरीज को कौन समझाये उसको तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि सिंगल-विंडो की तरह उसका काम हो गया। बार-बार आने की किल्लत से बच गया। 

 

 


Thursday, October 10, 2024

व्यंग्य: बिग बॉस में गधा

 

                                                          




           बिग ब्रेकिंग न्यूज है कि बिग-बॉस के लेटेस्ट सीजन में 19 वें कंटेस्टेंट के रूप में गर्दभ राज की एंट्री हो गई है। इससे अन्य कंटेस्टेंट में और जो बिग बॉस में आने से रह गए उनमें खलबली मचनी ही थी। यह क्या ? अब क्या हम खोते के साथ रहेंगे। पहले ही क्या बिग बॉस में रहना आसान है जो हमें खर के साथ रात-दिन रहना होगा। उधर पशु-अधिकार वाले अलग आपाधापी में लगे हुए हैं। बहुत दिनों बाद उन्हें एक इशू हाथ लगा है। इसका फुल-फुल उपयोग करना है। कौन जाने सलमान खान हमसे सुलह करने को हमें गैलेक्सी में चाय पर बुला ले। इस बहाने एक फोटो सेशन भी हो जाएगा। क्या पता हममें से किसी को बिग बॉस के अगले सीजन में चांस लग जाये। किस्मत अच्छी हो तो क्या पता अपुन का थोबड़ा अगली फिल्म में ‘नई खोज-नया चेहरा’ कह कर पोस्टर पर दिखे। वैशाख नन्दन के माध्यम से वैतरणी पार करने की अनेकानेक संभावनाएं हैं। 


        पशु अधिकार वालों ने इस बात का बहुत ऑबजेक्शन लिया है वो कहते फिर रहे हैं : 

 

                                   गधे का ऐसा अपमान

                                   नहीं सहेगा हिंदुस्तान 


                बाकी के 18 पार्टीसिपेंट्स खुश हैं। उन्हें पैसे भी मिलेंगे, पब्लिसिटी भी मिलेगी। बेचारे शीतलावाहन को क्या मिला ? हरी घास ! यूं देखो तो बाकी 18 भी तो हरी पत्ती के चक्कर में बिग बॉस में आए हैं। पब्लिसिटी से उन्हें भी तो हरी पत्ती ही मिलनी है। अब इन पशु अधिकार वालों से कौन पूछे कि भैया ! ये वाला शंखकर्ण तो फिर भी आराम से रहेगा, भले एक-आध महीना ही सही। तुमको इनके भाई-बंधु नज़र नहीं आते जो दिन-रात भट्टे-भट्टे ईंट ढोते फिरते हैं। जो खोती-रेहड़ी पर जी तोड़ मेहनत करते हैं। वो आपको दिखते नहीं या आप देखना नहीं चाहते जो न घर के हैं न घाट के। दूसरे शब्दों में यहाँ भी इन्सानों वाली पॉलिटिक्स ही चल रही है। यहाँ भी अपने फाॅलोअर्स को गधा ही बनाया जा रहा है। ये तो कोई बात नहीं हुई। गधे कैसी-कैसी यातना सह रहे हैं इन पशु प्रेमियों ने कभी देखा? बस सलमान खान का नाम सुना उनको लगा यह बढ़िया फोरम है, पब्लिसिटी भी और लगे हाथों कुछ पत्रम-पुष्पम की प्राप्ति भी होगी। क्या पता अगले बिग बॉस में कुछ पशु प्रेमी भी आपको दिख जाएँ जो ये सुनिश्चित करेंगे कि बिग बॉस में किसी भी गधे पर कोई अत्याचार तो नहीं हो रहा। और भले किसी इंसान के साथ गधावत व्यवहार हो रहा हो, वान्दा नहीं। किसी गधे के साथ  बदसलूकी  तो नहीं हो रही । ये गुनाह है। गुनाह - ए - अज़ीम है।


           ये बेचारा गधा जो है सो 19 वां भागीदार है। अब आपको भान हुआ क्यों कहावत है कि 19-20 का फर्क है। बस यही इंसान और गधे में फर्क है। गधा कितना परिश्रमी, ईमानदार और शान्तिप्रिय जीव है। रूखा-सूखा खा कर सारी उम्र अपने मालिक की अंतिम सांस तक सेवा करता है। कोई दगा नहीं, कोई आडंबर नहीं। काम, काम, बस काम। 


         गुड बोले तो गुड फॉर नथिंग। भले आदमी को आखिर यूं ही नहीं गधा कहा जाता।

Saturday, October 5, 2024

व्यंग्य : मुझे भी दादासाहेब फाल्के एवार्ड दिला दो

 

        आजकल किसी न किसी एवार्ड की घोषणा होती रहती है कभी पद्मश्री, कभी भारत रत्न, कभी संगीत के, कभी नाटक के, कहीं फिल्मों के, कहीं टी.वी. के, कहीं खिलाड़ियों को मिल रहे हैं कहीं एक्टरों को। इस बरस अगर मुझे दादासाहेब फाल्के न मिला तो मेरी बात हो रखी है।  दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता में मोमबत्ती बेचने वाले और ‘लेडिस’ लोग तैयार बैठे हैं कब वे केंडल मार्च निकालें और टी.वी. पर ‘लाइव’ कवरेज में दिखें।

 

           मैं सोच रहा हूँ अभी तो माला सिन्हा, वैजयंतीमाला, चेतन आनंद, विजय आनंद, महेश भट्ट, कामिनी कौशल, धर्मेन्द्र, शर्मीला टेगोर, सायरा बानो, मुमताज़, रेखा, गुलज़ार, विश्वजीत एक से बढ़ कर एक निर्देशक, गीतकार, संगीतकार वेटिंग लिस्ट में चल रहे हैं। आर.ए.सी. भी नहीं हुआ है। आर.ए.सी. बोले तो ‘रनिंग आफ्टर कमेटी’। कमेटी के भाई लोग पहले अपने-अपने पति-पत्नी के लिए फाल्के एवार्ड चाहते हैं. सच ही तो है ! नहीं तो ‘चैरिटी बिगिन्स एट होम’ कहावत झूठी न पड़ जाएगी। वो तो अच्छा है हाई-कमांड से नाम आ जाता है, इसके बाद उनकी कोई सिरदर्दी नहीं रह जाती। 

 

             अपने लिये सफेद झूठ बोलना शुरू-शुरू में थोड़ा मुश्किल मालूम देता है. ज्यादा प्रैक्टिस नहीं. फिर भी कोशिश करता हूं. भूल चूक लेनी देनी

 

              मैं भारत का एक अदना सा नागरिक हूं. बड़ा ही शांति प्रिय जीव हूं. हमेशा ट्रैफिक पुलिस को भी कमिश्नर पुलिस समझता हूं और वैसी ही इज़्ज़त देता हूं. जब जितने पैसे ट्रैफिक सिगनल पर, रोड ब्लॉक पर या फिर फ्लाई ओवर पर मांगे हैं मैंने बगैर चूं-चां किये दे दिये. इनकम हो न हो ये बैरी ऑफिस वाले सीधे-सीधे टैक्स काट लेते हैं. सच पूछो तो जितना खर्चा पानी दादासाहेब फाल्के एवार्ड बनवाने में आयेगा उससे कई गुना अधिक टैक्स मेरे खाते में जमा हो गया होगा अब तक.

 

         मैं इस मँहगाई के दौर में बच्चों को पढ़ा रहा हूं और जहां ज्यादा पढ़ गये हैं उन्हें वापिस ‘लाईन’ पर ला रहा हूं. अब भला आप ही बताओ ! है कोई मुझ से बड़ा एक्टर, डाइरेक्टर जो इस फाल्के एवार्ड का मुझ से अधिक पात्र हो ? अब अगर मैं चूक जाऊंगा तो इसी बात से चूक सकता हूं कि मेरी बॉडी, मेरे मसल्स, मेरे सिक्स पैक नहीं हैं। अब घर-गृहस्थी चलाऊँ या जिम में साइकिल।  मेरी जानकारी में कोई एम.पी., एम.एल.ए भी नहीं है जो मेरे हक़ में सिफारिश के दो हरफ मुफ्त में लिख दे। देश भक्त तो हूँ पर किसी फिल्म में रोल नहीं  मिला। मैं ‘रियल लाइफ’ का देशभक्त हूँ। न मैं आपके लिये वोट बटोर सकता हूं। मैं तो हद से हद अपना वोट आपको दे सकता हूं। 

 

          अब आप ही सोचो इतनी विकट परिस्थिति में भी मैं ज़िंदा हूं और ज़िंदा ही नहीं खुशहाल होने की कित्ती अच्छी एक्टिंग कर रहा हूं. मेरे हँसी कितनी नैचुरल है। मेरा रोना उससे भी अधिक रियल है। बिलकुल ऑफ-वेव फिल्म के पात्र की तरह। मेरे बाल-बच्चे भी सूखाग्रस्त इलाके पर बनी डॉक्युमेंट्री में दिखाये बच्चों से मेल खाते हैं। भला इससे बढ़ कर दादासाहेब फाल्के  के लिये आपको और क्या क्वालीफिकेशन दरकार है ?. अब एक मैडल के लिये छोरे की जान लोगे क्या ? मैंने भी ठान ली है अब के बरस आपने दादासाहेब फाल्के नहीं दिया तो मैंने हलफनामा दे कर अपने नाम के आगे दादासाहेब फाल्के लिखवा लेना है।

 

            लौटती डाक से खबर देना जी, नया शॉल खरीदना है फिर उसे बुद्धिजीवियों की तरह लपेटने की प्रेक्टिस भी करनी है। इन सबसे बढ़ कर शून्य में देर तलक ताकते रहने की आदत डालनी है। अभी तो थेंक्स गिविंग स्पीच भी लिखनी है, कितना काम पड़ा है ! सी यू एट विज्ञान-भवन।            

                  

Friday, October 4, 2024

व्यंग्य: ईज़ ऑफ डूइंग- चोरी



                  हम-आपको लगता होगा चोरी आसान काम है। हरगिज़ नहीं। यह बहुत दुष्कर काम है। बड़े दांव-पेंच हैं। सफलता ऐसे ही एक रात में  नहीं मिल जाती। कितने दिन-रात ‘रेकी’ में ही चले जाते हैं। नज़र बचाना, आँखों में धूल झोंकना, आसान काम न कभी रहा था, न रहेगा। लेकिन अब हम इस मार्ग पर प्रशस्त हो गए हैं तो यह ज़रूरी है कि ईज़ रहे। अतः अब सब कुछ बहुत आसान कर दिया है। इस क्षेत्र में ‘वर्क फ्राॅम होम’ का भी इंतज़ाम है। आप 'ऑन-लाइन' यह सब कर सकते हैं बल्कि इसमें तो बहुत ही ईज़ है। कोई टेंशन नहीं, थोड़ा इंगलिश बोलना सीख लें। आवाज़ में समुचित रौब-दाब का छौंक लगा लें फिर तो ‘स्काई इज़ दी लिमिट’ यहाँ करोड़ों का टर्न-ओवर है। योग्य उम्मीदवारों के लिए यहाँ अब भी बहुत स्कोप है। 


      ईज़ ऑफ डूइंग चोरी एक समग्र अवधारणा है। यह एक स्टेज अथवा एक प्रकरण भर का काम नहीं। यह तो ‘माइंड-सेट’ है जिसका हमको, समाज को, पुलिस को, कचहरी को, बोले तो सबको पालन करना है और अपने जीवन में उतारना है। तब कहीं जाकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम इस योजना को सफल बना पाएंगे। यूं इस क्षेत्र में रात-दिन काम हो रहा है सभी स्तरों पर। क्या बैंक, क्या साइबर-कैफे, क्या बस-स्टेंड, क्या बाज़ार, क्या मॉल, क्या कैमिस्ट, क्या स्कूल, यहाँ तक कि यूनिवर्सिटी भी अब इससे अछूती नहीं। पासपोर्ट हो, ड्राइविंग लाइसेन्स हो, आप तो ये बताओ कहाँ ये ईज़ ऑफ डूइंग नहीं पहुंचा है ? हम फौरन से पेश्तर, उसको एड्रेस करेंगे। हमें फुल-फुल ईज़ चाहिए। कट्टा हो, मशीनगन हो, बम हो, हमें फर्क नहीं करना है। 


                             चोरी में आप इलाके के थानेदार से मधुर पी.आर. रखिए और फिर देखिये जलवा जो रिपोर्ट लिखाने जाएगा थानेदार उसी को धर लेंगे और आपको 'चोरित' की तरफ से एक एफ़िडेविट भी  दिला देंगे कि यह उसका सामान है ही नहीं अथवा यह उसने अपनी स्वेक्षा से ये सब असबाब आपको सौंपा था। कारण कि अब वह हरिद्वार जाकर सन्यास लेना चाहता है। 

    

                                  यह ईज़ ऑफ डूइंग चोरी हर तरफ व्याप्त है। मजाल है जो पुलिस आपकी रपट लिख ले। चोरित आदमी सर पटक पटक के खुद ही थक जाएगा। आप कार उठाने के बिजनिस में हैं तो यकीन जानें ईज़ ही ईज़ है। आप फिरौती वाली लाइन में हैं तो भी पूरा का पूरा फील्ड खाली है पहले दिन से  प्रॉफ़िट ही प्रॉफ़िट है। नौकरी नहीं है तो औरों को नौकरी देने के सौदे में पैसा ही पैसा है। अच्छा प्रॉफ़िट मार्जन है। हमारे देश में अवसर ही अवसर हैं। आप ट्राई तो करें। निराश नहीं होंगे। अपनी योग्यतानुसार अपना फील्ड चुन लें। हमारे काॅउन्सलर आपकी काॅउन्सलिंग करके आपकी छुपी प्रतिभा को पहचानने में मदद करेंगे। 


                        बस ! तो देर किस बात की है। कम वन-कम ऑल।


Wednesday, October 2, 2024

व्यंग्य: जवानी लौटाने की मशीन


                                                           



        जब आपको लगे कि आपने सब देख लिया है और अब कोई भी चीज़ आपको ताज्जुब में नहीं डाल सकती। हैरान नहीं कर सकती, तब आप हिंदुस्तान का रुख करें और ज्यादा कुछ नहीं करना है, बस समाचार पत्र पढ़ लीजिये। हाल ही के दिनों में एक समाचार छपा है कि कानपुर में कई उम्र दराज़ लोगों से एक व्यक्ति ने उम्र लौटाने के नाम पर करोड़ों रुपये की ठगी कर ली है। इसका मतलब है कि लोगों की शाश्वत जवान रहने की आरज़ू भी शाश्वत है। ये गहने दुगने करने, पैसे दुगने करने, नोट छापने के सौदे अब पुराने पड़ गए हैं। यह डिजिटल ज़माना है देखते नहीं कितने लोग रोजाना डिजिटल अरेस्ट हो करोड़ों दे रहे हैं। 


                   इसी श्रंखला में अब है आपकी जवानी लौटाने की मशीन। इस सौदागर - कम - ठग ने बताया कि यह मशीन इजरायल से आएगी। उसने इसका नामकरण भी कर दिया-- ‘ऑक्सिजन थैरेपी’ और देखते-देखते करोड़ों इकट्ठा हो गए। “पहले मैं” ... “पहले मैं” करते। मज़े की बात है इसमें 65 वर्षीय भद्र महिला भी शामिल थीं जो 25 की दिखना चाहती थीं। बोले तो, ये मशीन आपके 45 साल हवा-हवा कर देती और रह जाते नौजवानी के 25 बरस। 


सौ बरस की ज़िंदगी से अच्छे हैं

जवानी के 25 बरस


 कितना रोमानी ख्याल है। उसने कैसे-कैसे सपने दिखाए होंगे। इन अधेड़ और वृद्ध लोगो ने अपने कितने सारे ख्वाब सँजोये होंगे कि 25 का होते ही क्या-क्या करना है। कहाँ-कहाँ जाना है। खासकर, वो सब, जो वो जब एक्चुअली 25 के थे तो कर नहीं पाये थे। अन्यथा कोई क्यों 25 का होना चाहेगा? कोई नौकरी करने वास्ते या यू.पी.एस.सी. देने को तो 25 के हो नहीं रहे। दरअसल आप केवल दिखते  25 के, डेट ऑफ बर्थ थोड़े चेंज हो जाती। वह तो कहीं आसान और सस्ता है। आजकल एक एफीडेविट ही काफी है देख नहीं रहे ! कुछ हज़ार में ही मिल जाता है। आप चाहे ओ.बी.सी. बन जाओ, क्रीम हटा देंगे तो नॉन क्रीमी बना देंगे... जैसा आप चाहो ! आप पर देने को पैसे हैं तो आपको आर्थिक रूप से पिछड़ा भी बना सकते हैं। तुम हमारी मशीनरी को जानता नहीं है। हमारी मशीन अगड़े को पिछड़ा बोले तो फॉरवर्ड को बैकवर्ड और दलित को महादलित बना सकती है। 


           सोचो आपने 25 के होते ही कैसे-कैसे वलवले दिल में पाले होंगे।  मैं ये करूंगा, ये करूंगी। इससे बढ़ कर ये ख्याल आया होगा कि कैसे पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्त-यार जलभुन जाएँगे। वो लाख पूछेंगे तो भी उनको बताना नहीं है। सोच सोच के परेशान होने दो।  ये क्या हुआ ?...कब हुआ... ??

 

जवानी में जवानी का एहतराम न किया

अब जाती जवानी को पकड़ने का लालच


        इतने सारे करोड़ों रुपये पाकर वो जो ठग है जो “इजरायली मशीन” द्वारा उम्र में से 45 साल घटा रहा था, उसकी जवानी ज़रूर लौट आई होगी। वो कहीं भी...किसी भी देश में रह कर अपने आपको जवान महसूस कर रहा होगा। इससे ये बात भी साबित होती है कि अक्ल और उम्र का कोई संबंध नहीं है। आप कितनी भी उम्र के हो जाएँ अक़ल से पैदल हो सकते हैं। हाँ इससे याद आया यदि आप नित्य-प्रति खूब पैदल चलते तो इस मशीन की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। नहीं क्या ?