बहुत
ही उत्साहवर्धक खबर है खासकर बेरोजगार लोगों के लिए। एक शख्स ट्रेन और स्टेशनों पर
गीत गा-गा कर भीख मांगता है। इन सज्जन का कहना है कि इससे उनके आत्मसम्मान में
बहुत वृद्धि हुई है, अब उनके परिवार के लोग उनको और उनके इस प्रोफेशन को सम्मान से देखते हैं। वे
अपने इस नए आत्मसम्मान का समस्त श्रेय भीख मांगने को देते हैं। इससे जोड़ी गई
धन-राशि से आज शहर में उनके एक-दो नहीं बल्कि तीन-तीन ऑटो चल रहे हैं। उन्होने इस
बात को ज़ोर देकर कहा है कि उनके इस भीख मांगने ने ही उनको ये संपन्नता दिलाई है।
अतः वह ये मुक़द्दस काम, बोले तो भीख मांगना कभी बंद नहीं करेंगे।
भिखारी तो
आपने बहुत देखे होंगे और एक से एक अमीर भिखारी देखे होंगे। अब तो भीख मांगने में
समुदाय के समुदाय, मुल्क के मुल्क लगे हुए हैं। वे अपने भीख मांगने पर पशेमान नहीं हैं, उल्टा इसमें गर्व महसूस करते हैं। सही भी है ! आखिर आपको अपने ‘बिजनिस’ की फुल-फुल इज्ज़त करनी चाहिए। सीधी सी बात है जिस इनकम से आपके घर का चूल्हा
जलता हो, जिस आय से आपका और आपके पूरे
परिवार का पेट पलता हो उस को पूरा-पूरा सम्मान मिलना ही चाहिए। सम्मान सबसे पहले
आप ही को देना होगा तब न बाहर वाले सम्मान की दृष्टि से देखेंगे।
भीख
मांगने वाले तरह-तरह के औटपाए करते हैं। भाँति-भांति के स्वांग रचते हैं। बदन पर
पट्टी बांधे रहते हैं। कभी टांग छुपा कर, टांग न होने के बहाने लगाते हैं, कभी चेहरे को विकृत कर लेते हैं। कुछ कायदे के कपड़े पहन स्टूडेंट बने घूमते
हैं और आपसे फकत फीस देने में मदद चाहते हैं। कुछ अपने पर्स के खो जाने का बहाना लगाते हैं और
आपसे बस घर जाने का किराया मांगते हैं। एक सज्जन तो मुझे दवाई का पर्चा दिखा कर
दवाई के पैसे मांग रहे थे। उनको लगा या तो मैं पैसे दे दूंगा या हद से हद केमिस्ट
से दवा खरीद कर उनको सौंप दूंगा, जो मेरे मुड़ते ही वो केमिस्ट को वापिस कर देंगे। मैंने कहा “इस पर्चे की एक
फोटो कॉपी मुझे दे दो मैं कल अपनी डिस्पेन्सरी से लाकर देता हूँ”। ये सुनते ही वो
क्रोध से पर्चा मेरे हाथ से छीन कर ये जा वो जा, भीड़ में गुम हो गया।
मुंबई
में ऐसे होटल हैं जहां से आप भोजन के कूपन खरीद कर वहाँ एकत्रित भिखारियों में
बाँट सकते हैं और पुण्य कमा सकते हैं। वो बात दीगर है कि आपके मुड़ते ही भिखारी लोग
उस कूपन को वापिस होटल वाले को देकर नगद पैसे ले सकते हैं। क्या आप दिल्ली के भैरों
मंदिर गए हैं। वहां शराब चढ़ाई जाती है। फिर बाहर गिलास लिए ‘भिखारियों’ को प्रसाद बांटते हैं। “बड़ा पेग बनाना”, “मुझे पटियाला बनाना” “गिलास भर दो” आप सुन सकते हैं।
मैं दाद
देता हूँ इन सज्जन की जो अपने व्यवसाय के प्रति इतनी ईमानदार हैं और गर्व करते
हैं। लोगों में अपने व्यवसाय के प्रति इतनी ईमानदारी कम ही देखने को मिलती है। नहीं
तो जिससे बात करो वो रोता हुआ, अपने ऑफिस और अपने बॉस को कोसता हुआ ही मिलता है। आप इसी मेहनत से काम करते
रहो, गाना गाते रहो, आप के भिक्षा-पात्र में इतनी राशि जल्दी से जल्दी हो
जाये कि आप तीन से तीस ऑटो के मालिक हो जाएँ। लोग आपको और आपके ऑटो को देख कर बरबस
ही कह उठें ‘सबका मालिक एक’।
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