रायते को लेकर भले कितने ही मुहावरे चले
हों सबसे दिलचस्प ये रहेगा। रायते में कानखजूरा। राम ने श्याम के रायते में
कानखजूरा डाल दिया। मेरे रायते में कानखजूरा किसने डाला ? एक लाइफ कोचिंग की
किताब आई थी ‘हू मूव्ड माई चीज़’। कुछ इसी तरह का समां रहेगा। आपने पिछले दिनों
बहुत सुना होगा कि रेलवे ने अपनी सुविधाओं और रफ्तार को नए सिरे से परिष्कृत किया
है। ये कानखजूरा उसी का प्रतीक है। उसी का मेसेंजर है। मेसेज लें। मेसेंजर को मारा
नहीं करते।
हुआ कुछ यूं कि रेलवे की वी.आई.पी. लाऊंज
में एक यात्री के रायते में ज़िंदा कानखजूरा निकल आया। उसने तुरंत अपने मोबाइल से
फोटो ले लिया। अब आप किसे दोष देंगे। रेलवे को ? रायते को, कानखजूरे को ? मोबाइल बनाने वाले को
जिसने इसमें कैमरा लगाया ? या फिर उस यात्री को ? दुनियाँ भर का गंद दिन-रात घर पर मंगा-मंगा कर खाते फिरते हो एक कानखजूरा नहीं
खा सकते थे। नहीं खाना था, मत खाते, निकाल देते, जैसे बच्चे दूध से मलाई निकाल देते हैं। या कई लोग केक से चेरी हटा देते हैं।
ये क्या कि लगे फोटोग्राफी / विडियोग्राफी करने। ये क्या तरीका हुआ? आपको पता नहीं है
रेलवे-परिसर में फोटोग्राफी अनाधिकृत है।
आजकल रेलवे नवीन-नवीन प्रयोग कर
रेली है। सब किसलिए ? यात्रियों की सुख सुविधा के लिए ही न, ताकि उनकी यात्रा सुगम और यादगार बन सके। अब देखिये ये कानखजूरे वाले यात्री
की यात्रा यादगार बन गई कि नहीं। अपने नाती-पोतों तक को वो ये कहानी सुनाया करेगा।
“एक बार की बात है...” कानखजूरे के बारे में पता लगाया जाये यह ज्यादा जहरीला तो
नहीं होता। फिर इतना रायता क्यों फैला रहे हो भाई। हमारे स्कूलों में मिड-डे मील
देखो। गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ गोलगप्पे वालों को देखो। दीवाली पर नकली खोआ/मावा
देखो। केमिकल मिला दूध रोज़ पीते हो और कानखजूरे को लेकर इतना बवाल। हद है
हिपोक्रेसी की। मेरी रेलवे से विनती है कि आप इस फ्लेवर को ऐलानिया लाएँ।
रायता-कानखजूरिया। और फिर देखें।
भाई कानखजूरा ज़िंदा था। सोचिए हमारा रायता
भी कितना शुद्ध, सात्विक और अलौकिक है कि कानखजूरा जिसके सौ पैर होते
हैं वो भी इसे ‘लाइक’ करता है और एक आप हैं।
हैं बस ले-दे कर दो पैर और नखरे देखो। भाई आजकल ‘लाइक’ का ज़माना है। ‘लाइक’
न मिले, कम ‘लाइक’ मिले इस पर तो रूठने-मनाने की और कहीं-कहीं तो फ़ौजदारी की भी नौबत आ
जाती है। दूसरे देशों में तो साँप का सूप बड़े चाव से पीते हैं। यह बहुत महंगा
बिकता है आपको रायते के दाम में कानखजूरे का एक तरह से सूप पीने को मिल गया। आपको
शुक्रगुजार होना चाहिए। हो सकता है ये कोई सैंपल-सर्वे चल रहा हो कि यात्रियों की
क्या प्रतिक्रिया होती है। तत्पश्चात इसे नियमित तौर पर ‘इंटरोड्यूस’ किया जाये। रेलवे यदा-कदा ऐसे सर्वे, ऐसे प्रयोग करती रहती
है। अब हो सकता है यह प्रयोग न हो, मात्र संयोग हो। जैसे पीछे ए.सी से साँप महाराज लटकते मिले थे। वह किस्सा फिर
कभी।
No comments:
Post a Comment