बिग ब्रेकिंग न्यूज है कि बिग-बॉस के लेटेस्ट सीजन में 19 वें कंटेस्टेंट के रूप में गर्दभ राज की एंट्री हो गई है। इससे अन्य कंटेस्टेंट में और जो बिग बॉस में आने से रह गए उनमें खलबली मचनी ही थी। यह क्या ? अब क्या हम खोते के साथ रहेंगे। पहले ही क्या बिग बॉस में रहना आसान है जो हमें खर के साथ रात-दिन रहना होगा। उधर पशु-अधिकार वाले अलग आपाधापी में लगे हुए हैं। बहुत दिनों बाद उन्हें एक इशू हाथ लगा है। इसका फुल-फुल उपयोग करना है। कौन जाने सलमान खान हमसे सुलह करने को हमें गैलेक्सी में चाय पर बुला ले। इस बहाने एक फोटो सेशन भी हो जाएगा। क्या पता हममें से किसी को बिग बॉस के अगले सीजन में चांस लग जाये। किस्मत अच्छी हो तो क्या पता अपुन का थोबड़ा अगली फिल्म में ‘नई खोज-नया चेहरा’ कह कर पोस्टर पर दिखे। वैशाख नन्दन के माध्यम से वैतरणी पार करने की अनेकानेक संभावनाएं हैं।
पशु अधिकार वालों ने इस बात का बहुत ऑबजेक्शन लिया है वो कहते फिर रहे हैं :
गधे का ऐसा अपमान
नहीं सहेगा हिंदुस्तान
बाकी के 18 पार्टीसिपेंट्स खुश हैं। उन्हें पैसे भी मिलेंगे, पब्लिसिटी भी मिलेगी। बेचारे शीतलावाहन को क्या मिला ? हरी घास ! यूं देखो तो बाकी 18 भी तो हरी पत्ती के चक्कर में बिग बॉस में आए हैं। पब्लिसिटी से उन्हें भी तो हरी पत्ती ही मिलनी है। अब इन पशु अधिकार वालों से कौन पूछे कि भैया ! ये वाला शंखकर्ण तो फिर भी आराम से रहेगा, भले एक-आध महीना ही सही। तुमको इनके भाई-बंधु नज़र नहीं आते जो दिन-रात भट्टे-भट्टे ईंट ढोते फिरते हैं। जो खोती-रेहड़ी पर जी तोड़ मेहनत करते हैं। वो आपको दिखते नहीं या आप देखना नहीं चाहते जो न घर के हैं न घाट के। दूसरे शब्दों में यहाँ भी इन्सानों वाली पॉलिटिक्स ही चल रही है। यहाँ भी अपने फाॅलोअर्स को गधा ही बनाया जा रहा है। ये तो कोई बात नहीं हुई। गधे कैसी-कैसी यातना सह रहे हैं इन पशु प्रेमियों ने कभी देखा? बस सलमान खान का नाम सुना उनको लगा यह बढ़िया फोरम है, पब्लिसिटी भी और लगे हाथों कुछ पत्रम-पुष्पम की प्राप्ति भी होगी। क्या पता अगले बिग बॉस में कुछ पशु प्रेमी भी आपको दिख जाएँ जो ये सुनिश्चित करेंगे कि बिग बॉस में किसी भी गधे पर कोई अत्याचार तो नहीं हो रहा। और भले किसी इंसान के साथ गधावत व्यवहार हो रहा हो, वान्दा नहीं। किसी गधे के साथ बदसलूकी तो नहीं हो रही । ये गुनाह है। गुनाह - ए - अज़ीम है।
ये बेचारा गधा जो है सो 19 वां भागीदार है। अब आपको भान हुआ क्यों कहावत है कि 19-20 का फर्क है। बस यही इंसान और गधे में फर्क है। गधा कितना परिश्रमी, ईमानदार और शान्तिप्रिय जीव है। रूखा-सूखा खा कर सारी उम्र अपने मालिक की अंतिम सांस तक सेवा करता है। कोई दगा नहीं, कोई आडंबर नहीं। काम, काम, बस काम।
गुड बोले तो गुड फॉर नथिंग। भले आदमी को आखिर यूं ही नहीं गधा कहा जाता।
No comments:
Post a Comment