आजकल नौकरशाही खासकर अफसरशाही में ये
फैशन हो चली है कि लोगों को उनके पदों पर ‘कार्यवाहक’ बना कर रखो। ज्यादा कार्य करते हैं। नियमित होते
ही उनके रंग-ढंग भी नियमित तौर पर दिखने को मिलते हैं। यह कार्यवाहक वाला सिस्टम बहुत प्रभावशाली
है। बड़े-बड़े कार्य, ये कार्यवाहक चुटकी बजाते कर जाते हैं, जिन्हें
करते ‘नियमित’ लोगों की चीखें निकल जाएँ।
किसी ने बहुत सोच समझ कर इनका नामकरण किया है कार्यवाहक...अर्थात वो जो कार्य करे।
वह कार्य का वाहक है।
अब कार्य कैसा भी हो आप कार्यवाहक को दें और
चिंतामुक्त हो जाएँ। आप भी खुश, कार्यवाहक भी खुश। दोनों का कार्य चल निकलता है। एक स्टेज तो ये
आ जाती है कि दोनों पार्टीज़ चाहती ही नहीं कि वह नियमित बने। जब सारे कार्य, कार्यवाहक कर ही रहा है और कार्यवाहक के भी सारे कार्य निकल ही रहे हैं तो
कोई क्यों कर भला नियमित होने को अपनी नियति बनाए। उल्टा वह अपने रिटायरमेंट के दिन
गिनने लगता है और मन ही मन मनाता है कि उसके रहते कोई नियमित की चर्चा ही न करे।
सच तो ये है कि ये कार्यवाहक एक
दिहाड़ी मजदूर होता है। डेली-वेजज वाला। उसे अंदर ही अंदर यह डर भी सताता रहता है न
जाने कब साब लोगों की भृकुटी टेढ़ी हो जाये और उसकी छुट्टी हो जाये। अतः वह खूब बढ़-
चढ़ कर दौड़-दौड़ कर काम करता है। जितना आप कहो उससे इक्कीस ही करता है उन्नीस नहीं। उसका
उत्साह देखने लायक होता है। उसका सलाम करने का अंदाज़। कभी गौर से देखिएगा पूरी बॉडी
लेंगवेज़ ही अपने आका का शुक्रिया अदा कर रही होती है
यूं देखा जाये तो हम सब कार्यवाहक
ही तो हैं। कार्य करते हैं तो पेट भरता है। समाज को ये कार्यवाहक लोग संदेश देते हैं
कि कार्य करते रहो। रुको नहीं ! अधिकतर देखने में आता है कि लोग परमानेंट होते ही अर्थात
नियमित होते ही कार्य करना बंद कर देते हैं और जहां बंद नहीं करते वहाँ कार्य में शिथिलता
तो आ ही जाती है। जबकि कार्यवाहक नित्य-प्रतिदिन एक दम चुस्त-दुरुस्त चाक-चौबन्द आपके
इजलास में खड़ा रहता है। क्या हुकम मेरे आका ?
इन सब के चलते आजकल आप जित देखो
तित कार्यवाहकों की एक फौज देखेंगे। कार्य कराने का गुर बोले तो सीक्रेट आउट हो गया
है, जी हाँ लीक हो गया है। जो ‘डेयरिंग’ कार्यवाहक दिखाता है वह नियमित नहीं। आप पुलिस महकमे को देख लो, डिस्ट्रिक एडमिनिस्ट्रेशन को देख लो। सरकार के हर मंत्रालय में आपको कार्य
करने वाले कम मिलेंगे कार्यवाहक अधिक। हम सब भी तो कार्यवाहक ही हैं। पता नहीं इन लोगों
को ‘एक्टिंग’ क्यों कहा जाता है मसलन एक्टिंग
चीफ, एक्टिंग चेयरमेन, एक्टिंग डाइरेक्टर।
भाई हम सब एक्टिंग ही हैं। आपने सुना नहीं किसी सयाने ने कहा है “जीवन के रंगमंच पर
हम सब एक्टर्स हैं और एक्टिंग ही कर रहे हैं”। इसमें नियमित क्या और कार्यवाहक क्या
? फिर भी कार्यवाहक सभी के मन को ज्यादा भाता है। कारण कि वह
समय पर बड़े से बड़ा कार्य निकाल देता है किसी को कानों कान खबर नहीं होती। शॉर्ट नोटिस
पर कार्य को सरअंजाम दे देता है। सवाल नहीं पूछता। आपको सोचना नहीं पड़ता है उल्टा वो
ही आपको खुश करने के अलग-अलग तरीके सोचता और ढूँढता रहता है। वह अपनी नई ‘कार्यवाहक’ पदवी पाकर निहाल हो रहा होता है इधर आप एक
नवीन ‘वाहक’ पाकर हर्षित हो रहे होते हैं।
अब आप उस पर कोई कार्य (बोझ) डालिए वह इठलाता बल खाता उड़ चलेगा।
No comments:
Post a Comment