नेता जो न कहे
थोड़ा, जो न करे थोड़ा। इस सीरीज़ में लेटेस्ट है यदि आप गोबर में लोटते हैं और गोबर के
सान्निध्य में गोबर से लथ-पथ रहते हैं तो
आप कैंसर से बच सकते हैं। यह कोई छोटी बात नहीं। हमें वैसे भी अभी तक मेडिकल का
नोबल पुरस्कार नहीं मिला है। पता नहीं यह क्लेम अभी तक नोबल पुरस्कार समिति को
भेजा गया है या नहीं। यदि नहीं भेजा गया है तो हो सकता है कुछ विचार-विमर्श चल रहा
हो। हो सकता है हम अपनी खोज को दुनियाँ को बताना ही नहीं चाहते हों। भई ! देश का
ये सीक्रेट बाहर क्यों जाये। अपनी गोबर-थैरेपी ज़िंदाबाद। जहां दुनियाँ भर की ‘पैथी’ चल रही हों वहाँ एक ‘गोबरपैथी’ और सही। हमारे मुल्क में
स्वमूत्र चिकित्सा चली ही थी।
नेता जी
का यह कहना है कि गोबर में लोट लगाने के साथ-साथ गाय का दूध पीना है और गाय को
सहलाने मात्र से बी.पी. के मर्ज से निजात मिल सकती है। अंग्रेज़ी में कहते हैं ‘डस्ट दाऊ केम...’ उसी तरह ‘गोबर दाऊ केम, गोबर दाऊ आर एंड गोबर दाऊ शैल रिटर्न’। पहले घर-बाहर
गोबर ही गोबर होता था। घर-चौबारा गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह इकनोमिकल होता था।
गोबर में एक निश्चित अनुपात में भूसा, मिट्टी, आदि मिला कर घर तक बन जाते थे। जो गर्मी में ठंडक और ठंड में गर्मी का
एहसास दिलाते थे। गोबर हमारी राष्ट्रीय पहचान है। आपने कहावत सुनी होंगी। फलां
गोबर-गणेश है, उसने सब काम गुड़-गोबर कर दिया। तुम्हारे सिर
में गोबर भरा है।
कंडे बोले तो उपले सदियों तलक हमारे ईंधन
रहे हैं। यह कितना सुलभ था सबको पता है। हम चूल्हे, अंगीठी, स्टोव से होते-होते आज माइक्रोवेव और कंडक्शन
हॉट-प्लेट तक पहुंचे हैं मगर सोच के देखो उपले कितने किफायत वाले रहे हैं और घर की
महिलाओं को सुबह से शाम तक बिज़ी अलग रखते थे। गोबर थापना, उपले
बनाना, दीवाल से उनको निशाना साध कर चिपकाना और फिर सूखने पर
छुड़ाना। इकट्ठे कर टोकरी में कायदे से रखना और बारिश से बचाने को सेफ जगह रखना।
इसी में ज़िंदगी कट जाती थी। फेसबुक चेटिंग और वाट्स अप के लिए टाइम कहाँ था। इससे
कितना सुख था जीवन में।
मैं सोच रहा हूँ नेताजी थोड़ी और रिसर्च
करें तो और भी अनोखे अनोखे सूत्र हाथ लग सकते हैं। मसलन गोबर का साग, गोबर की चाय, गोबर की रोटी, बंदूक में गोबर की बुलेट, गोबर की टोपी/हैट। रिसर्च
उन्नत होते-होते यह भी हो सकता है की हमारे वस्त्र गोबर से बनने लग जाएँ। असीम
संभावनाएं हैं गोबर में। बस नेताजी ये ही वाले रहने चाहिए। कहीं हार-वार गए तो सब
किया धरा गुड़-गोबर हो जाएगा।
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