Ravi ki duniya

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Thursday, October 31, 2024

व्यंग्य : पिज्जा को लेकर देवरानी ने की जेठानी हत्या

 


 

 

            यूं भारतीय समाज में जेठानी-देवरानी के आपसी रिश्ते कोई बहुत स्वीट किस्म के नहीं होते हैं। पहले भी उनके मन-मुटाव की खबरें अक्सर आती रहतीं हैं। हिन्दी फिल्मों में भी एक अगर निरुपारॉय है तो दूसरी शशिकला एक तेज तर्रार ललिता पवार है तो दूसरी दीन-हीन  वहीदा रहमान। लगाई-बुझाई इस रिश्ते का सामान्य फीचर है। पर ये तो अति ही हो गई कि देवरानी ने पिज्जा के चलते जेठानी की हत्या ही करवा दी। मैंने एक नेता जी का कभी एक बयान पढ़ा था ये फास्ट फूड, ये चाइनीज़ खाने से और तिस पर मोबाइल के इस्तेमाल से हिंसक प्रवृति पनपती है। अब लगता है नेता जी सही ही कह रहे थे। देखो! एक पिज्जा के चलते ! ऐसा देखा न सुना। कहते हैं किसी भी पिज्जा की कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि उस पर टॉपिंग किस चीज़ की है, चिकन की है, मशरूम की है, टमाटर की है, चीज़ की है। अब ऐसी भी क्या टॉपिंग रही होगी कि देवरानी ने जेठानी की जान ही ले ली।

 

           सोचो ! पिज्जा खाना कितना खतरनाक है। कितनी हिंसा की प्रवृति इस एक पिज्जा के खाने से आती है। केस हिस्ट्री मैंने देखी नहीं है। हो सकता है जेठानी, देवरानी का पिज्जा अक्सर खा जाती हो या क्या पता टॉपिंग-टॉपिंग उतार लेती हो। और गंजा पिज्जा देवरानी को पकड़ा देती हो। हो सकता है देवरानी ने कभी जेठानी का ऑर्डर किया पिज्जा डिलिवरी बॉय से लेकर खुद ही खा लिया हो। कुछ भी हो सकता है। अब सच तो जेठानी को पता होगा या उस पिज्जा को।

 

          देखिये ये सब तामसिक भोजन है। सात्विक तो तनिक भी नहीं। तामसिक भोजन से राक्षसी प्रवृति आती है। मरने-मारने के विचार मन में आते हैं। कभी आपने सुना कि सरसों के साग के लिए, या भिंडी के लिए या फिर मैसूर पाक के लिए कभी घर में भाई-बहनों में या ननद-भाभी में या देवरानी-जेठानी में लड़ाई हुई हो। अब कोई क्या खा कर इडली-वडा के लिए या ढोकला के लिए लड़ेगा। कोई भला आदमी या भद्र महिला लड़ाई मोल नहीं लेगा। मर्डर-वर्डर तो बहूत दूर की बात है।

 

             मेरे घर में तो लड़ाई इस बात को लेकर होती है कि मुझे पिज्जा खाना नहीं आता। मैं पता नहीं क्यों उसे रोटी की तरह खाता हूँ।  जबकि पिज्जा खाने के कुछ आदाब हुआ करते हैं। छोटी-छोटी पुड़िया जिसे ये लोग ‘सेशे’ कहते हैं में से नमक-मिर्च-मसाला छिड़क कर, अज़ब-अज़ब नाम की सॉस के साथ एक-एक त्रिकोणीय टुकड़ा उठा कर खाया जाता है और साथ में आए टिशू पेपर से होंट-मुंह साफ करते रहना होता है। अब रोटी के लिए ऐसे कोई टेबल-मेनर्स नहीं हैं। आप जितना बड़ा/छोटा जैसा मन चाहे कौर/निवाला बना सकते हैं। सब्जी कम लें या ज्यादा, अपनी-अपनी रुचि है। कोई रोकेगा-टोकेगा नहीं। आप रोटी दूध में मीड़ कर भी खा सकते हैं। चीनी या सब्जी भर कर पीपनी सी बना कर भी खा सकते हैं। जैसा मन करे। मैं एक के घर गया तो उन्होने रोटियों को पहले ही चार-चार टुकड़ों में तोड़-फोड़ कर मुझे परोसा। पिज्जा के साथ आप ऐसी लिबर्टी नहीं ले सकते। ऐसी क्या ? कैसी भी लिबर्टी नहीं ले सकते। अब वक़्त आ गया है कि पिज्जा वाले डिब्बे पर ही चेतावनी लिखने लग जाएँ ‘अपने रिस्क पर ऑर्डर करें/खाएं’

क्या खूब शेर है:

               रोने के भी आदाब हुआ करते हैं फ़ानी 

              ये उसकी गली है तेरा ग़म-खाना नहीं 

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