Ravi ki duniya

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Sunday, October 31, 2010

सास... सी एम... और साज़िश



यह घोटालों का आदर्श है या फिर आदर्शों का घोटाला है ? फैसला आपके हाथ है. मुझे तो यह पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का अनोखा और आदर्श मेल लगता है. नेताओं और अफसरों की पार्टनरशिप का खेल है यह. कारगिल के शहीदों की शहादत को कितनी जल्दी भुला दिया. कहने का नजरिया है. आदर्श सोसाइटी के मेम्बर्स यह भी कह सकते हैं कि ये शहीदों को याद करने का उनका तरीका है. भोलेपन की हद तो तब हो गयी जब सेना के बड़े बड़े अफसर यह कहने लगे कि हमें पता ही नहीं था कि यह सोसाइटी हमारे कारगिल के शहीदों की विधवाओं के लिए हैं.



नेताजी कह रहे हैं कि मुझे पता ही नहीं कि मेरे रिश्तेदारों सासू माँ, साला-साली का आदर्श सोसाइटी से कोई लेना - देना है. इसकी कोई भी सूचना मेरे को नहीं. फ़र्ज़ करो कि उनका कोई लेना - देना है भी तो इसमें मेरा क्या लेना देना है ? ये मेरा परिवार थोड़े ही है. मेरा परिवार तो महज़ मेरी पत्नी और बच्चे हैं. ना कि सास, साला-साली. ठीक भी है आदमी सफल हुआ नहीं कि  सब लोग उसे  “दाजिबा.... .दाजिबा” कहने लगते हैं. वो देखते देखते पूरे गाँव का दामाद बन जाता है.




अयिय्यो ! आप तो सचमुच बहुत भोले निकले साहब जी. ये कैसी बर्थडे गिफ्ट आपको मिली है. प्रेस कांफेरेंस में सब आपको ही ‘प्रेस’ करते रहे. आपने क्या बुरा किया जो इमारत की ऊँचाई छह मंजिल से इकत्तीस मंजिल कर दी. महीने में इकत्तीस दिन होते हैं. डवलपमेंट आपकी प्रथम प्राथमिकता है. इकत्तीसवीं नहीं. आखिर छह छह मंजिल की इमारतें बनाने से तो मुंबई न जाने कब जा कर शंघाई बनेगा. ये लोग कभी शंघाई गए तो हैं नहीं, यहाँ बैठे बैठे ही गाल बजाते रहते हैं. वहां जा कर देखें कैसी कैसी गगनचुम्बी इमारतें हैं वहां. ये मुंबई के लोग रेंगनेवाले हैं, ये शंघाई में रहना ‘डिजर्व’ ही नहीं करते हैं.



लोग रोजगार करते हैं मकान खरीदने के लिए यहाँ रिश्तेदारों के मकान खरीदने से आपके बेरोजगार होने की नौबत आ गयी. किसी ने सही कहा है कि इन दूर के रिश्तेदारों से सम्मानजनक दूरी बनाये रखनी चाहिए. ये कौड़ी काम के नहीं. आप भी क्या करें शाम को आपको घर भी तो जाना होता है. भाभी जी के हाथों की गरम चाय भी पीनी होती है. कहते हैं कि प्रिंस एडवर्ड ने अपनी पत्नी के लिए इंग्लेंड के तख़्त को लात मार दी थी.
आपका बलिदान कहीं ऊंचा है. आप तो सास और साली की खातिर तख्ते पर ही लटक गए.मगर आपको उन्हें इस तरह ‘डिसओन’ नहीं करना चाहिए था.अब देखिये न, ना खुदा ही मिला ना विसाल-ए-सनम.




इस सोसाइटी ने अनजाने ही ना जाने कितने ‘आदर्श’ भावी बिल्डर्स, नेताओं और अफसरों को दिए हैं. इस सोसाइटी ने निश्चित ही पब्लिक लाइफ में अनेक ‘आदर्श’ स्थापित किये हैं. सोसाइटी की मेम्बरशिप ऐसी हो कि जिसमें नेता, सैनिक, नौकरशाह सभी हों. सैय्याँ भये कोतवाल अब डर काहे का. एक सरकारी पर्यटन विकास निगम को पर्यटन विकास के सिलसिले में इंडियन फ़ूड पवेलियन विदेश में लगाना था.जब कूपन क्लर्क के नामांकन के लिए फाइल बॉस लोगों के पास गयी तो सबने सूची में अपना अपना नाम जुड़वा दिया. नतीजा ये निकला कि इतने कूपन भी नहीं बिके, जितने बेचने वाले गए थे. जहाँ जहाँ पड़े संतन के पाँव...



इस जगह पहले खुखरी ईको पार्क था. नाम के अनुकूल सबने मिल कर देख लीजिए कैसी खुखरी घोंपी है. जहाँ शहादत की कोई कीमत नहीं और उनके नाम पर बन्दर बाँट (बन्दर कृपया माफ करें ) होगी तो उस मुल्क का भविष्य कितना उज्जवल है आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं.






शहीदों के नाम पर होते रहेंगे हर कदम घोटाले...
वतन पर मरने वालों का यही हश्र ...





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