हम भारतीय बड़े भुक्खड़ किस्म के लोग हैं। वो
क्या बोलते हैं अँग्रेजी में- स्टार्व्ड टाइप। तो सर जी हम तो 'फॉर एवर स्टार्व्ड' हैं। जनम-जनम के भूखे प्यासे।
अकालग्रस्त क्षेत्र के लोग हैं हम। भले हम जनसंख्या में दुनिया में नंबर वन हैं।
वो अलग कहानी है। तिस पर हम गोरी चमड़ी पर जानो-तन और अपने खाते खाली कराने से लेकर
डिजिटल अरेस्ट तक करा लेते हैं। हनी ट्रैप वालों को हम पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी
पड़ती। हम तो खुद तैयार ही बैठे रहते हैं।
पिछले एक महीने से यू ट्यूब वालों की
गहमागहमी देखते ही बन रही थी। हर नयी रील में वो वात्स्यायन से होड़ लेने लगते।
जबर्दस्ती के कयास लगाने लग पड़ते थे। उनकी लार टपक रही थी जैसे एपस्टीन की वो पूरी
की पूरी फाइल इन्हीं को मिलने वाली है। न जाने किस किस को गद्दी से उतार रहे थे।
बस ऐसा समझो एक भभ्भड़ सा मचा रखा था। हर यू ट्यूबर बताता होता था कि कितने भारतीय
इस सूची में हैं किस किस के फोटू निकल कर आएंगे। तब तक बेचारे कभी कहते एक खिलाड़ी
है,
एक मंत्री है, एक उद्योगपति है आदि आदि अब
इनसे कोई पूछे कि अन्यथा क्या आप यूं कहेंगे कि एक एम.टी.एस. है। एक बाबू है जो
आठवें वेतन आयोग का इंतज़ार करते करते लोलिता वाली फ्लाइट पकड़ देश छोड़ गया। या
परेल का परचून वाला था और डोंबिवली का
पंसारी था। अब इनसे भी भला कोई खबर बनती है। खबर बनाए रखने को तो बड़े बड़े नाम ही
दरकार होते हैं। फिर भले आप बस छुआ भर दें कि एक क्रिकेटर है (चलो स्पोर्ट्स कोटा
आ ही गया) एक मंत्री है, एक संतरी है।
जिनके नाम नहीं आए मुझे तो उनका ताज्जुब हो
रहा है।,
फिल्म लाइन से निल बटा सन्नाटा। कॉर्पोरेट जगत का क्या हुआ? विपक्ष का क्या सीन है। अब ये न कह देना कि आप या एपस्टीन उन्हें इस लायक
ही नहीं समझते। लोग तो कब से सांस रोक कर इंतज़ार कर रहे थे कि बड़े बड़े मंत्री
लपेटे में आएगे। बम्पर वेकेन्सी हो जाएंगी। वेकेन्सी ही वेकेन्सी एक बार एपस्टीन
के आइलेंड पर दिख भर जाएँ आप।
फिर जैसा कि होना था। सब ओर निराशा का
वातावरण छा गया। ये क्या ? किसी भारतीय की गंदी क्या
अच्छी तस्वीर भी सामने नहीं आई। सब फेल कर गये। फिर वो लगभग खीझते हुए अमेरिका पर
ही फोकस कर पृथ्वी पर भूकंप, सियासत में बवंडर लाने की
गारंटी देते रहे चौबीस घंटे में वो सुनामी भी थम गई।
बस इतना है,
अच्छा खासा वक़्त कटा। एक रोमानी से सुरूर में पूरा देश एक महीने से फेंटेसी में जी
रहा था। तंद्रा टूट गयी। अभी आप जानते ही नहीं। हमने पनामा पेपर का क्या हाल किया
था। उसे वैसे ही मसल दिया था जैसे पनामा सिगरेट पी कर मसल देते हैं। आपने वो मशहूर
शेर सुना ही होगा:
क्या तब्ख़ मिलेगा गुल-फ़िशानी कर के
क्या पाएगा तौहीन-ए-जवानी कर के
तू
आतिश-ए-दोज़ख़ से डराता है उन्हें
जो आग को पी
जाते हैं पानी कर के
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