कभी एक जोक बहुत चलता था। एक दूल्हे को
हाथ-पैर बांध कर घोड़ी पर बिठा रखा था। कारण कि जब बारात में पैसे लुटाते हैं
(सिक्के वारते हैं) तो ये उतर कर लूटने लगता है। यह बार-बार सिक्के इकट्ठे करने
उतर जाता है। पता नहीं था यह जोक इतनी जल्दी सच भी साबित हो जाएगा। खबर आई है कि
एक सूबे के एक सामूहिक विवाह में अव्यवस्था फैल गयी। जब सामूहिक विवाह में आए लोग
लूटमार में लग गए। हमारे देश में शादियों ये लुटने-लूटने की परंपरा ऐतहासिक है। यह
लूटने की घटना उसी ऐतहासिक परंपरा की क्लाइमेक्स है जहां दूल्हे राजा खुद अपने
विवाह में लूटमार में मशगूल पाये गए। जहां अन्य दूल्हे और साथ आए बाराती ज्यादा
लकी साबित हुए अर्थात वे महंगी और बड़ी-बड़ी वस्तुओं को लूटने में कामयाब हुए जबकि
जिस दूल्हे महाराज की हम बात कर रहे हैं अर्थात जो खबर बना वो तो अद्भुत ही कहा
जाएगा।
पता नहीं इस शख्स को यदि यह मालूम होता कि
उसकी फोटो ली जा रही है तब भी क्या वह लूटमार करता रहता? खबर के साथ जो फोटो आई है उसमें वह चिप्स के पैकेट की लड़ी लूट कर साँप की
तरह गले में डाल कर ले जाता दिख रहा है। खबर का शीर्षक भी मनोरंजक है अपनी ही शादी
में दूल्हा चिप्स लूटते हुए। शादी असल में लुटने-लूटने का ही पर्यायवाची बनता जा
रहा है। वो टाइम गया जब इस सब के लिए दूल्हे के पक्ष को ज़िम्मेवार माना जाता था।
पूरे प्रकरण में वही विलेन बन कर निकलते थे। अब ऐसा नहीं है अब तो वर से कहीं
बढ़-चढ़ कर वधू खुद चाहती है की उसकी शादी इतनी धूमधाम से हो फलां का डिजाइनर लंहगा
होना ही होना है। लेडीज संगीत होना है। प्री-वेडिंग शूट भी चाहिए। बेहतर हो
डेस्टिनेशन वेडिंग हो। इन सबके ऊपर दहेज का दानव तो और खतरनाक हो गया है।
पता ये चला है कि इस सामूहिक विवाह का आयोजन
सूबे की सरकार के सौजन्य से हुई थी। एक अच्छा खासा बजट प्रति दूल्हा-दुल्हन तय
हुआ। उसी तरह से आधे से अधिक वधू के बेंक के खाते में डाल दिये जाते हैं और बाकी
रकम के उपहार और उनके अल्पाहार और आहार पर खर्चे जाते हैं। इस केस में कुछ ऐसा हुआ
कि दूल्हे के पक्ष के लोग अल्पाहार और अन्य खाद्य सामग्री लूटने में मुब्तला हो
गए। उनकी देखा-देखी भला वधू पक्ष के लोग कब पीछे छूटने वाले थे। उन्होने आव देखा न
ताव और पूरी निष्ठा से वहाँ रखा ‘दहेज’/उपहार
लूटने में जुट गए। उनके फोटो शूट को आए फोटोग्राफर वे अब इस लूट की लाइव शूटिंग
में लग गए बोले तो कैंडिड फोटो शूट होने लग पड़ा और अगले दिन के अखबार की सुर्खियां
बन गया। इस केस की स्टडी करके जो केस स्टडी सामने आई है उसके अनुसार:
1. अल्पाहार /आहार के काउंटर पर अफसर नदारद
थे जबकि वहाँ व्यवस्था बनाए रखने के लिए अफसर और पुलिस का इंतज़ाम इस काउंटर पर
होना चाहिए था और ‘क्यू’ की व्यवस्था को देखभाल को पर्याप्त पुलिस बल होना चाहिये
था।
2. जहां दहेज का सामान-असबाब/उपहार रखे थे
वहाँ पर्याप्त पुलिस बल होना चाहिए था।
वैसे बेहतर तो यह होता कि ये उपहार अलग कहीं दूर सुरक्षित रखे जाते और वक़्त आने पर
ही निकाले जाते अथवा जहां इतना खर्चा, वहाँ थोड़ा
और करके इन उपहारों की 'होम डिलीवरी' करा
दी जाती
3. ये लूटमार गैंग तो सीमित रही होगी। 350
जोड़ों में ऐसे बहुत कम रहे होंगे जो लूटमार में मशगूल थे ज़्यादातर तो शांतिप्रिय
रहे होंगे। यह नहीं पता चला कि ये लूटमार शादी मुकम्मल होने के बाद शुरू हुई या
शादी से पहले ही चालू हो गई।
4. लाइव वीडियो कवरेज से यह पता चल जाएगा कि
इसमें कौन कौन शामिल था उनको सरकारी ससुराल (जेल) भेजा जाये। ताकि आने वाले
दूल्हा-दुल्हन को सीख मिल सके।
5. शादी का यह ‘शो’ करना ही क्यूँ? क्यों नहीं अब क़ानूनी (कोर्ट मैरिज़) करा दें और उन्हें किसी ठीक-ठाक से
होटल में लंच के कूपन दे दिये जाएँ। ऐसा लगता है कि आप इसे अपने हित में ‘ईवेंट’
चाहते हैं। फलां चीफ गैस्ट ने ये कहा वो कहा। आप भी तो अपने लिए ‘गुडविल’ और ‘वोट’
लूटना चाह रहे हैं।
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