देखिये सरकार है तो दफ्तर हैं। दफ्तर हैं तो
मीटिंग हैं। ये सभी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक के बिना दूसरे की परिकल्पना संभव नहीं। अब सरकारी मीटिंग में
बहुत दिमाग खपाया जाता है। जिससे बहुत भूख लगने लगती है। बिना चाय-कॉफी ये मीटिंग
संभव नहीं होतीं। अब खाली चाय-कॉफी पीने से 'एसिडिटी'
हो जाती है। अतः उसकी रोकथाम के लिए यह बहुत जरूरी है कि साथ में
कुछ ठोस खाया जाये। जैसे दारू के साथ चखना होता है। बिना चखना दारू पीना स्वास्थ्य
के लिए और अधिक हानिकारक है उसी तरह चाय-कॉफी के साथ कुछ न कुछ चाहिए। अब इस ‘कुछ’
में बहुत कुछ आ जाता है और बहुत कुछ है जो छूट जाता है। इससे ध्यान बंटता है।
मीटिंग में कंस्ट्रेशन नहीं बन पता। अब
अगर मीटिंग में कंस्ट्रेशन नहीं होगी तो मीटिंग फेल हो जाएगी। परिणामतः दूसरी
मीटिंग करनी पड़ेगी अथवा और बड़ी मीटिंग करनी पड़ेगी। इससे खर्चा और बढ़ेगा। अतः पहली
बार में ही मीटिंग में सभी सदस्यों को तृप्त कर देने वाले आइटम रखे जाएँ।
मंत्रालय ने बहुत गहन विचार विमर्श करके और
प्रैक्टिकल करके अर्थात सभी आइटम्स के सेंपल चैक करके तय पाया कि एक यूनिफ़ॉर्म
मेन्यू का निर्माण किया जाये। यह नया भारत है।
यह पुराने मेन्यू से बहुत चल लिया अब हमें एक शानदार किन्तु सनातन मेन्यू
चाहिए। यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड हमारा ध्येय है अतः उसकी शुरुआत यूनिफ़ॉर्म मेन्यू से
ही क्यूँ न की जाये। 'जैसा खाये अन्न, वैसा हो जाये मन' इसी को इंगलिश में बोलते हैं ‘एज़
इज़ फूड, सो इज़ दि मूड’ अंतर-मंत्रालय की मीटिंग्स कर कर के
इस समावेशी मेन्यू का सघन जांच रिवीजन ( SIR ) कर दिया जाये।
भले वोट वाला SIR गोपनीय है किन्तु यह एकदम सबके सामने है।
बेकार में आप लोग नहीं तो आर.टी.आई. में पूछ-पूछ कर अपना और आयोग का टैम खराब करते
हो इसलिए यह खुल्ला खेल फर्रुखाबादी रखा गया है आप भी जान लीजिये ताकि अगली मीटिंग
में आप जलपान देख कर अचरज न करने लगें। नाक-भौं न सिकोड़ने लगें। आजकल दफ्तर-दफ्तर,
गलियारे - गलियारे सी.सी.टी.वी. लगे हैं अतः इस मेन्यू पर कोई भी
प्रतिकूल टिप्पणी आपके 360 डिग्री रिव्यू को भी प्रतिकूल
टिप्पणियों से भर सकती है। फिर करते रहना घर बैठ कर मनपसंद जलपान।
शॉर्ट नोटिस अथवा शॉर्ट मीटिंग्स
1. चाय/कॉफी /मसाला छाछ/ फलों का ताज़ा रस / मीठी लस्सी (केवल एक)
2.
6 बादाम
3. 2 कुकीज़ (बोले तो बिस्कुट)
लॉन्ग नोटिस अथवा पूर्व निर्धारित लंबी मीटिंग्स
1. उपरोक्त सभी
2. निम्न में से दो आइटम अतिरिक्त
3. वेज सेंडविच / पनीर ‘कटलस’ / आलू बोंडा/ ढोकला/समोसा
इससे पहले आप उपरोक्त मेन्यू में मीन-मेख
निकालें यह जान लें कि यह डायनिमिक मेन्यू है। बहुत सी चीजें अभी स्पष्ट नहीं हैं।
जैसे चाय,
डिप-डिप होगी या रेडीमेड, चीनी पहले से पड़ी
होगी या अलग से 'सेशे' दिये जाएँगे,
चीनी ब्राउन होगी या सफ़ेद। इसी तरह कॉफी नेसकैफे होगी या ब्रू अथवा
इंडियन कॉफी हाउस मार्का फिल्टर कॉफी ? क्या कैपिचीनो का
विकल्प होगा? फलों के रस के बारे में भी स्पष्टता नहीं है ।
यह मौसमी फल होंगे? क्या इनमें विकल्प रहेगा या वही
पिटा-पिटाया ऑरेंज जूस ही मिलेगा। कहीं जूस के नाम पर गन्ने का रस तो नहीं पिला
दोगे जिस पर मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं।
लस्सी, गाय के दूध से बनी दही की होगी अथवा भैंस के दूध से
बनी दही की? बादाम
कैलिफोर्निया वाले होंगे या कागज़ी ? कुकीज़ के बारे में भी
स्थिति क्लियर नहीं है। कुकीज़ के नाम पर कहीं पार्ले- जी अथवा ‘रस’ तो नहीं खिला
दोगे? इसी तरह सैंडविच, पनीर
(नकली-असली) और समोसा की फिलिंग के बारे
में भी भावी कंज़्यूमर को अंधेरे में रखा गया है।
यह मेन्यू
को यदि जन-समर्थन नहीं मिला तो अगला मेन्यू जो प्रस्तावित है उसे सुन कर आप
को यह मेन्यू बहुत मनभावन लगेगा। अगला
मेन्यू केवल घड़े का पानी, चना-मुरमुरा और मूँगफली
रहेंगे। तीसरे फेज में आप को अपने घर से ही स्नैक्स लाने को कहा जा सकता है। अब
आपकी मर्ज़ी चाहें तो आप अखरोट लाएँ, चाहे चिलगोजे लाएँ,
चाहे साग-पूड़ी। बस इतना ध्यान रखें कि यह शुद्ध शाकाहारी सनातनी हो।
इंगलिश में कहावत है कि यदि आप ‘मूँगफली’ देंगे तो आपको 'बंदर'
ही मिलेंगे। माइंड इट !!
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