Ravi ki duniya

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Tuesday, December 23, 2025

व्यंग्य: रसगुल्ला और शादी

 

 

मेरे भारत महान के एक सूबे में एक शादी में रसगुल्ले खत्म हो जाने पर तगड़ा विवाद हो गया। विवाद भी इस हद तक का कि आपको समझाने के लिए इसकी पूरी ए.बी.सी.डी. समझानी पड़ेगी। यह ‘ए’ से आर्गूमेंट्स से शुरू हुआ बोले तो अबे-तबे करने लगे।  फिर ‘बी’ से  बड़बड़ाने लगे, क्या घराती क्या बराती। ‘सी’ से छीना झपटी शुरू हो गई। छीना-झपटी जल्द ही ‘डी’ से धक्का मुक्की में बदल गयी। बस फिर क्या था, कुछ जोशीले लोग जो शाम के लिए '' से इंगलिश वाइन लाये थे उन्होने टेंशन के मारे दिन में ही खोल ली। पीते जाते और गाली गलौज करते जाते तो ‘एफ’ से फाइट चालू हो गयी। अब घराती तो अपनी होम पिच पर खेल रहे थे वे संख्या में कहीं ज्यादा थे। ये क्या बात हुई कि रसगुल्ले जैसी चीज़ को भी बारातियों को तरसना पड़े। लड़की वाले सोच रहे थे कि यह चूक कहाँ कब कैसे हो गयी।  '' से इंगलिश वाइन, 'एफ' से फाइट शुरू हो गई, 'जी' से गुड बाई कहे बिना शादी बारात वापिस।

 

देखिये हमारे हिंदुस्तान में बारातियों को क्या खाना खिलाया गया। खाना कितना लज़ीज़ या कितना खराब था यह बात सालों याद रखी जाती है और इसका ज़िक्र भी किया जाता है। बारातियों की आवभगत एक औसत शादी का महत्वपूर्ण कम्पोनेंट है। मैं ऐसे लोगों को जानता हूँ जिन्होने पहले ही स्पष्ट कर दिया कि उनको दहेज नहीं चाहिए उन्हें तो बस अच्छा खाना और बारातियों की फुल- फुल आवभगत चाहिए। उनकी इज्ज़त का सवाल है।

 

अब इस पसेमंजर में आप ये अदने से रसगुल्ले को देखें। भला ये क्या बात हुई कि साब अभी खाना खुला भी नहीं की आपने या आपके लोगों ने  रसगुल्ले मेन कोर्स की तरह और मेन कोर्स से पहले ही खत्म कर दिये। स्वीट डिश खत्म। खत्म तो खत्म। आपके घराती लोग अपनी प्लेट में आठ-आठ, दस-दस रखे घूम रहे हैं और हमें चिढ़ा रहे हैं ये क्या मज़ाक है? हमारी, हमारे गेस्टों की कितनी बेइज्जती हुई आप अंदाज़ा नहीं लगा सकते। देखिये एक रसगुला कितना हल्लागुल्ला मचा सकता है। इसका नाम भले रसगुल्ला है पर ये अपनी पर आ जाये तो शादी तक तुड़वा सकता है और वो ही हुआ भी। बारात बिन शादी बिन दुल्हन लौट गई।


लड़के वाले जो हिंदुस्तान में अपनी ही ठसक में रहते हैं उनका कहना है कि रसगुल्ला कोई इशू ही नहीं इशू तो ये है कि हमारा अपमान हुआ है। आज ये हाल है कल क्या होगा,? कैसे संस्कार दिये हैं? हो सकता है बहू हमें खाना ही नहीं दे कह दे की खत्म हो गया। जाओ हवा खाओ। भाई अगर रसगुल्ला खत्म हो सकता है तो भोजन क्यों नहीं? यह तो सुघड़ गृहिणी के लक्षण नहीं। इसमें सारा दोष उन लोगों का है जिन्होंने रसगुल्ला को प्रतीक मानते हुए बहुत कुछ कह दिया। ये छीना-झपटी क्या कहती है? क्या बताती है? यह दरअसल पोल खोलती है हमारे समाज की। क्या हम रसगुल्ला के इतने अकाल में रहते हैं। वो रसगुल्ला किस काम का जिसमें रस ही नहीं, जो जीवन में रस ही न भर सके, उल्टा हमारा आपसी साहचर्य और भ्रातृभाव के रस को ही सुखा दे। ये रसगुला हमारा नया दुश्मन है। यह न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है (डायबिटीज़ वालों से पूछो बेचारे कैसे धो-धो के, निचोड़- निचोड़ के रसगुला खाने को विवश हैं) किन्तु अब तो यह सामाजिक वैमनस्य का सबब बन गए हैं। यह रसगुल्ले के अपने अस्तित्व के लिए कोई मुफ़ीद बात नहीं। मेरा सुझाव है कि रसगुल्ले का या तो बहिष्कार ही कर दें। यदि यह संभव न हो तो दो-दो रसगुल्ले की डिब्बी बना ली जाएँ और उन पर स्लिप से नाम लिखवा दिये जाएँ कि कौन सा डिब्बा किस गैस्ट को दिया जाना है।

 

यूं देखा जाये तो ये स्वीट डिश है ही ऐसी चीज।  नाम तो इसका स्वीट है पर यह जीवन में, समाज में कड़वाहट घोल रही है। आप चाहें आइस क्रीम ले आओ, उस पर भी लोग टूट पड़ते हैं और पूरे साल का 'कोटा' इसी शादी से पूरी करना चाहते हैं। आप गाजर का हलवा ले आओ उसका भी यही हाल करते हैं। क्या घराती क्या बाराती। एक सुझाव ये भी है कि आप स्वीट डिश का एक कूपन दे दो, भैया घूमते हुए जाना और उनके किसी भी शहर के ऑउटलैट से ले सकते हैं। मुझे तो दूल्हा-दुल्हन पर दया आ रही है। उनका क्या दोष? इस रसगुल्ले ने तो उनके जीवन से जैसे रस ही सोख लिया। ये कैसा रसगुल्ला है जी ?

 

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