यह
ऐसा क्यूँ होता है कि बाहर गाँव के डिपार्टमेंटल स्टोर को देख कर हम
हिंदुस्तानियों की लार टपकने लगती है। उँगलियाँ फड़कने लगतीं हैं। क्या हमें पता
नहीं होता कि वहाँ कदम-कदम पर सी.सी.टी.वी. लगे रहते हैं और आप हरदम उसकी जद में
रहते हो। जबकि वहाँ बाउंसरनुमा सिक्यूरिटी भी होती है। उनके क़ानून भी बहुत सख्त
होते हैं। जैसे आप गोरी चमड़ी से हिंदुस्तान में आतंकित हो जाते हो वैसे ही वे लोग
हम ब्राउन, यलो, ब्लैक को देख
कर, मोटा मोटा कहें तो एशियन को देख कर शंकित हो जाते हैं।
वे जानते हैं “डेव कुछ तो गड़बड़ है !” ये कुछ तो भानगड़ करेगा। मैंने सुना है वहाँ
होटल/रेस्टौरेंट चला रहे पाकिस्तानी और बंगलादेशी भी अपने आप को इंडियन बताते हैं।
कारण कि चेहरा मोहरा एक से होते हैं। यद्यपि चीन, जापान,
कोरिया वाले अलग पहचान में आ जाते हैं। हमारी तो आदतें भी एक सी
हैं। जैसे यहाँ-वहाँ थूकना। सड़क चलते कुछ भी इधर-उधर फेंक देना। ज़ोर ज़ोर से मोबाइल
फोन पर बात करना। दाँत फाड़ कर हँसना। घूरना।
फिर ऐसा क्या लालच घेर लेता है हमें कि हम इतना बड़ा रिस्क लेकर कपड़े, हों, खाने का सामान हो, यहाँ
वहाँ छुपा लेते हैं। ये सोच कर कि कोई
नहीं देख रहा। एक कहावत है कि प्रेमी जोड़ा समझता है जग अंधा है जबकि सच ये है कि
जहां से वे गुजर जाते हैं अंधे को भी पता चल जाता है। इसी तरह उनकी तेज़ नज़रें और
सी.सी.टी.वी. मिल कर सब उघाड़ देते हैं। उन्हें पता नहीं सिखाते हैं कि नहीं हमारे
देश में तो शुरू से ही बच्चों को सिखाया जाता है चोरी करना पाप है और झूठ नहीं बोलना चाहिए इससे कान पक जाते हैं।
ऐसे ही कुछ और सीख किताब में डालनी चाहिए जैसे घूरने से आँख आ जाती है। चोरी की
कोई चीज़ खाने से पेट में भयंकर दर्द होता है आदि आदि। जैसा मैं मानता हूँ और कहता
हूँ हमारे मआशरे में रोल मॉडल की बहुत कमी
है। अकाल पड़ा हुआ है। किसे देख कर आप कहेंगे
कि बेटा बड़े होकर ऐसे बनना। अतः सौ बातों की एक बात कह देते हैं बेटा बड़े होकर खूब पैसा कमाना। पैसा सब चीज़
ज्स्टीफ़ाई कर देता है। फिर साधन (माध्यम) गौण हो जाता है। उस बंदे को सक्सेसफुल
कहा जाता है। रिसोर्सफुल कहा जाता है। अगला भी हवा में आ जाता है और यदाकदा कुछ
चेरिटी जैसी चीज़ कर देता है।
हाँ तो डिपार्टमेंतल स्टोर, वो भी विदेश के। जो आपको पहले ही हेय दृष्टि से देखते हैं उनके स्टोर में
चोरी, फिर पकड़े जाने पर आप रियायत की उम्मीद करते हैं। एक
बात और बताओ आप क्यूँ नहीं पकड़े जाने पर कह देते कि आप बंगलादेश से हो या
पाकिस्तान से हो। या फिर उन्होने कोई ऐसी बिधी निकाल ली है कि वो आपको देख कर ही
पहचान लेते हैं कि आप खालिस हिंदुस्तानी हो। मुझे कोई बता रहा था कि आप यदि सड़क पर
थूकते हैं तो ये शुद्ध हिन्दुस्तानी ट्रेट है। पर ऐसे तो कई पैरामीटर हो सकते
हैं। यथा पब्लिक में खुजाना, दूसरे के फोन में झांकना, लपक के सीट पकड़ना और किसी
और को न बैठने देना। क्यू तोड़ने का जुगाड़ लगाना। बात बात पर आर्गु करना।
ताज्जुब की बात है कि ये शॉप लिफ्टिंग के
केसों में हमारी फिल्मी तारिकाएँ तक पकड़ी जाती हैं। फिर कहानी सुनाती हैं मैं तो
ये समझी थी…मैं तो वो समझी थी... ओह ! वो
कुछ मिसअंडरस्टेंडिंग हो गयी थी...मेरी शक्ल उनकी डाटा बेंक में दर्ज़ किसी चोर से
मिलती जुलती थी। हम जानते हैं ज़न्नत की हकीकत। मुझे पता नहीं वो फाइन लगाते
हैं या जेल में रखते हैं। हम कहीं चले जाएँ अपना हिंदुस्तानीपना नही भूलते। दुख की
बात है कि वहाँ जाकर भी हम ऑनर किलिंग कर रहे हैं। चोरी, हत्या, ड्रग्स सबमें बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी रखते हैं।
डिपार्टमेंटल स्टोर की चोरी रोकने का एक उपाय ये है कि उनको सीधा एयरपोर्ट ले जाकर
घर वापसी करा दी जाये। और ब्लैक लिस्ट कर दिया जाये। पर फिर हम और कहाँ जाएँगे ?
यहीं चोरी का सुभीता होता तो बाहर ही क्यूँ जाते। जितना बड़ा मन में
अभावों का गड्डा रखोगे उतना ही बड़ा लालच और उसी गति से मन उद्वेलित होगा। उँगलियाँ
फड़केंगी। चोरी करना पाप है। दाऊ शेल नॉट कोवेट ...टेन कमांडमेंट्स
में से एक है, पर फिर वही बात:
कसूर मेरा नहीं रोटी की कसम
भूख की दुनिया में ईमान
बदल जाता है
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