अमेरिका ने अपने वीज़ा की फीस सीधे एक हज़ार
डॉलर से बढ़ा कर एक लाख डॉलर कर दी है। इससे हमारे भारत महान में खुशी की लहर दौड़
गयी है। बक़ौल सरकारी प्रवक्ता, यह एक 'गोल्डन-अपॅरचुनिटी' है
इसके लिए हमें अमेरिका का शुक्रिया अदा करना चाहिए। कारण कि अब ये सत्तर लाख टैकी
जब घर वापसी करेंगे तो दुनिया की कोई ताकत इंडिया को महान बनने से रोक नहीं सकती।
अमेरिका का आव्हान अगर ‘मागा’ (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) है तो हमारा ‘मीगा’ (मेक
ग्रेट इंडिया ग्रेट अगेन) है। अब अगर मीगा
बनना है तो उसके लिए 'हार्ड-डिसीजन' लेने
पड़ेंगे। वो एक कहावत है न 'डेस्परेट टाइम्स नीड डेस्परेट
मैजर्स'। अतः यह एक 'गाॅड- सेंट'
अवसर है। आपदा में आपको अवसर मिला है। हमारे यहाँ तो इसका सरकार ने
खूब ही 'वैलकम' किया है।
अब हमने 'मीगा'
कह तो दिया। अमेरिका वालों ने इसे सीरियस ले लिया। उसने पूरा सहयोग
दिया कि भारत को ग्रेट बने। सोचने वाली बात ये है कि ये लोग जब घर वापसी करेंगे तो
हम इनका करेंगे क्या ? क्या हमारे पास इनके लिए पर्याप्त
नौकरियाँ हैं। यूं वैसे तो दो करोड़ जॉब्स में यह कोई मुश्किल भी नहीं। सोचो क्या
ग़ज़ब समां रहेगा। मनरेगा से सीधे मीगा। नौकरी मैंने इसलिए कहा कि अब हरेक को बिजनिस
करना तो आता नहीं। और क्या कर सकते हैं ? जामतारा ? मेवात ? वो भी सेचुरेट हो गया है। मुझे डर ये है और
ये डर वर्तमान में मनरेगा में लगे लोगों को भी है कि ये सब अमेरिका से आएंगे तो
उनको उतना न्यूनतम काम मिल भी पाएगा ?
इस प्रस्तावित घर वापसी को सब अपने-अपने
चश्मे से देख रहे हैं। एक वर्ग का कहना है कि अभी भारत 5 ट्रिलियन की इकॉनमी के लिए संघर्षरत है। मगर जैसे ही ये सत्तर लाख आए तो
आप समझो हम नंबर वन तो नहीं (ये कुछ ज्यादा हो जाएगा) नंबर दो तो बन ही जाएँगे।
विश्वगुरू हम पहले से हैं हीं। हमारे दोनों हाथों में लड्डू हैं। हमारे इन सत्तर
लाख लोगों को भी तो हक़ है कि वे अमृत काल में अमृत-पान करें। हमें ये शोभा नहीं
देता कि हम स्वार्थी बन अपने भाई-बहनों को इससे वंचित रखें।
एच-1 बी का तो
अर्थ ही ये है। एच फॉर हिंदुस्तान। बस !
तो ये सोचो हम डेढ़ अरब तो ऐवें ही 'टाइम पास' करते रहे। असली ब्रेन तो अब आयेंगे। वो भी दो चार दस नहीं पूरे सत्तर लाख।
सोचो ! सत्तर लाख प्रखर, प्रतिभाशाली लोग यहाँ गली-गली,
मोहल्ले-मोहल्ले दफ्तर-दफ्तर नज़र आएंगे तो क्या सीन रहेगा। मेरी
चिंता यह है कि ये लोग का मार्किट में कितना प्रेशर रहेगा। क्या रियल स्टेट,
क्या माॅल, क्या कपड़े, क्या
कारें। अब इस के सामने हम शुद्ध भारतीय नागरिक कैसा लाचार सा फील करेंगे वैसे ही
जैसे बंगलोर, पुणे के सामान्य नागरिक फील करते होंगे। दूध से
लेकर दारू तक मंहगी हो जाती है। मकान के किराये आकाश छूने लगते हैं।
ये सत्तर लाख टैकी के लिए हमारा प्लान क्या
है ?
क्या उनके लिए नौकरियाँ हैं ? या वो अप्रेंटिस
से शुरुआत करेंगे? हो सकता है हम इन्हें संविदा पर रख लें।
इससे स्मार्ट सिटी ही नहीं बनेगे बल्कि स्मार्ट राज्य, स्मार्ट
इंडिया बनेगा। और कुछ नहीं तो अग्निवीर तो बन ही सकते हैं।
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