Ravi ki duniya

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Wednesday, September 3, 2025

व्यंग्य : कन्हैया माखन चोर नहीं थे


  

पीछे नेता जी ने एक स्टेटमेंट दिया है। नेता जब बोलते हैं उसे स्टेटमेंट कहते हैं। उनका कहना है कि कृष्ण कन्हैया माखन चोर नहीं थे। यह तो मुग़लों की साजिश थी। उन्होने सूरदास को कुछ लोभ-लालच अथवा धमका कर लिखवा लिया। बेचारे सूरदास बातों में आ गये। सूत्रों से पता चलता है कि उनको नई तकनीक से विदेश में आँख के ऑपरेशन का आश्वासन दिया था। आश्वासन बहुत कारगर चीज़ है। इसके चलते देश में सियासत खूब चमकती है। और जैसे ही आश्वासन का मुलम्मा फीका पड़ने लगे, आश्वासन बदल लें। एक नया आश्वासन ले आओ मार्किट में। जैसे महिलाएं 'सेल' को हाथों-हाथ लपक लेती है उसी तरह वोटर नये नये आश्वासन पा कर फूला नहीं समता। 

 

तो हुज़ूर ! जब लल्ला के मुंह में सारा ब्रह्मांड समाया हुआ था। यशोदा मैया देख-देख अचंभित और अचरज से भरी रहीं। अब हे जनार्दन !  तुम को क्या पड़ी कि तुम माखन चोर बनो। मुझे लगता है ये डेफ़िनिटली कोई बड़ी साजिश का हिस्सा होगा। हे द्वारकाधीश ! आप कुछ भी हो सकते हो पर चोर नहीं हो सकते। यदि आप इनसिस्ट करोगे की वो माखन चोर हैं तो मैं कहूँगा कि हे गिरधर ! आप माखन चोर नहीं आप तो चित्त चोर हो। गोपियों से पूछो! राधा से पूछो! हे मुरलीधर !   आप तो नींद के चुरय्या हो। मीरा से पूछो। हे केशव ! आप  तो चैन चोर हो। रुकमणि से पूछो! माधव और माखन चोर ? नहीं.. नहीं यह झूठ है।

 

 

दरअसल ये चोर वर्ड ही ग़लत है। अब बताओ भला कोई वोट चोर हो सकता है कदापि नहीं। वोट आप मशीन में डालते हो। ये वोट क्या है। ये माखन क्या है। सब माया है। ये दुनिया फ़ानी है। क्या तेरा वोट, क्या मेरा वोट। तू भी इंसान है मैं भी इंसान हूँ। हम दोनों में ही तो ईश्वर का अंश है। क्या तेरा क्या मेरा, सब रैन बसेरा है।

 

 

आप सोचो ! हे नटखट नटवर नागर आप माखन चोर थे भी तो किसके लिए ? जनता के लिए। अब सब के पास तो गाँव में गाय होती नहीं।  गोपाल तो  आप एक ही थे। हे यशोदानंदन  आपने तो बाकी वंचित सर्वहारा वर्ग को देने के लिए ही माखन चुराया था। समस्त संसार का कल्याण ही सदैव कान्हा की प्राथमिकता रही जीवन में। अंग्रेज़ खुद हमारा कितना सामान दौलत संपत्ति चुरा ले गये। इससे पहले कोई उन पर उंगली उठाए आप खुद ही दूसरों को चोर बताने लगे। ऐसा ही कुछ हे किसना आप के साथ हुआ। सो मैं तो इस नतीजे पर पहुंचा कि ये मुग़लों का और अंग्रेजों का षड्यंत्र रहा। हे मोरपंखी !  आपको किस बात की कमी। आप तो देवनहार रहे हैं। ग़रीबपरवर रहे हैं। सुदामा से चिवड़ा लिया जरूर, मगर बदले में कितना शानदार महल बना कर दिया। द्रोपदी ने एक बार साड़ी फाड़ कर मोहन  की उंगली में पट्टी बांधी थी। वक़्त आया तो  हे गोविंद आप ने उन्हें कभी न खत्म होने वाली लंबी साड़ी से नवाजा था। अब ऐसे चमत्कारी को माखन चोर कहना सरासर उनका अपमान है। अब वक़्त आ गया है कि आपके साथ लगा ये टैग हटाया जाये। आप माखन चोर नहीं थे। वो तो ग़रीबों की हालत उनसे देखी नहीं जाती थी। बेचारे रूखी सूखी रोटी खाते थे। अतः हे वासुदेव  आपसे यह देखा नहीं जाता था अत: आप उनके लिए माखन निकाल कर उन्हें दे कर आते था। कई बार जब वो ऐसा करते देखे जाते या पकड़े जाते तो अपने ऊपर आरोप ले लेते थे। ये उन्होंने अपने लिए माखन चुराया है बस एक इसी ग़लतफहमी के चलते उनके नाम के साथ ये जुड़ गया।

 

              अन्यथा कोई और सबूत उनके खिलाफ नहीं मिलता। पूरा इतिहास

 खंगाल लीजिये। हे दामोदर !  आप माखन की तरह साफ शुद्ध उजले निकल कर

 आएंगे।

 

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