Ravi ki duniya

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Monday, September 29, 2025

व्यंग्य : परीक्षा की एंटायर साइंस

 


 

पता नहीं किस दिलजले ने ये परीक्षा का सिस्टम चलाया और ये सिस्टम आज तक हमारा खून पी रहा है। यह कालज़यी है। इसे हम सब परीक्षार्थियों की उम्र लग गयी है। जब से पैदा हुए हैं परीक्षा ही दे रहे हैं। कभी कोई, कभी कोई। इसके चलते न जाने कितने परीक्षार्थी अपने जीवन से अपनी जवानी से हर साल हाथ धो बैठते हैं। एक गाना है न "....ज़िंदगी हर कदम एक जंग है.." । दरअसल, वह कहना यही चाहता है कि ज़िंदगी हर कदम परीक्षा है, एक्जाम है, इम्तिहान है। मेरी पीढ़ी के भुक्तभोगियों से पूछो। हमने पाँचवीं क्लास से बोर्ड की परीक्षा दी है। सोचो ! पाँचवीं क्लास में ही यह परीक्षा रूपी भूत हम मासूमों के पीछे पड़ गया था। कल्पना करिए पाँचवीं का बच्चा अपने मामा जी की उंगली पकड़े स्कूल से इतर दूसरे सेंटर पर इम्तिहान देने जा रहा है। बैरियों को तनिक भी दया नहीं आई। फिर आठवीं बोर्ड और फिर हायर सेकंडरी बोर्ड। इतने से मन नहीं भरा तो हर जगह इम्तिहान। स्कूल कॉलेज का तो मिशन वाक्य यही होना चाहिए। 'परीक्षा ही परीक्षा एक बार मिल तो लें'

 

इसमें हमारे सहायक होते थे, भगवान उनका भला करे, कुछ सहृदय टीचर ! जो परीक्षा से दो-चार दिन पहले ‘इंपाॅर्टेन्ट’ सवाल बता देते थे। हमरे टाइम पर कुंजी/गाइड बहुत चलती थी। एक और वैरायटी थी, ‘गैस पेपर’ की। बुक डिपो से गैस पेपर ले आते थे। वो उस्ताद भी उसे ‘देवर भाभी के किस्से’ की पीली पन्नी मे लिपटी पतली किताब की तरह स्टेपल लगा कर रखते थे। गैस पेपर भी कई ब्रांड के आते थे। सब आपकी इम्तिहान में बल्ले बल्ले का वायदा करते थे। कॉलेज में बाहर ही गाइड के अलावा ‘दुक्की’ भी उपलब्ध होती थी। जो टेक्स्ट बुक की अपेक्षा सस्ती मिलती थी। टीचर पूरे साल कह-कह के थक जाता था कि कुंजी मत पढ़ो, गाइड मत पढ़ो, दुक्की से दूर रहो पर अपनी नाव यही सब पार लगाते थे।

 

तब हमें बिलकुल भी भान नहीं था कि पूरा का पूरा पेपर लीक किया/कराया जा सकता है। अथवा महज़ एक ब्लू टूथ और आप सीना ठोक कर पास हो जाएगे। हमारे टाइम पर ये साॅल्वर वाली सुविधा भी नहीं थी। जो फर्रे, चिट बनाने होते थे खुद ही अपने करकमलों से रात-रात भर जाग कर बनाने पड़ते थे। फिर याद भी रखना पड़ता था कौन से सवाल का उत्तर कहाँ छुपाया है। इस चक्कर में न जाने कितनी कमीजों की 'कफ' की सिलाई उधेड़ी है।

 

 

अब परीक्षा पास करना कितना सुलभ हो गया। आपको साॅल्वर चाहिए ? मिल जाएगा। आपको पेपर पहले चाहिए ? मिल जाएगा। आपको परीक्षा रद्द करानी है ? हो जाएगी। आपको क्लास में नहीं आना है ? ‘जो हुकुम मेरे आक़ा’। आपको परीक्षा देनी ही नहीं है और डिग्री/डिप्लोमा चाहिए? वान्दा नहीं। आप तो कोर्स का नाम बोलो ? 'सिंगल विंडो' के माफिक हमने एक ही छत के नीचे पूरा का पूरा विश्वविद्यालय आपके लिये खोल मारा है। 'आपकी डिग्री आपके द्वार' के अन्तर्गत एम.बी.बी.एस. हो, एम.बी.ए. हो या फिर बी.टेक. डाइरेक्ट आपके एकाउंट में ट्रांसफर कर दी जाएगी। हरकत नहीं। आपको टेंशन नहीं लेनी है। फिर हम कायकू बैठे हैं। आप को फुर्सत कहां। आप तो राष्ट्र निर्माण के महत्ती काम में रत हो। जो अपने आप में बहुत बड़ी परीक्षा है। ये छोटे-मोटे पेपर-वर्क आप हम पर छोड़ दो।

 

                                      ऑल दि बेस्ट !!

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