पहले के ज़माने में अच्छा था डेट ऑफ बर्थ का
कोई ठीक नहीं था। जब बालक का दाखिला कराओ तो वो मोटा-मोटा पूछ लेते थे कब पैदा हुए? पिताजी ने कौन सा रिकॉर्ड रखा हुआ था। वह बता देते जब नौचन्दी का मेला लगा
था, या जिस साल बहुत पाला पड़ा था, या
उसी साल जिस साल बाढ़ आयी थी। हेड मास्टर साब अपनी कैलकुलेशन कर लेते। पहली जनवरी
या फिर पहली अगस्त। आप पाएंगे उस पीढ़ी में पहली तारीख को पैदा हुए लोगों की भरमार
है। दूसरे शब्दों में हैड मास्टर डिसाइड कर देते थे कि आपको कौन से महीने की पहली
तारीख को जन्म लेना है।
इस डेट ऑफ बर्थ के चक्कर में फिर ये हुआ कि
जो मैट्रिक के 'साटिफिकेट' में दर्ज़
है वही रहेगी। हमारे सरकारी विभागों में ऐसे लोगों की खूब तादाद है जो अपनी डेट ऑफ
बर्थ बदलवाना चाहते थे, कारण कि उनका कहना होता था उनके
माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए ग़लत लिखा दी। जबकि असल में वो फलां सन् में
पैदा हुए थे। ये बात अक्सर उनको रिटायरमेंट के आसपास याद आती थी। आपने ऐसे केस भी
सुने होंगे जहां छोटा भाई रिटायर हो गया और बड़ा अभी नौकरी कर रहा है। एक केस तो
ऐसा भी बताया गया कि बेटा रिटायर हो गया, मगर पिताजी
नौकरी कर रहे थे। यह कमाल है डेट ऑफ बर्थ
का।
मैं एक ऐसे उच्च अधिकारी को जानता हूँ जिसका
दावा था कि वह गाँव में अपने दादाजी के साथ रहता था जो शिक्षित छोड़िए साक्षर भी
नहीं थे। मास्साब ने अपने मन से लिख मारा। इन अधिकारी महोदय का मंतव्य था एक दो
साल मिल जाएँ तो राज्य की नौकरशाही का सर्वोच्च पद भी उनकी झोली में आ गिरेगा। मगर
‘मित्र’ लोग भी घात लगाए बैठे थे। उन्होने दस सबूत दे दिये कि अगला सरासर झूठ बोल
रहा है। फर्जी दस्तावेज़ जुगाड़ लाया है। वो कहावत है न:
आधी
छोड़ पूरी को धावे
आधी
मिले न पूरी पावे
एक सैन्यअधिकारी का केस आपके ध्यान में होगा
जिसमें उन्होने कार्ट का दरवाजा भी खटखटाया था कि वे डेट ऑफ बर्थ से कहीं अधिक
छोटे हैं। दिल तो बच्चा है जी। ये सब भानगड़ किसलिए ? क्यों
कि ये अंग्रेज़ लोग डेट ऑफ बर्थ का प्रपंच दे गए। न ये होती न लोग छोटे दिखने की
होड में रहते। नानी-दादी की कोई एज नहीं पूछता था। न उन्हें पता होती था। करना
क्या है ? यही हिसाब लगाते रहो कितने के हो गए और कितना छोटा
दिखना है। खासकर महिलाओं के साथ आजकल ये बहुत बड़ा इशू हो चला है। याद है वह मर्डर
केस जिसमें माँ अपनी बेटी को छोटी बहन बताती रही। सारा ब्यूटी पार्लर का व्यवसाय
इसी के इर्दगिर्द घूम रहा है। हमारे दादा जी बहुत समझदार थे। बोले तो स्ट्रीट
स्मार्ट। उन्होने हम सब भाई बहन की उम्र एक बरस कम लिखवाई थी। मार्जन रखा था। भूल
चूक लेनी देनी। अब ये जो सालगिरह मनाने की फैशन चल निकली है। ये क्या है ? जन्मदिन की खुशी या मलाल कि उम्र का एक साल और चला गया। शायद इसलिए ही
बर्थ डे मनाते हैं कि नहीं तो अगला सोच-सोच कर ही डिप्रेशन में चला जाएगा अब मेरे
इतने साल रह गए। पहले लोग दूध-दही, घी खाते थे और उम्र की
ऐसी तैसे बोलते थे। अब लोग पिज्जा, मोमोज़ खाते हैं और उम्र
छुपाते फिरते हैं। कहीं हलफ्रनामा दे कर कहीं झूठा सर्टीफिकेट बनवा कर। क्या ज़रूरत
है इन सब की। बस इतना याद रखिए आप
परमात्मा का अंश हैं। परमात्मा की कोई उम्र नहीं। वह अजर-अमर है। बस ऐसा ही कुछ आप
भी हो। इस मामले में आप तो अपने आप को नॉन-बायलाॅजिकल ही मानो।
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