आप हारू उरारा को नहीं जानते होंगे। यहाँ तक
कि आपने उसका नाम भी नहीं सुना होगा। मैंने भी कब सुना था ? वो तो जब उसकी मृत्यु का समाचार
अखबार में आया तब पता चला। 29 साल की उम्र में उसका निधन हो
गया। उसने अपने छोटे से जीवन में दो-चार-दस नहीं बल्कि पूरी 113 रेस में भाग लिया। 113 रेस में भाग लेना मायने रखता
है। यह तो ऐसे ही हो गया कि कोई सारा जीवन भागता दौड़ता ही रहे। या तो वह भाग रही
होती या फिर अगली दौड़ की तैयारी कर रही होती। यह छोटी बात नहीं। हम में से कितने
लोग ऐसे हैं जो इस तरह एकाग्रचित्त होते हैं या दूर दृष्टि रखते हैं और कड़ा इरादा
कर मैदान में आ डटते हैं।
भारत महान की पवित्र पावन भूमि पर एक नेता
हुए हैं शायद उनका नाम ‘धरती पकड़’ था। वे चुनाव लड़ने के लिए जाने जाते थे। अपने
जीवन में उन्होने इतने चुनाव लड़े, इतने चुनाव लड़े कि उनका
नाम गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज़ हो गया था। यह ‘नेवर से डाई’ वाली
स्पिरिट आसानी से नहीं आती। इसके लिए एक ऊंचे दर्जे का जुनून चाहिए होता है। हद
दर्जे का पागलपन। जो लोग अपने फील्ड में लगे रहते हैं उनसे पूछिए। उनका तो सारा जीवन
ही अपने गोल के लिए अर्पित होता है। समर्पित होता है। उठते बैठते, सोते जागते लक्ष्य पर ही नज़र रहती है।
वो एक टैग लाइन हैं न ‘डर के आगे जीत है’।
दरअसल बार-बार ट्राई करने में ही जीत का फार्मूला छुपा है। एक स्टेज ऐसी आती है कि
आप जीतने के लिए खेल ही नहीं रहे होते। आप
इसलिए खेल रहे हो कि बिना खेले आप रह नहीं सकते। आपके जीवन का उद्देश्य ही अब यह
खेल में भाग लेना हो गया है। एक कहावत है अंग्रेजी में उसका हिन्दी अनुवाद कुछ कुछ
यूं है:
“जब वह महान स्कोरर आयेगा
वह यह नहीं लिखेगा
आप जीते या हारे खेल
वह लिखेगा आपने कैसे खेला खेल”
हम बहुधा सुनते हैं फलां शहर में बाप-बेटे ने
एक साथ मैट्रिक पास की। अथवा दादा-पोते ने एक साथ बी.ए. किया। यह दादा जी के लिए
और पिताजी के लिए गर्व की बात है इतने साल वे हारते रहे वो अलग बात है मगर उन्होने
हार मानी नहीं । यह जज्बा बहुत बड़ी चीज है।
अब चलते चलते हारू उरारा के बारे में दो
शब्द। हारू उरारा का जन्म जापान में 1996 में हुआ
था और उसने 1998 से दौड़ में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था।
उसने अपने जीवन काल में 113 रेस में भाग लिया और उसके नाम दर्ज़ है कि उसने एक भी रेस नहीं जीती। नहीं
जीती तो नहीं जीती, मगर उसने हार नहीं मानी। हर रेस में एक
नए सिरे से मैदान में आ डटती थी। उसकी
लगातार कोशिश और हार न मानने की ज़िद के कारण ही लोग उसे प्रेरणा के रूप में मानते
हैं। वह जापान की प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित घोड़ी थी और उसका नाम था हारू उरारा ।
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