नेता जी ने कहा है
कि एक बार नेपाल इंडिया में मिलना चाहता था। किन्तु परंतु नेहरू जी ने मना कर दिया
अथवा रुचि नहीं दिखाई। नतीजा – देख लो ! आज नेपाल की क्या हालत हो गयी। मैं इतिहास
का विद्यार्थी रहा हूँ। हमने तो यही पढ़ा है कि नेपाल ही एकमात्र देश है जो कभी किसी
के अधीन नहीं रहा। वहाँ किसी अन्य देश ने कभी कॉलोनी नहीं बनाई। भूटान की तरह वहाँ
की भौगोलिक हालात ऐसे नहीं कि ये फायदे का सौदा साबित हो सके। कॉलोनियां तो उन्हीं
मुल्कों में बनती हैं जहां कुछ माल-मत्ता मिलने की प्रत्याशा हो।
पचासियों साल बाद हम यह कह कर संतोष पा सकते
हैं। खासकर तब जब उस वक़्त प्रतिद्वंदी पार्टी का राज रहा हो। जैसे कहते हैं न ये
होता,
तो वो हो जाता। तब ये कर देते तो, वो हो जाता।
यह एक काल्पनिक ‘सीनेरियो’ है। एक शेखचिल्लियाना अवधारणा है। यह किसी भी देश के
लिए, किसी भी घटना के लिए कहा जा सकता है। विशेष कर तब जब यह
बात पचास साल बाद, सौ साल बाद की जाये। यथा अगर 1937 में नेहरू जी ने बर्मा अलग नहीं किया होता तो आज वो म्यनमार नहीं बनता।
बर्मा ही रहता। न सुश्री शू ची नज़रबंद होतीं और पिया लोग आज भी रंगून जाकर प्रेयसी
को टेलीफ़ून करते। (आप अगर ये कहोगे कि 1937 में नेहरू
प्रधानमंत्री नहीं थे, तो उसका जवाब है कि नेहरू जी की चलती
तो थी। वे अंग्रेजों के करीब थे। अंग्रेज़-अंग्रेजिन उनकी सुनते थे )
यही बात 1948 में अलग
हुए श्रीलंका के बारे में कही जा सकती है। न 1948 में नेहरू
जी श्रीलंका को अलग कराते न श्रीलंका में ये हाल होता। देखा नहीं कैसे विद्रोही
महल में घुस गए। सरकारी दफ्तरों में लोट लगाते फिरे और चीज़ें उठा कर ले गए। अगर
श्री लंका हमारा हिस्सा होता तो न कोई विद्रोह होता न कोई आगज़नी और रेडियो सीलोन
पर आज भी हम बिनाका गीतमाला सुन रहे होते।
नेहरू जी ने बहुत नुकसान कराया है। मालदीव
अलग करा दिया और आज वह हमें आँख दिखाता है। मालदीव हमारा अंग होता तो सोचो कितना
सीफूड खाने को मिलता। वो भी सस्ते दामों पर। वहाँ जाते तो हम भी स्कूबा डाइविंग
करते,
स्नोरकेल करते। 'सी-डाइव' करते। 'सी-बीच' पर सीपीयां इकट्ठी करते।
इसी तरह 1971 में
बंगला देश नेहरू जी ने अलग न किया होता तो सोचो हम कितनी सस्ती मछली खाते। जूट
उद्योग को कितना बढ़ावा मिलता। आज वह हमारा अंग होता और हम उसे ईस्ट बंगाल कहते।
ढाके की मलमल आज भी हम बापरते। नेहरू जी को ये कहाँ पसंद था। खुद अपने कपड़े तो
पेरिस से धुलवा लिए और हमें ढाके की मलमल के लिये तरसाते रहे। और तो और वही
बंगलादेश हमें आज आँख दिखाता है।
इसी प्रकार बलोचिस्तान, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, भूटान,
चीन, रूस, जापान,
अमरीका नेहरू जी अलग नहीं कराते तो आज हम वर्ल्ड पाॅवर होते हालांकि
देर से सही विश्वगुरु तो हम हो ही गए।
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