Ravi ki duniya

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Monday, December 1, 2025

व्यंग्य : साँप की नई प्रजाति मिली

 

                                  


 

        

भारत के ग्रेट निकोबार आइलेंड में साँप की एक नयी प्रजाति का पता लगा है। यह 'वुल्फ़ स्नेक' अर्थात भेड़िया साँप है। विशेषज्ञों ने इसका नामकरण भी कर दिया है।  इरविन (स्टीव इरविन प्रसिद्ध वन्य जीवन संरक्षक) के नाम पर रखा गया है। यह साँप 1.2 मीटर लंबा है। इसकी पूंछ पतली और नुकीली है। साँप का ऊपरी हिस्सा नीले-काले रंग का है जबकि निचला शरीर काले-भूरे रंग का है। यह सब ब्यौरा जानने के बाद मुझे यह साँप कुछ-कुछ परिचित सा लगा। फिर मैं इस सोच में पड़ गया कि इसके लिए ग्रेट निकोबार, बोले तो, इतनी दूर जाने की क्या ज़रूरत थी। इस प्रजाति वाले तो यहीं आपके अपने शहर में खुल्ले घूमते मिल जाएँगे। उनकी लंबाई थोड़ी और लंबी होती है। उनके केस में लंबाई नहीं कहते ऊंचाई (हाइट) बोलते हैं। वे होते तो भूरे/काले ही हैं। पर सफ़ेद सफ्फ़ाक कपड़े पहनते हैं। सिर पर टोपी भी अक्सर लगाते हैं। यहाँ सबको एक नाम 'इरविन' से नहीं बुलाते बल्कि सबके अपने-अपने नाम होते हैं। उनके आगे-पीछे भी कुछ प्रीफिक्स साफिक्स लगते हैं। जैसे युवा हृदय सम्राट आदि आदि। आखिर साँपों के भी तो कितने ही पर्यायवाची होते हैं। विषधर, सर्प, नाग, दुमुंहा, पनियल, भुजंग, अजगर आदि।

 

यहाँ शहर-शहर, गाँव-खेड़े में पाये जाने वाले ये साँप बहुत खतरनाक होते हैं। ये परजीवी होते हैं। ये भी डराते हैं कभी मतदाता को, कभी झुग्गी झोंपड़ी में जाकर उनको सामूहिक काट लेते हैं वे सब मीठे सपने लेने लगते हैं कि बस अब स्वर्ग उनकी बस्ती में उतरने ही वाला है। सन् सेंतालिस से यही चल रेला है। इनका काटा पानी भी नहीं मांगता। यद्यपि काटने से पहले यह सब बातों के सवाल पर अपना फन हाँ  में ही घुमाता/झुकाता है। नौकरी बोलो, रोजगार बोलो, नगदी बोलो, आखिर साँप भी तो 'मणि' रखता है और उसके लालच में लोग उसके पीछे-पीछे लगे रहते हैं।

 

यूं कहने को साँप तरह-तरह के ‘निवास’ में अपना आवास रखते हैं। अब उनकी दुनियाँ में कोई आवास-विकास निगम या म्हाडा अथवा डी.डी.ए. जैसी कोई संस्था तो होती नहीं ना ही कोई विशेष 'कोटा' होता है। अतः वे बिल में जहां जगह मिले, खोह और पेड़ों के तने में रहने को विवश होते हैं पर हमारे शहरों के साँप बाकायदा बड़े-बड़े फार्म हाउस, कोठियों और लक्जरी फ्लैट्स में रहते हैं और मरते दम तक उनसे चिपके रहते हैं। जैसे दुल्हन के लिए मेरे भारत महान में एक कहावत है 'डोली आई है अर्थी उठेगी'। उसी तर्ज़ पर वे चाहते हैं कि इस वाली प्रजाति की अर्थी भी उनके इस अधिकृत/अनाधिकृत सरकारी आवास से ही उठे। तो भले आदमी नयी-नयी प्रजाति ढूँढने को जंगल-जंगल द्वीप-द्वीप कायकू टाइम खोटी करना अपने शहर में आकर देखो; भरे पड़े हैं। बस्तियों की बस्तियाँ हैं। जिधर निकल जाइए इनके दर्शन हो जाते हैं। कौन सा कोना, कौन सा जनपद कौन सा गाँव/ब्लॉक इनकी पहुँच से दूर है। हर जगह वही स्वर्ग की परिकल्पना मुहैया कराते हुए बशर्ते आप चुनाव दर चुनाव उन्हें जिताते रहें। वो हार गए तो समझो आपके हाथ से  आपका भी स्वर्ग गया।

 

 

 

अपनी ही शादी में चिप्स लेकर भागा दूल्हा

 

                                              


 

 

कभी एक जोक बहुत चलता था। एक दूल्हे को हाथ-पैर बांध कर घोड़ी पर बिठा रखा था। कारण कि जब बारात में पैसे लुटाते हैं (सिक्के वारते हैं) तो ये उतर कर लूटने लगता है। यह बार-बार सिक्के इकट्ठे करने उतर जाता है। पता नहीं था यह जोक इतनी जल्दी सच भी साबित हो जाएगा। खबर आई है कि एक सूबे के एक सामूहिक विवाह में अव्यवस्था फैल गयी। जब सामूहिक विवाह में आए लोग लूटमार में लग गए। हमारे देश में शादियों ये लुटने-लूटने की परंपरा ऐतहासिक है। यह लूटने की घटना उसी ऐतहासिक परंपरा की क्लाइमेक्स है जहां दूल्हे राजा खुद अपने विवाह में लूटमार में मशगूल पाये गए। जहां अन्य दूल्हे और साथ आए बाराती ज्यादा लकी साबित हुए अर्थात वे महंगी और बड़ी-बड़ी वस्तुओं को लूटने में कामयाब हुए जबकि जिस दूल्हे महाराज की हम बात कर रहे हैं अर्थात जो खबर बना वो तो अद्भुत ही कहा जाएगा।

 

पता नहीं इस शख्स को यदि यह मालूम होता कि उसकी फोटो ली जा रही है तब भी क्या वह लूटमार करता रहता? खबर के साथ जो फोटो आई है उसमें वह चिप्स के पैकेट की लड़ी लूट कर साँप की तरह गले में डाल कर ले जाता दिख रहा है। खबर का शीर्षक भी मनोरंजक है अपनी ही शादी में दूल्हा चिप्स लूटते हुए। शादी असल में लुटने-लूटने का ही पर्यायवाची बनता जा रहा है। वो टाइम गया जब इस सब के लिए दूल्हे के पक्ष को ज़िम्मेवार माना जाता था। पूरे प्रकरण में वही विलेन बन कर निकलते थे। अब ऐसा नहीं है अब तो वर से कहीं बढ़-चढ़ कर वधू खुद चाहती है की उसकी शादी इतनी धूमधाम से हो फलां का डिजाइनर लंहगा होना ही होना है। लेडीज संगीत होना है। प्री-वेडिंग शूट भी चाहिए। बेहतर हो डेस्टिनेशन वेडिंग हो। इन सबके ऊपर दहेज का दानव तो और खतरनाक हो गया है।

 

पता ये चला है कि इस सामूहिक विवाह का आयोजन सूबे की सरकार के सौजन्य से हुई थी। एक अच्छा खासा बजट प्रति दूल्हा-दुल्हन तय हुआ। उसी तरह से आधे से अधिक वधू के बेंक के खाते में डाल दिये जाते हैं और बाकी रकम के उपहार और उनके अल्पाहार और आहार पर खर्चे जाते हैं। इस केस में कुछ ऐसा हुआ कि दूल्हे के पक्ष के लोग अल्पाहार और अन्य खाद्य सामग्री लूटने में मुब्तला हो गए। उनकी देखा-देखी भला वधू पक्ष के लोग कब पीछे छूटने वाले थे। उन्होने आव देखा न ताव और पूरी निष्ठा से वहाँ  रखा ‘दहेज’/उपहार लूटने में जुट गए। उनके फोटो शूट को आए फोटोग्राफर वे अब इस लूट की लाइव शूटिंग में लग गए बोले तो कैंडिड फोटो शूट होने लग पड़ा और अगले दिन के अखबार की सुर्खियां बन गया। इस केस की स्टडी करके जो केस स्टडी सामने आई है उसके अनुसार:

 

1. अल्पाहार /आहार के काउंटर पर अफसर नदारद थे जबकि वहाँ व्यवस्था बनाए रखने के लिए अफसर और पुलिस का इंतज़ाम इस काउंटर पर होना चाहिए था और ‘क्यू’ की व्यवस्था को देखभाल को पर्याप्त पुलिस बल होना चाहिये था।

2. जहां दहेज का सामान-असबाब/उपहार रखे थे वहाँ पर्याप्त पुलिस बल होना चाहिए  था। वैसे बेहतर तो यह होता कि ये उपहार अलग कहीं दूर सुरक्षित रखे जाते और वक़्त आने पर ही निकाले जाते अथवा जहां इतना खर्चा, वहाँ थोड़ा और करके इन उपहारों की 'होम डिलीवरी' करा दी जाती  

3. ये लूटमार गैंग तो सीमित रही होगी। 350 जोड़ों में ऐसे बहुत कम रहे होंगे जो लूटमार में मशगूल थे ज़्यादातर तो शांतिप्रिय रहे होंगे। यह नहीं पता चला कि ये लूटमार शादी मुकम्मल होने के बाद शुरू हुई या शादी से पहले ही चालू हो गई।

4. लाइव वीडियो कवरेज से यह पता चल जाएगा कि इसमें कौन कौन शामिल था उनको सरकारी ससुराल (जेल) भेजा जाये। ताकि आने वाले दूल्हा-दुल्हन को सीख मिल सके।

5. शादी का यह ‘शो’ करना ही क्यूँ? क्यों नहीं अब क़ानूनी (कोर्ट मैरिज़) करा दें और उन्हें किसी ठीक-ठाक से होटल में लंच के कूपन दे दिये जाएँ। ऐसा लगता है कि आप इसे अपने हित में ‘ईवेंट’ चाहते हैं। फलां चीफ गैस्ट ने ये कहा वो कहा। आप भी तो अपने लिए ‘गुडविल’ और ‘वोट’ लूटना चाह रहे हैं।

व्यंग्य : सरकारी दफ्तर की सभा और छह बादाम

 

                                        


 

देखिये सरकार है तो दफ्तर हैं। दफ्तर हैं तो मीटिंग हैं। ये सभी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। एक के बिना दूसरे की  परिकल्पना संभव नहीं। अब सरकारी मीटिंग में बहुत दिमाग खपाया जाता है। जिससे बहुत भूख लगने लगती है। बिना चाय-कॉफी ये मीटिंग संभव नहीं होतीं। अब खाली चाय-कॉफी पीने से 'एसिडिटी' हो जाती है। अतः उसकी रोकथाम के लिए यह बहुत जरूरी है कि साथ में कुछ ठोस खाया जाये। जैसे दारू के साथ चखना होता है। बिना चखना दारू पीना स्वास्थ्य के लिए और अधिक हानिकारक है उसी तरह चाय-कॉफी के साथ कुछ न कुछ चाहिए। अब इस ‘कुछ’ में बहुत कुछ आ जाता है और बहुत कुछ है जो छूट जाता है। इससे ध्यान बंटता है। मीटिंग में कंस्ट्रेशन  नहीं बन पता। अब अगर मीटिंग में कंस्ट्रेशन नहीं होगी तो मीटिंग फेल हो जाएगी। परिणामतः दूसरी मीटिंग करनी पड़ेगी अथवा और बड़ी मीटिंग करनी पड़ेगी। इससे खर्चा और बढ़ेगा। अतः पहली बार में ही मीटिंग में सभी सदस्यों को तृप्त कर देने वाले आइटम रखे जाएँ।

 

मंत्रालय ने बहुत गहन विचार विमर्श करके और प्रैक्टिकल करके अर्थात सभी आइटम्स के सेंपल चैक करके तय पाया कि एक यूनिफ़ॉर्म मेन्यू का निर्माण किया जाये। यह नया भारत है।  यह पुराने मेन्यू से बहुत चल लिया अब हमें एक शानदार किन्तु सनातन मेन्यू चाहिए। यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड हमारा ध्येय है अतः उसकी शुरुआत यूनिफ़ॉर्म मेन्यू से ही क्यूँ न की जाये। 'जैसा खाये अन्न, वैसा हो जाये मन' इसी को इंगलिश में बोलते हैं ‘एज़ इज़ फूड, सो इज़ दि मूड’ अंतर-मंत्रालय की मीटिंग्स कर कर के इस समावेशी मेन्यू का सघन जांच रिवीजन ( SIR ) कर दिया जाये। भले वोट वाला SIR गोपनीय है किन्तु यह एकदम सबके सामने है। बेकार में आप लोग नहीं तो आर.टी.आई. में पूछ-पूछ कर अपना और आयोग का टैम खराब करते हो इसलिए यह खुल्ला खेल फर्रुखाबादी रखा गया है आप भी जान लीजिये ताकि अगली मीटिंग में आप जलपान देख कर अचरज न करने लगें। नाक-भौं न सिकोड़ने लगें। आजकल दफ्तर-दफ्तर, गलियारे - गलियारे सी.सी.टी.वी. लगे हैं अतः इस मेन्यू पर कोई भी प्रतिकूल टिप्पणी आपके 360 डिग्री रिव्यू को भी प्रतिकूल टिप्पणियों से भर सकती है। फिर करते रहना घर बैठ कर मनपसंद जलपान।

 

शॉर्ट नोटिस अथवा शॉर्ट मीटिंग्स

 

1.       चाय/कॉफी /मसाला छाछ/ फलों का ताज़ा रस / मीठी लस्सी (केवल एक)

2.       6 बादाम

3.       2 कुकीज़ (बोले तो बिस्कुट)

 

 

लॉन्ग नोटिस अथवा पूर्व निर्धारित लंबी  मीटिंग्स

 

1.       उपरोक्त सभी

2.       निम्न में से दो आइटम अतिरिक्त

3.       वेज सेंडविच / पनीर ‘कटलस’ / आलू बोंडा/ ढोकला/समोसा

 

इससे पहले आप उपरोक्त मेन्यू में मीन-मेख निकालें यह जान लें कि यह डायनिमिक मेन्यू है। बहुत सी चीजें अभी स्पष्ट नहीं हैं। जैसे चाय, डिप-डिप होगी या रेडीमेड, चीनी पहले से पड़ी होगी या अलग से 'सेशे' दिये जाएँगे, चीनी ब्राउन होगी या सफ़ेद। इसी तरह कॉफी नेसकैफे होगी या ब्रू अथवा इंडियन कॉफी हाउस मार्का फिल्टर कॉफी ? क्या कैपिचीनो का विकल्प होगा? फलों के रस के बारे में भी स्पष्टता नहीं है । यह मौसमी फल होंगे? क्या इनमें विकल्प रहेगा या वही पिटा-पिटाया ऑरेंज जूस ही मिलेगा। कहीं जूस के नाम पर गन्ने का रस तो नहीं पिला दोगे जिस पर मक्खियाँ  भिनभिनाती रहती हैं। लस्सी, गाय के दूध से बनी दही की होगी अथवा भैंस के दूध से बनी दही की?  बादाम कैलिफोर्निया वाले होंगे या कागज़ी ? कुकीज़ के बारे में भी स्थिति क्लियर नहीं है। कुकीज़ के नाम पर कहीं पार्ले- जी अथवा ‘रस’ तो नहीं खिला दोगे? इसी तरह सैंडविच, पनीर (नकली-असली)  और समोसा की फिलिंग के बारे में भी भावी कंज़्यूमर को अंधेरे में रखा गया है।

 

यह मेन्यू  को यदि जन-समर्थन नहीं मिला तो अगला मेन्यू जो प्रस्तावित है उसे सुन कर आप को यह  मेन्यू बहुत मनभावन लगेगा। अगला मेन्यू केवल घड़े का पानी, चना-मुरमुरा और मूँगफली रहेंगे। तीसरे फेज में आप को अपने घर से ही स्नैक्स लाने को कहा जा सकता है। अब आपकी मर्ज़ी चाहें तो आप अखरोट लाएँ, चाहे चिलगोजे लाएँ, चाहे साग-पूड़ी। बस इतना ध्यान रखें कि यह शुद्ध शाकाहारी सनातनी हो। इंगलिश में कहावत है कि यदि आप ‘मूँगफली’ देंगे तो आपको 'बंदर' ही मिलेंगे। माइंड इट !!