मेरा आज का शेर
मेरे हिस्से में तो उनकी
बेरुखी भी न आई
खुशकिस्मत हैं वो
जिनकी मुहब्बत को ठुकरा दिया तूने
एक आंसू हमारा था, जो आँख से संभला नहीं
एक आंसू तुम्हारा था, जो आँख से निकला नहीं
डाल दी है तोहमत, मैंने मुक़द्दर की पेशानी पे
हकीकत ये है, मुझे तुमसे कोई गिला नहीं
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