Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Friday, March 19, 2010

ओस की बूंदें

भटक रहीं थीं उम्मीदें 
ज़िन्दगी के बियाबाँ में 
दूर दूर तक मंजिल का 
पता न था.
अपना तो था ही नहीं कोई 
पराया भी न था.
एक दिन तुमने वो धड़कन सुनी 
अनौपचारिक रूप से 
तुम अब वो धड़कन बन गये.
मेरी आवारा उमंगों के
घर बन गये .
बेखुदी कुछ यूँ छायी 
मैं- तुम अब, 'हम' बन गये.

***************
एक आँख भर देखा था तुम्हें 
तुम्हारी छवि नयनों में बसा ली है.
एक बार तुम मुस्कराए थे 
उपहास में या प्रशंसा  में 
ठीक से पता भी नहीं .
तुम्हारी वो छवि नयनों में बसा ली है .
तुम्हें खबर नहीं होगी !
मैं निश्चित हूँ 
तुम्हें खबर  नहीं होगी .
क्योंकि और भी बेहतर बातों का 
ख्याल रखना है तुम्हें.
पता है ? मैं रोया नहीं हूँ तब से 
लोग तो विछोह में हँसते नहीं हैं .
तुम्हें याद है तुमने कहा था 
"पानी से भीगना अच्छा नहीं लगता "
बस ये ही मेरी मजबूरी है.
तुम मेरे नयनों में बसती हो 
और मैं रो नहीं सकता.


(काव्य संग्रह 'ओस की बूंदें' 1994 से )





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