Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Thursday, March 11, 2010

पार्टी,प्लॉट और प्रॉपर्टी डीलर

(प्रॉपर्टी डीलरों के काले सफ़ेद पराक्रम के किस्से अनगिनत हैं... ये ही असली भूमि पुत्र हैं व भूमि और आपके बीच की कड़ी हैं, मुझे तो लगता है कि आदम और ईव से 'ईडन-गार्डन' खाली करवाने में इनकी भूमिका की अगर सूक्ष्म जाँच की जाए तो किसी न किसी प्रॉपर्टी डीलर का हाथ निकलेगा.)






एक कहावत है कि मूर्ख लोग मकान बनाते हैं और बुद्धिमान उसमें रहते हैं. हमारे यहाँ एक मशहूर शेर है :


कटी उम्र होटलों में


मरे अस्पताल जाकर


अब कोयल को ही लें. वो आर्टिस्ट है. उसे कहाँ यह टाइम कि घर बनाये. भाई या तो संगीत की सेवा करा लीजिये या घोंसले की फजीहत. घर कौवे बनाते हैं सो बना रहे हैं. मेरी इन सब दलीलों का मेरी अन्य बातों की तरह हे मेरी पत्नी पर कोई असर नहीं पड़ता. वह किंचित भी प्रभावित नहीं हो पाती और ज़िद किए रही कि दुनिया मकान बना रही है अतः हमें भी मकान बनाना चाहिए. अब मकान कोई घोंसला तो है नहीं कि नज़दीकी नीम के पेड़ पर जा बैठे. इसके लिए चाहिये एक अदद प्लॉट या फिर ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी कि सदस्यता. चारों तरफ हाथ-पाँव मारने शुरू किए. यह मुहावरा ठीक नहीं है. दरअसल इस प्रक्रिया में हम खुद ही हाथ पाँव में मार खाते रहे. एक ग्रुप हाउसिंग सोसाइटी तो डूब गयी. उसके अवैतनिक सचिव सारा पैसे लेकर अपनी सचिव के साथ सिंगापुर भाग गए.दूसरी सोसाइटी में बात बात पर इतनी धड़ेबाजी थी कि पता ही नहीं लगता था कि मकान बनेंगे या नहीं,बनेंगे तो कहाँ बनेंगे और कब बनेंगे. धीरे धीरे सब समझदार लोगों ने पैसे निकाल लिए. अंततः यह तय पाया गया कि दिल्ली में अब न तो ज़मीन बची है और न ऑक्सिजन तो क्यों न दिल्ली से थोड़ी दूर हट कर प्लॉट खरीदा जाए. बस फिर क्या था. चारों तरफ खबर भिजवा दी गयी. रविवार कि सुबह सुबह अख़बार ले कर विज्ञापनों पर निशान लगाये जाते. विज्ञापनों को देख कर लगता था कि पूरी दिल्ली बिकाऊ है, शायद झूठ भी नहीं. हम लोग रविवार को निकल जाते. कभी महरौली, कभी छतरपुर, कभी नोएडा, कभी नरेला, कभी गाजियाबाद, कभी फरीदाबाद तो कभी गुड़गाँव.


इस दौरान मेरा भूगोल का ज्ञान इतना विस्तृत हो गया कि मैं खुद हैरान था. आप कोई सा विहार बोलो मैं फौरन बता सकता था कि वह कहाँ है. कनाट प्लेस. आई.टी.ओ. या इन्दिरा गांधी एयरपोर्ट से कितने किलोमीटर है. अब मैं जानता था कि दिल्ली में तीन तीन आनंद विहार हैं. किसी नगर के पास बनने वाली कॉलोनी का नाम उस नगर के प्रथम नाम के बाद विहार लगा देने से बनता है, जैसे तिलक नगर के पास है तो तिलक विहार. मयूर विहार के आसपास जितनी भी नयी कालोनियाँ बनेंगी सब मयूर विहार फ़ेज तीन,चार, छ्ह आठ के नाम से जानी जाएँगी.सोसाइटी का नाम जितना साहित्यिक या लुभावना होगा वह शहर से उतनी ही दूर और गंदे इलाक़े में होगी. मुझे पता लगा कि सैनिक विहार में सैनिक नहीं रहते. मुझे पता चला कि अलकनंदा और नर्मदा विहार में पानी की खूब किल्लत है और विद्युत विहार में इतनी बिजली जाती है कि सबके घर में जनरेटर तथा इनवर्टर लगे हुए हैं. पार्टी,प्लॉट और प्रॉपर्टी डीलर के त्रिकोण में प्रॉपर्टी डीलर एक महत्वपूर्ण कोण है. उसकी भाषा, कोड वर्ड अलग किस्म के होते हैं. वो मोबाइल फोन पर बात करते हैं. शाम होते ही उनका जबाड़ा हिलाने लगता है. नहीं समझे. सूरज अस्त, मजदूर मस्त. अर्थात आग को पी जाते हैं पानी करके. हरियाणा में प्रॉपर्टी डीलर परेशान क्यूँ,प्रॉपर्टी के दाम गिरे क्यूँ ? शराब जो न थी. प्रॉपर्टी डीलर से मैं जब भी मिलने गया वो मुझे मक्खी मारते तन्हा तन्हा मिले. लेकिन पार्टी को देख कर उनके चेहरे पर रौनक आ जाती है. फौरन आपसे आपका बजट पूछ कर आपको शीशे में उतारने की हरचंद कोशिश शुरू. " ओ जी ! पिलौट ही पिलौट हैं, टू साइड ओपन, थ्री साइड ओपन, मीठा पानी, सन फेसिंग, सामने 24 फीट की रोड. मार्किट, स्कूल, मेन रोड" सब उन्हें रटा रहता है. बताते जाते हैं और आपके चेहरे के भाव पढ़ते जाते हैं. एक प्रॉपर्टी डीलर सज्जन मुझे गाड़ी में बैठा कर शहर से इतनी दूर पिलौट दिखाने ले गए कि मैं दिल ही दिल में डर रहा था कि कहीं मुझे किडनेप तो नहीं कर रहे. भगवान से सारे रास्ते दुआ माँगता रहा. वो जो भी दिखा रहे थे मुझे कुछ नहीं दीख रहा था. मैं तो जल्द से जल्द उनके चंगुल से बाहर निकलना चाहता था. वो अपनी समझ से मेरे से बड़े प्रेम से पेश आ रहे थे लेकिन वो जितना मीठा बोल रहे थे मैं उतना ही अधिक घबरा रहा था.


एक बात बताइये ये प्रॉपर्टी डीलर सुकोमल,सहृदय और सामान्य कद काठी के क्यों नहीं होते हैं. क्यों ये फिल्मों के माफिया जैसे होते हैं. क्यों ये इतने हट्टे-कट्टे और पहलवान किस्म के होते हैं "या तो पिलौट खरीद नहीं तो अभी करते हैं चाकू आर-पार"


एक प्लॉट मुझे ऐसा दिखाया गया जो की बाद में पता चला मेरे जैसे 8-10 लोगों को दिखाया जा चुका था. 4-5 लोगों से उसका बयाना लेकर प्रॉपर्टी डीलर ये जा वो जा. मुझे अब ज्ञात हुआ कि अपराध वाले अपने प्लान को प्लॉट क्यों कहते हैं. ये प्रॉपर्टी डीलर बड़े ही स्मार्ट होते हैं. एक प्लॉट कितनों को ही बेच सकते हैं. ये चाहें तो ताजमहल भी बेच दें.सुनसान रेगिस्तान को भी ऐसे प्रोजेक्ट करते हैं जैसे 'स्वर्गधाम' आपके सपनों का घर,हरियाली ही हरियाली, लिफ्ट स्कूल, कॉलेज स्विमिंग पूल, शॉपिंग सेंटर, फुल सेक्युर्टी, कनाट प्लेस से केवल 35 मिनट की ड्राइव आदि आदि.बाद में पता चलता है कि हरियाली के लिए उन्होने पौधे लगा दिये हैं. जब वे बड़े हो जायेंगे तो नेचुरली हरियाली हो जाएगी. स्विमिंग पूल के नाम पर एक बंबा है. शॉपिंग सेंटर के नाम पर प्रॉपर्टी डीलरों की ही दो दुकाने हैं.सेक्युर्टी इतनी कि दिन-दहाड़े मार जायें तो पता भी तीन दिन बाद चले वह भी बदबू से. कनाट प्लेस के कौन से कोने से नापते हैं कौन सी गाड़ी ड्राइव कर रहे हैं और किस रफ़्तार से कौन से रूट से जायेंगे. मैंने तो यह पाया है कि 1 घंट 35 मिनट से भी ज्यादा वक्त लगता है. वे कह सकते हैं कि ट्रेफिक जाम और रेड लाइट बचाते-घटाते हुए 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से ड्राइव करनी है. मैं समझ गया कि प्रॉपर्टी डीलर ने ठीक ही स्वर्गधाम नाम रखा है वे आपके लिए स्वर्ग पृथ्वी पर ही उतार लाये हैं. किसी भी शहर के आवासीय,व्यापारिक,आर्थिक व राजनीतिक विकास में प्रॉपर्टी डीलर्स का बहुत योगदान है. वे इंच इंच ज़मीन महंगे दाम बेच सकते हैं. वे कोलोनियाँ की कोलोनियाँ बसाते हैं. उन्हें अनाधिकृत घोषित कराते हैं.उनमें आग लगवाते हैं फिर उन्हें अधिकृत(रेगुलराइज़) कराते हैं. इसे कहते हैं झूम हाउसिंग. सभी झूम रहे हैं. प्रॉपर्टी डीलर,नेताजी,बिजली-पानी वाले, कार्पोरेशन के कर्मचारी. वे प्रतिकूल कर्मचारियों का ट्रांसफर चुटकी बजाते करा सकते हैं. सरकार की पॉलिसियां निर्धारित कराते हैं. आपके काले धन को सफ़ेद करा सकते हैं. जंगल में मंगल.बुध,वीर मना सकते हैं. वो बता सकते हैं कि दो मंज़िल की चार मंज़िलें कैसे बनाई जाती हैं. सड़क कैसे घेरी जाती है आदि आदि.


प्रॉपर्टी डीलर के बिना विकास की कल्पना करना संभव नहीं है.रेगिस्तान को चमन बनाने और चमन को जंगल बनाने का श्रेय उनको जाता है.




(व्यंग्य संग्रह 'तिहाड़ क्लब' 1999 से )





No comments:

Post a Comment