अंधों के शहर में आईने बेचने निकले
यार तुम भी मेरी तरह दीवाने निकले
किस किस के पत्थर का जवाब दोगे तुम
महबूब की बस्ती में सभी तो अपने निकले
वो हँस कर क्या मिले, तमाम शहर में चर्चा है
तेरी एक मुस्कान के मायने, कितने निकले
ऐ दोस्त कैसे होते हैं वो लोग, जिनके सपने सच होते हैं
एक हम हैं हमारे तो, सच भी सपने निकले
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