Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Thursday, March 11, 2010

चाँद की अनछुई किरण हो 
छाई हो मेरे 
दिल-ऐ-आसमां पर 
बदली की तरह .
पाता हूँ मैं अपने को 
हरदम तेरे ख्याल में 
चिंताओं में घिरे एक 
मुफलिस की तरह .
तुम मेरे दिल में 
आये सूखे गाँव में 
आई पहली 
बारिश की तरह .
खतरे में ही रही 
ताउम्र मेरी ख़ुशी 
जवान बेवा की 
आबरू की तरह . 



वक़्त तुम्हें मुझसे 
दूर ले जायेगा 
मुझे तुम्हारी नज़रों में 
अजनबी बनाएगा 
मगर सच तो यह है 
हर गुजरा लम्हा मुझे 
तुम्हारे और नज़दीक लायेगा 
मुझे यकीं है 
तुम जब भी कभी आओगे 
मेरे मरुस्थली जीवन में 
बसंत लाओगे 
और यकीं जानो 
जब भी याद करोगे 
मुझे अपने 
इंतज़ार में पाओगे

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