Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, March 17, 2010

ओस की बूँदें

इस रूखे से जग में
नभ के तल में
मेरे जीवन के मरुस्थल में.
तुम भर लायीं थीं
अपनी अंजुरि में खुशियाँ.
और मैं अपनी
शाश्वत प्यास को
साथ ले मर न सका.
हाँ यह और बात है
ठीक से जी भी तो न सका.
मुझे लगा तुम्हारा ये
अंजुरि भर अमृत कहीं
कम न हो जाए.
ये भी क्यों नहीं मेरी प्यास
की तरह शाश्वत हो जाये.
काश तुम अविरल
झरने सी बहती रहो.
मैं चुप, कुल जग से
बेखबर हो पान करता रहूँ.
जग अज्ञानी गाता रहे
गुण ज्ञान के
मैं तो बस तुम्हारा
गान करता रहूँ .






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वक्त तुम्हें मुझसे
दूर ले जाएगा
मुझे तुम्हारी नज़रों में
अजनबी बनाएगा.
मगर सच तो यह है
हर गुजरा लम्हा मुझे
तुम्हारे और नज़दीक लाएगा.
मुझे यकीन है
तुम जब भी कभी आओगे
मेरे मरुस्थली जीवन में
वसंत लाओगे.
और यकीन जानो
जब भी याद करोगे
मुझे अपने
इंतज़ार में पाओगे.






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गुजर रहा है ज़िंदगी का सफर
इस ख्याल में मेरा.
तुम्हें आज नहीं तो
कल आएगा ख्याल मेरा.
तेरे लब पे होगा
मेरी सुबह का बसेरा.
तेरी ज़ुल्फ़ तले ढँक जाएगा
मेरा हर अंधेरा.
गिनती करा रहा है बार बार
ये जहाँ खामियाँ मेरी.
एक तुम साथ जो होते
ये ही बन जातीं खूबियाँ मेरी.
सच ! मैं जैसा भी हूँ
तुम्हें स्वीकारना होगा.
खुद को बदलने का अर्थ
हारना होगा.










(काव्य संग्रह 'ओस की बूँदें' 1994 से )

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