मुहब्बतों की दूरियों में अज़ब फासले हैं
कहीं एक बार मिल के, उम्र भर का ग़म
कहीं उम्र भर साथ
रह कर भी फासले हैं.
कितनी ही क्यों न सिमट जाएँ
मेरे शहर की सरहदें
दो भाइयों के बीच
अभी बहुत फासले हैं.
आँखें मेरी, आँचल तेरा,
ग़म आते तो कैसे ?
हम इसी खुशफहमी में रहे
दोनों में बहुत फासले हैं.
हम तुम्हें चाहा किए जिस तरह
तुमने चाहा ही नहीं हमें उस तरह
वरना दो धड़कनों के बीच
कहाँ फासले हैं.
तुम सबके दिलों पे राज़
करने की चाहत में मग़रूर हो
शहर में सब जानते हैं
वफ़ा से तुम्हारे जो फासले हैं.
गर्मजोशी से मिलना
महज़ आदाब बनके रह गया
जानते आप भी हैं
दिलों में जो फासले हैं.
( 2 )
तुमसे कभी मिले नहीं
तुम्हें कभी देखा नहीं
ताउम्र बुतपरस्त रहे
हम तेरी तस्वीर के.
लाख मौसम आए-गए
......बदला करे
हर बार और शोख हुए
रंग तेरी तस्वीर के
मेरी खुशी में खुश
मेरे ग़म में ग़मगीन
एहसास एक से रहे
मेरे दिल और तेरी तस्वीर के
कभी बहार,कभी गुल
कभी चाँद,कभी झील
दुनियाँ ने कितने
नाम दिये तेरी तस्वीर के
इस से बढ़ कर सुबूत
न दे सके अपनी चाहत का
रोज़ रात पुर्ज़े-पुर्ज़े कर,सुबह
जोड़ते रहे टुकड़े तेरी तस्वीर के
(3)
हमने लिखे थे जो तुम्हारे नाम
खत
सिवा तुम्हारे शहर में सबने पढ़े वो तमाम
खत.
हर सफा था खास,
हरेक हर्फ़ में थी हमारी खुशबू
फिर कैसे हो गए हमारे वो बेनाम
खत.
दिले नाकाम को कासिद ने समझाया
"उम्र भर इक छोटे से जवाब को तरसते रहे
मियाँ किस ज़ुबान में लिखते हो तुम
खत"
वो बरसों लेने से इंकार करते रहे
हम बरसों लिखते रहे
खूने दिल से
खत
मैं शब-ए-जुदाई सुकून से मर सका
वो हौले से बोले "भला कोई
अपनों को भी लिखता है यूँ खुलेआम
खत"
(4)
तालीमयाफ्ता तो बहुत है मेरा महबूब
सीखनी
आँसुओं की ज़ुबान
अभी बाकी है
ए सात समंदर के सैलानी
सफर ख़त्म कहाँ
मेरी आँखों में देख आसमान
अभी बाकी है
आपने जो ज़ख्म दिये
मुमकिन नहीं एक जनम में भर पायें
नज़दीक से देख,पिछले निशान
अभी बाकी हैं
तेरे जुल्मों ने मुझे इस कदर मज़बूत कर दिया
तुम किस्सा तमाम समझ भूले थे
पर देख ये सख्त जान
अभी बाकी है
सदियों से हम भी
दरिया किनारे रहे हैं
खौफ नहीं गर कोई तूफ़ान
अभी बाकी है
ये वादा रहा तेरी महफिल से चले जायेंगे
सामान सब बंध गया
तेरी एक मुस्कान
अभी बाकी है
(काव्य संग्रह 'मेरी 101 कविताएँ' 2008 से)
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