Ravi ki duniya

Ravi ki duniya

Wednesday, February 17, 2010

तुमको इशू माँगता क्या ?

(लोग अपनी-अपनी नेतागिरी चमकाने को क्या क्या मुद्दे नहीं उठाते ..बलिक कहना चाहिये इशू, नॉन-इशू हो गए और नॉन-इशू, इशू बन गए हैं )


जब से अशिक्षित लोग विधायक, सांसद,मंत्री और यहाँ तक कि मुख्यमंत्री बनने लगे हैं, अशिक्षित व्यक्तियों का भविष्य बहुत उज्जवल हो चला है. मैंने एक नेताजी से जब उनके  अनपढ़ होने का राज जानना चाहा तो तो उन्होने बड़ी संजीदगी से जवाब दिया कि देश कि आज़ादी कि लड़ाई में वे इतने मसरूफ़ रहे कि अपनी पढ़ाई के लिए कभी फुर्सत ही नहीं मिली. कभी ये बात ध्यान में आई भी तो उन्होने देश को सदैव अपने से ऊपर तरजीह दी और कैसे उन्होने अपनी सारी पढाई  ज़िंदगी के स्कूल में पूरी की है. बड़े-बड़े आदमी अपनी अशिक्षा को देश सेवा, अछूतोद्धार और ग्राम सुधार के मत्थे मढ़ते आए हैं. अब तो सफल व्यक्तियों का अशिक्षित रहना बल्कि पढ़ाई बीच में ही छोड़ना अर्थात 'ड्रॉप आउट' होना फेशनेबल हो गया है. कॉकटेल से लेकर चुनाव सभा तक का मेटीरियल मिलता है. लोग दाँतो तले उंगली दबाते हैं कि यह अशिक्षित हो कर इतना महान है, पढ़ा-लिखा होता तो क्या होता ? अपने दुर्भाग्य को कोसते हैं कि वे क्यों कर पढ़े.
विश्व की बड़ी-बड़ी समस्याओं के हल, खोज और आविष्कार व्यक्ति के मन में पहले मात्र एक विचार के रूप  में जन्म लेते हैं. इसी प्रकार संसार की  बड़ी-बड़ी समस्याएँ बहुत लघु रूप से अपनी शुरुआत करती हैं तब किसी का ध्यान उन पर जाता है, नहीं जाता है. मगर समस्या थोड़ा सा  स्तर प्राप्त करते ही आ जाती है सेमिनारों में, संसद में और अंततः संसदीय समितियों में. फिर उन्हें दफ़तर चाहिये,स्टाफ, डेपुटेशन और फ़ॉरेन टूर चाहिए ताकि अन्य देशों के साथ तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके. मसलन हिन्दुस्तानी चूहों की आदतें आस्ट्रेलियन चूहों से कैसे फरक हैं.


सूखा राहत,बाढ़ से रक्षा, नारी मुक्ति, अनाथ आश्रम और विधवा उद्धार आदि उद्योग पुराने पड़ गए हैं. अब दुनियाँ इसमें लगे गंभीर और ईमानदार लोगों को भी शक की नज़र से देखती है. यद्यपि ऐसा नहीं है कि  सूखा से कोई राहत मिली हो या फिर नारी मुक्त हुई हो (कुछ एक को छोड़ कर ) हाँ मगर ये हुआ है कि  इन सामाजिक कामों में लगे असामाजिक तत्व जरूर अपने को सुरक्षित महसूस करने लगे हैं. अनेक लोगों को तो इसी लाइन में 'निर्वाण' की प्राप्ति हुई है.


आज अनेक इशू वातावरण में आपके आसपास ही बिखरे पड़े मिल जायेंगे. आप अपनी हैसियत, महत्वाकांक्षा तथा भौगोलिक परिस्थितियों को देख कर चिपक जाइए. आपके लिए प्रस्तुत है एक दर्जन इशूओ की एक रेडीमेड लिस्ट. बस आप तो इशू पकड़ लीजिये और तब तक न छोड़िए जब तक वह इशू आपको आपकी मंज़िल तक न छोड़ आए. चाहे वह मंज़िल संसद में एक अदद सीट हो या फिर कोई अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार. कई मामलों में तो मंज़िल मात्र व्याख्यान माला के लिए विदेश निमंत्रण तक ही सीमित होती है.


पेड़ लगाओ : कितने ही पेड़ लगा लो कम पड़ते हैं. यह बहुत ही एवरग्रीन विषय है आप चाहें तो पेड़ों की कोई लुप्त होती प्रजाति के विषय में आंदोलन भी छेड़ सकते हैं.


आम उगाओ : आम आखिर फलों का राजा है. पहले इसे देश में राजा से रॅंक तक सस्ते दाम सुलभ कराया जाये और तब तक सरकार को इसका निर्यात बंद कर देना चाहिये फिर देखिये कैसे आम के बड़े-बड़े निर्यातक आपकी खुशामद करने दौड़े आयेंगे.


खंडहर बचाओ : ताजमहल बचाओ तो एक सामंतवादी बुरजुआ विचार है. देश की असली धरोहर तो ये खंडहर हैं. पहले अपने शहर और राज्य के खण्डहरों की लिस्ट बना कर उनकी रक्षा के लिए मुहिम छेड़ें फिर आप स्वयं ही राष्ट्रीय स्तर के हो जायेंगे.


भैंस नहलाओ : गंदी भैंस अपने परिवेश को भी गंदा करती है. गंदी भैंस का दूध पी कर स्वच्छ विचार मन में आ ही नहीं सकते. कुछ आँकड़े एकत्र कर बताये की कैसे गंदी भैंस का दूध पीने वालों का आई.क्यू . साफ़ नहाई भैंस का दूध पीने वालों की अपेक्षा कम होता है. कार्पोरेशन वाले पर्याप्त पानी सस्ती दर पर मुहैया कराएं नहीं तो शहर भर में दूध की सप्लाई बंद. दो दिन में ही सब दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा. मलाई मलाई आपकी.


हाथी बचाओ : चींटियों से, सरकस वालों से और वीरप्पन से. इसके लिए हाथी फ़ेस्टिवल भी आयोजित किए जा सकते हैं. सभी रंगों के हाथी बुलाये जायें ताकि लोग शुरू में ही इस फ़ेस्टिवल को 'सफ़ेद हाथी' न कहने लगें.

घरेलू नौकरानियों को बचाओ : मालिकों से,देर तक काम के घंटों से या फिर मालकिन की जली-कटी से.

सूती वस्त्र पहनो : गांधीवाद को पुनर्जीवित करने का एक सॉफ्ट विकल्प है. परेशानी यह है की इसके लिए आपको स्वयं सूती वस्त्र पहनने होंगे. दूसरे सूत के व्यापारी व कपास के किसानों से स्पांसर ढूँढने होंगे. कबाड़ी बाज़ार,चोर बाज़ार से ला कर कपड़ों की होली जलाएँ, प्रेस फोटोग्राफर और पत्रकारों के सम्मुख.


बच्चों को बचाओ : माँ-बाप की डांट से, टीचर की फटकार से या फिर टी.वी. के प्रचार-प्रसार से.


माता-पिता को बचाओ : बच्चों से, टीचरों की फीस से और फिर दहेज से


कुत्ता सिखाओ : मनुष्य का सार्वाधिक पुराना और वफ़ादार मित्र(देसी कुत्ता) आज अपना स्किल और स्टेटस खोता जा रहा है. ज़रूरत है उसे सिखाने की.उस में स्वाभिमान का भाव जाग्रत करने की ताकि वह भी अल्सेशियन, डोबरमेन और पामेरियन के बीच सिर उठा के चल सके. कुत्ते से छेड़छाड़ दंडनीय अपराध घोषित किया जाये और कुत्ते को पीटने वालों को टाडा या पोटा जैसे  किसी कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाये जिस से ज़मानत भी न हो सके. गाँव-गाँव, शहर-शहर कुत्ता शो आयोजित किए जाने चाहिये जिस में कुत्तों को विभिन्न उपाधियों से सम्मानित किया जाये.


ओज़ोन परत बचाओ : इसके बारे में मुझे खुद ज्यादा कुछ मालूम नहीं है. बहरहाल इस विषय को आजकल खूब बोला सुना जा रहा है.


ब्युटि प्रतियोगिता बंद करो : यह नारी का अपमान है. खासकर असुंदर नारी का.किसी भूतपूर्व मिस इंडिया को तैयार करा के अखबारों में बयानबाज़ी की जाये कि  ये नारी का शोषण है और वह उन सभी बड़े-बड़े आदमियों के नाम बताएगी जिन्होने उसका शोषण किया था.


तो जनाब! चुन लीजिये अपना पसंदीदा इशू. चुनाव का मौसम सिर पर है. अधिक जानकारी के लिए टिकट लगा लिफाफा एक हज़ार रुपये के पोस्टल ऑर्डर के साथ निम्नलिखित पते पर भेजें. क्या कहा ? आप पहला इशू एक हज़ार रुपये में छूट का उठाना चाहते हैं ? आपकी मर्ज़ी. मैं तो कहूँगा मेरा लेख अपना असर दिखाने लगा है.


( व्यंग्य संग्रह 'मिस रिश्वत' 1995 से )







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