(बढ़ते आतंकवाद और हमारे खाली-पीली गाल बजाने पर)
हिंदुस्तान ने पचास हज़ारवीं बार अंतिम,फ़ाइनल बिल्कुल लास्ट वार्निंग पाकिस्तान को दे डाली. पाक को यह आखिरी मौका है अमन कायम करने का. अब हिन्दुस्तान घाटी में दहशतगरदी बिल्कुल भी सहन नहीं करेगा. हाँ ये एकदम लास्ट चांस है. इसके बाद कोई मौका नहीं दिया जाएगा. पढ़ कर तबीयत निशात और शालीमार बाग-बाग हो गयी. दिल में डल झील की तरह लहरें हिलोरे लेने लगीं. ये हुई न कुछ मर्दों वाली बात. बस भई, बहुत हो गया. हम आइंदा आतंकवाद सहन नहीं करेंगे. नहीं करेंगे. हाँ, कह दिया बस.
सवाल उठता है कि फिर भी आतंकवाद न रुका और बदस्तूर जारी रहा तो हम क्या करेंगे ? ये मुद्दे की बात है. हम रूस से कहते, जरा पाक को हड़काते हुए हमारे हक में बयान जारी करे. मगर अब तो रूस खुद ही नहीं रहा. अमेरिका हमारी तरफ है नहीं. फिर हम क्या करेंगे ? हम..हम... भूटान से कहेंगे. हम ...हम.. नेपाल से कहेंगे. हम मालदीव से कहेंगे की हमारी तरफदारी करे.वे राज़ी हो गए तो ठीक, नहीं तो हम खुद ही एक बयान जारी करेंगे और सीमा पार से आने वाले आतंकवाद की कड़े शब्दों में भर्त्सना करेंगे. हम चुप नहीं बैठेंगे. पाक किसी मुगालते में न रहे. हम उनकी हर गोली का जवाब अपने बयान से देंगे. गाल बजाने में हमारा कोई सानी नहीं है. हम अमन पसंद हैं. हम अहिंसा के पुजारी हैं. आखिर हमने कह ही तो दिया की आखिरी मौका है. बिल्कुल उसी तरह जैसे डोनेशन स्कूल वाले कहते हैं. आखिरी कुछ सीटें बची हैं. जैसे सेल धमाका वाले कहते हैं आखिरी दिन है लूट लो ...लूट लो. वो बात और है की ग्राहक खुद ही लुट कर लौटते हैं. जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के मेले वाले कहते हैं आज अंतिम मौका है जो खरीदेगा उसे टी.वी. के साथ टू-इन-वन फ्री. टू-इन-वन के साथ डी.वी.डी. फ्री., डी.वी.डी. के साथ हेडफोन फ्री और हेडफोन के साथ चार कैसट फ्री. तो भैया पाकिस्तानियो ! हमें ऐसा वैसा न समझना. हमने तुम्हें आखिरी मौका दे दिया है. फिर न कहना हमने बिना मौका दिये आतंकवाद का सफाया कर दिया. चलो उठाओ अपने टीन-टप्पर और चलते बनो. ये आखिरी मौका है. लाहौर बस के हमारे डी.टी.सी. के बकाया पैसे भी दे दो. अल्लाह तुम्हें बरकत दे. हमारी डी.टी.सी. वैसे भी घाटे में चल रही है. तुम और उधार खाने आ गए. आपने सुना नहीं उधार प्रेम की कैंची है.
गाँव वालो ! ये आखिरी मौका है. अब वक्त आ गया है कि शांति की शादी ( क्या फर्क पड़ता है बसंती हो या शांति ) अमन से करा दी जाए. नहीं तो क्या होगा ? नहीं तो.. कहीं ऐसा न हो कि हमें गुस्सा आ जाए और अगर हमें गुस्सा आ गया तो..हम नहीं जानते हम क्या कर बैठें. कुछ भी कर सकते हैं. समझे तुम ? कुछ भी हो सकता है. उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं. हो सकता है हम तुम्हें एक मौका और ही दे दें. हमारे मुल्क में मौका देने कि गौरवशाली परम्परा है. हमने मुहम्मद गौरी को कितने मौके दिये, इतिहासकारों में आज तक संख्या को ले कर विवाद है. हमने मुग़लों को मौका दिया. अंग्रेज, फ्रेंच, डच,पुर्तगालियों को मौके दिये. मौके देने कि कोई प्रतियोगिता हो तो भले ओलंपिक में हम नीचे से प्रथम आते हैं किन्तु मौका देने में हम टॉप पर होंगे. हीरो नंबर वन. हमने पाक को सन 1965 में मौका दिया, 1971 में मौका दिया और फिर कारगिल में इतने मौके दिये हैं कि उसे भी याद नहीं होगा. लेकिन हम दरियादिल हैं. हम विशाल हैं. हम सभ्य हैं. हमारी सभ्यता बहुत पुरानी है. सभ्य लोग मौका देते हैं. एक के बाद दूसरा. दूसरे के बाद तीसरा. तीसरे के बाद...
सर मुहम्मद इकबाल ने क्या खूब कहा था ....
"कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जमा हमारा"
(व्यंग्य संग्रह 'मेरे 51 व्यंग्य' 2008 से )
हिंदुस्तान ने पचास हज़ारवीं बार अंतिम,फ़ाइनल बिल्कुल लास्ट वार्निंग पाकिस्तान को दे डाली. पाक को यह आखिरी मौका है अमन कायम करने का. अब हिन्दुस्तान घाटी में दहशतगरदी बिल्कुल भी सहन नहीं करेगा. हाँ ये एकदम लास्ट चांस है. इसके बाद कोई मौका नहीं दिया जाएगा. पढ़ कर तबीयत निशात और शालीमार बाग-बाग हो गयी. दिल में डल झील की तरह लहरें हिलोरे लेने लगीं. ये हुई न कुछ मर्दों वाली बात. बस भई, बहुत हो गया. हम आइंदा आतंकवाद सहन नहीं करेंगे. नहीं करेंगे. हाँ, कह दिया बस.
सवाल उठता है कि फिर भी आतंकवाद न रुका और बदस्तूर जारी रहा तो हम क्या करेंगे ? ये मुद्दे की बात है. हम रूस से कहते, जरा पाक को हड़काते हुए हमारे हक में बयान जारी करे. मगर अब तो रूस खुद ही नहीं रहा. अमेरिका हमारी तरफ है नहीं. फिर हम क्या करेंगे ? हम..हम... भूटान से कहेंगे. हम ...हम.. नेपाल से कहेंगे. हम मालदीव से कहेंगे की हमारी तरफदारी करे.वे राज़ी हो गए तो ठीक, नहीं तो हम खुद ही एक बयान जारी करेंगे और सीमा पार से आने वाले आतंकवाद की कड़े शब्दों में भर्त्सना करेंगे. हम चुप नहीं बैठेंगे. पाक किसी मुगालते में न रहे. हम उनकी हर गोली का जवाब अपने बयान से देंगे. गाल बजाने में हमारा कोई सानी नहीं है. हम अमन पसंद हैं. हम अहिंसा के पुजारी हैं. आखिर हमने कह ही तो दिया की आखिरी मौका है. बिल्कुल उसी तरह जैसे डोनेशन स्कूल वाले कहते हैं. आखिरी कुछ सीटें बची हैं. जैसे सेल धमाका वाले कहते हैं आखिरी दिन है लूट लो ...लूट लो. वो बात और है की ग्राहक खुद ही लुट कर लौटते हैं. जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के मेले वाले कहते हैं आज अंतिम मौका है जो खरीदेगा उसे टी.वी. के साथ टू-इन-वन फ्री. टू-इन-वन के साथ डी.वी.डी. फ्री., डी.वी.डी. के साथ हेडफोन फ्री और हेडफोन के साथ चार कैसट फ्री. तो भैया पाकिस्तानियो ! हमें ऐसा वैसा न समझना. हमने तुम्हें आखिरी मौका दे दिया है. फिर न कहना हमने बिना मौका दिये आतंकवाद का सफाया कर दिया. चलो उठाओ अपने टीन-टप्पर और चलते बनो. ये आखिरी मौका है. लाहौर बस के हमारे डी.टी.सी. के बकाया पैसे भी दे दो. अल्लाह तुम्हें बरकत दे. हमारी डी.टी.सी. वैसे भी घाटे में चल रही है. तुम और उधार खाने आ गए. आपने सुना नहीं उधार प्रेम की कैंची है.
गाँव वालो ! ये आखिरी मौका है. अब वक्त आ गया है कि शांति की शादी ( क्या फर्क पड़ता है बसंती हो या शांति ) अमन से करा दी जाए. नहीं तो क्या होगा ? नहीं तो.. कहीं ऐसा न हो कि हमें गुस्सा आ जाए और अगर हमें गुस्सा आ गया तो..हम नहीं जानते हम क्या कर बैठें. कुछ भी कर सकते हैं. समझे तुम ? कुछ भी हो सकता है. उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं. हो सकता है हम तुम्हें एक मौका और ही दे दें. हमारे मुल्क में मौका देने कि गौरवशाली परम्परा है. हमने मुहम्मद गौरी को कितने मौके दिये, इतिहासकारों में आज तक संख्या को ले कर विवाद है. हमने मुग़लों को मौका दिया. अंग्रेज, फ्रेंच, डच,पुर्तगालियों को मौके दिये. मौके देने कि कोई प्रतियोगिता हो तो भले ओलंपिक में हम नीचे से प्रथम आते हैं किन्तु मौका देने में हम टॉप पर होंगे. हीरो नंबर वन. हमने पाक को सन 1965 में मौका दिया, 1971 में मौका दिया और फिर कारगिल में इतने मौके दिये हैं कि उसे भी याद नहीं होगा. लेकिन हम दरियादिल हैं. हम विशाल हैं. हम सभ्य हैं. हमारी सभ्यता बहुत पुरानी है. सभ्य लोग मौका देते हैं. एक के बाद दूसरा. दूसरे के बाद तीसरा. तीसरे के बाद...
सर मुहम्मद इकबाल ने क्या खूब कहा था ....
"कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे-जमा हमारा"
(व्यंग्य संग्रह 'मेरे 51 व्यंग्य' 2008 से )
दिया न एक मौका और दिया. और हां इसमें कुछ शक है, कहीं यह साध्वी प्रज्ञा सिंह ने तो नहीं कराये सरकार को बदनाम करने के लिये.
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