Ravi ki duniya

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Sunday, February 7, 2010

असली माल से सावधान

आपने अनेक विज्ञापनों पर ये चेतावनी पढ़ी होगी कि नकली माल से सावधान. फलां चिन्ह देख कर ही वस्तुएं खरीदें आदि आदि. असली चीज़ें अक्सर महंगी व दुर्लभ होती हैं. आपने लोगों को कहते भी सुना होगा कि ये टी.वी.सबसे बेहतरीन है अर्थात सबसे महंगा है या फलां चीज़ तो बस दुनिया में अब तीन ही हैं एक उनके पास, दूसरी अमरीका में एक अरबपति के पास है व तीसरी अरब के शेख के पास है. हम जैसे आटा दाल मोल लेकर स्वयं राशन की दुकान से लाकर खाने वाले अनगिनत असली वस्तुएं एफोर्ड नहीं कर सकते. मगर वह मध्यम वर्ग ही क्या ज़ो हालात से समझौता कर ले. उसकी नियति तो पिसते रहने में ही है. मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ के शाश्वत झूले में यह मेरा मध्यम वर्ग पड़ोसी इफेक्ट से प्लेग की तरह संक्रमित रहता है. "अच्छा ! पड़ोसी ने नया कलर टी.वी. खरीद लिया है, मुझे बता कर जला भी रहा है. मैं अभी इस से भी बड़ा खरीद कर लाता हूँ. पड़ोसी ने लंबी कार खरीदी तो पत्नी ने ताना दिया क्या कर रहे हो ज़ी क्या यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहोगे. जाओ जाकर उस से भी लंबी कार ले कर आओ. मैं एक ऐसे दंपति को जानता हूँ ज़ो अपनी कार को शीशे बंद कर के चलाते थे ताकि लोगों को एयर कंडीशन कार का भ्रम हो. यदि आप सक्रिय राजनीति में नहीं हैं व न आपका कोई मामा,चाचा दुबई में है यहाँ तक की कोई कज़िन पुलिस या कस्टम में भी नहीं है तो आप हर वस्तु असली और महंगी कैसे लाएँगे ?. आपका खास ख्याल रखते हुए चलाये गए हैं नकली सामान, नकली इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स , नकली सेंट और न जाने क्या क्या.
अब मध्यम वर्ग बहुत कम हींग और फिटकरी लगा कर यह सब देश में ही खरीद सकता है. एक कहावत है सस्ता रोये बार-बार. यह गलत है. नेगेटिव विचार है . आप भूल रहे हैं कि सस्ता है तो खराब होते ही आप दूसरा ल सकते हैं. अतः कहना चाहिये सस्ता खुश होए बार-बार यह पॉज़िटिव विचार है.
घी,तेल,मक्खन,दालों तथा मसालों में इतनी मिलावट होती है की सरकार गंभीरता से ऐसे कानून बनाने पर विचार कर रही है कि आप पाँच सौ ग्राम दाल खरीदने जायें तो नयी उपभोक्ता क्रांति के अंतर्गत अपने हिस्से के सौ ग्राम कंकड़ चाहें तो दाल में मिलवा लें अथवा अलग से पेक करा सकते हैं. इसी प्रकार अन्य मसालों उदाहरणत: काली मिर्च में पपीते के बीज़ सरकार द्वारा निर्धारित अनुपात में अलग से लिए जा सकेंगे. दुकानदार मिलावट का प्रतिशत लिख कर टांगेंगे ताकि ग्राहकों को सूचना रहे वह मन माफिक स्वादानुसार और अपने मेदे को ध्यान में रख कर वस्तुएं खरीद सकें. इस मामले में बम्बई के पान वालो का मैं कायल हूँ ज़ो ग्राहक से पहले ही पूछ लेते हैं "ज़र्दा प्यौर माँगता क्या ? या चालू "!
लोग कहते हैं की जब असली मिलता हो कोई नकली क्यूँ ले. मैं कहता हूँ जब नकली इतना सस्ता और सहज सुलभ हो तो कोई असली क्यूँ ले.नकली शराब ने देश की कितनी सेवा की है किसी से छुपा नहीं है.देश की बढ़ती जनसंख्या को घटाने में नकली शराब की अहम भूमिका रही है. हमारे संविधान में नीति निर्देशक तत्वों में एक नीति निर्देश यह भी है की राज्य पूंजी का विकेंद्रीकरण करेगा. इसके मर्म को समझते हुए जगह-जगह लोग नकली माल बना कर असली माल के निर्माताओं की पूंजी का बँटवारा कर संविधान की अनुपालना कर रहे हैं.


हमारे जीवन में नकली की इतनी भरमार है कि जीवन के हर क्षेत्र में यह दृष्टिगोचर होती है.साथ रहने से प्रीत बढ़ती है. नकली से दोनों की प्रीत है. विक्रेता की भी व खरीददार की भी.अभिनेताओं के डुप्लिकेट होते हैं.विज्ञापनों में अभिनेताओं की आवाज़ की नकल की ज़ाती है. नवयुवक-नवयुवतियाँ, अभिनेता-अभिनेत्रियों के वस्त्राभूषण, हेयर स्टाइल यहाँ तक कि मुस्कान की भी नकल कर अपना लोक-परलोक दोनों सुधारते हैं. आजकल नकली घास और पौधों से लेकर नकली आँख,नकली आँसू,तक बाज़ार में बिकते हैं. नकली कपड़ा बाज़ार में आम मिलता है जिसकी बनी पेंट एक ही धुलाई में टू-इन-वन (पेंट-कम-पाजामा) बन ज़ाती है ताकि आप सुविधानुसार प्रयोग में ला सकें.आगरा वाले बताते हैं कि वहाँ ऐसे नकली जूते भी बनते हैं जिन्हें टूरिस्ट को पहना कर दुकानदार अपने ही रिक्शे से स्टेशन पहुँच देते हैं कारण की पैदल जाने पर तो जूते आधे रास्ते में ही पाँव से उखड़ कर हाथ में आ जायेंगे.


नकली से निजात नहीं. मिलावटी दूध से बनी नकली चाय पीने से आपका दिन शुरू होता है.नकली मिर्च-मसालों में बना नकली अंडों के नाश्ते को खाने के बाद आप मिलावटी पेट्रोल के अपने वाहन में दफ़्तर पहुचते हैं. नकली टूथपेस्ट,नकली साबुन से धुले-नहाये, मिलावटी अन्न-दाल खा कर आप बीमार पड़े डॉक्टर के पास भागे जाते हैं. आपकी किस्मत से डॉक्टर अगर नकली नहीं है तो दवाई नकली है.यहाँ तक कि इन सबसे तंग आकर अगर आप आत्महत्या भी करना चाहें तो उतना आसान नहीं हैं. रस्सी टूट सकती है (आपके वजन से नहीं, नकली है इसलिये) ज़हर खा कर भी आप बच सकते हैं. तो देखिये नकली का कितना बोलबाला है. नकली मेकअप, आभूषण पहन आधुनिकाए अच्छी अच्छी सुंदरियों को भी मात दे देती हैं. ब्युटि पार्लर तो नकली की ही नींव पर खड़े हैं. विग, भवे, नाखून, बोलो ज़ी क्या क्या खरीदोगे. बचपन में मैंने एक रिश्तेदार के यहाँ घास फूस का, खाल ओड़े बछड़ा देखा था, मैं चकित हुआ गाय भी इस प्रकार के खिलौने से खेलती है.पता चला कि यह नकली बछड़ा इसलिये रखा गया है कि गाय का दूध न सूख जाये और वो दूध देना बंद न कर दे. बस यही कुंजी है. आज हमारे जीवन के हर क्षेत्र में एक नकली बछड़ा खड़ा है.हाल ही में मैं एक ऐसी नवयुवती से मिला जिसने गोरे होने की धुन में किसी ऐसे प्रसाधन का प्रयोग कर लिया जिस से वह अपने तमाम चेहरे को जला बैठी. आखिर उसके प्रेमी ने उस से करुणामूलक आधार पर शादी कर ली.कारण कि उसी के लिए तो बेचारी सजती सँवरती थी.


अब समय आ गया है की नकली को स्वीकार कर उसे उसकी ड्यू मान्यता दिलाई जाये. आइ.एस.आइ. और एगमार्क वालों को इस उपेक्षित क्षेत्र की ओर ध्यान देना चाहिये. क्या उन्हें पता है कि आइ.एस.आइ. की नेम प्लेट बाज़ार में खुली बिकती है और आप जिस चीज़ पर लगाना चाहें आपकी श्रद्धा है बिल्कुल यू.एस.ए. की तर्ज़ पर. तरक्की करते करते अब तो हम उस स्टेज पर आ गए हैं कि एक दिन मेरे पड़ोसी के बड़े ज़ोर से पेट में दर्द हुआ,बार बार बाथरूम को दौड़े जाते थे.पता चला कि उन्होने कहीं से एक ग्लास शुद्ध दूध पी लिया था और तभी से तबीयत खराब हो गयी आखिर शरीर को आदत ज़ो न थी.


हम सभी लोग जानते हैं की गोरा साब लोग से काला साब लोग के हाथ में सत्ता 15 अगस्त 1947 को ट्रांसफर हुई थी. बहुत से लोग इसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में भी मनाते हैं.स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन, ताम्रपत्र,आउट ऑफ टर्न एलाटमेंट, फ्री रेल पास आदि मिलता है. इतनी सुविधाएँ देख कर कौन नहीं 'सेनानी' बन जायेगा. सन 47 से आज तक भी नए नए स्वतंत्रता सेनानी मार्किट में आ रहे हैं. मैंने एक से पूछा तो उनका गंभीर उत्तर था " स्वतंत्रता तो एक स्टेट ऑफ माइंड है क्या हमें सन 1962, में,1965 में और सन 1971 में एक तरह से स्वतंत्रता नहीं मिली". मैं निरुत्तर हो गया. भाई लोगों ने काफी आगे तक बच्चों के बच्चों के लिए भी इंतज़ाम कर रखा है. इसी को कहते हैं दूर दृष्टि. अब फील्ड में इतने सारे नकली स्वतंत्रता सेनानी हो गए हैं कि बेचारे असली तो मन मारकर चुपचाप बैठ गए हैं अगर यही स्वतंत्रता है तो इस से गुलामी क्या बुरी थी.


नकली किताबों (पाइरेसी) से बाज़ार अटा पड़ा है. कान्वेंटो की तर्ज़ पर सेंट फकीर स्कूल गली-गली नुक्कड़-नुक्कड़ खुल गए हैं, जिनमें मेरे देश का भविष्य अंग्रेज़ी कविताएँ रटता है. अंत में इन सब से अलग हट कर एक क्षेत्र ऐसा भी है जिसमें नकल करने वालों की सराहनीय उपलब्धियाँ रहीं हैं.उनकी जितनी तारीफ की जाये कम है. मेरा शत शत प्रणाम नकली दिल, नकली पाँव बनाने वालों को जिनकी सहायता से बे दिल लोग दिलदार हो गए हैं तथा पंगु गिरि लाँघ रहे हैं. 

(व्यंग्य संग्रह  'मिस रिश्वत' 1995)





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