जब से हिंदुस्तान के दो-दो चाँद सुष और ऐश ने हिंदुस्तान की खूबसूरती में चार चाँद लगाये हैं. हर कस्बे, शहर और गाँव में खूबसूरती के इम्तिहान (ब्युटि कॉन्टेस्ट) होने लगे हैं. एक कोल्ड ड्रिंक और कोल्ड क्रीम कंपनी ने मिल कर एक विस्तृत योजना तैयार की है जिसके मुताबिक सन 2020 तक हर गली, मोहल्ले में ब्युटि कॉन्टेस्ट हुआ करेंगे. मसलन लोग कहेंगे इनसे मिलिए ये मिस आर.के. पुरम हैं. फलां जलसे का उदघाटन मिस सदर बाज़ार ने किया. पूरे बरस भर हर नुक्कड़,हर चौराहे पर ये मेले चलते रहेंगे. इसका फ़ाइनल किसी सुंदरी की सालगिरह पर किया जाएगा. इस दिन को, हर साल, बतौर खूबसूरती दिवस मनाये जाने के लिए एक मुहिम छेड़ी जाएगी जिसके तहत हिंदुस्तानी सरकार पर संयुक्त राष्ट्र संघ, वर्ल्ड बैंक आदि से दबाव डलवाया जाएगा कि इस दिन को नेशनल होली डे घोषित किया जाए. मेरे मुल्क में तो पहले से ही ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ की एक लंबी परंपरा रही है. जैसे अन्य अनेक क्षेत्रों में वतन अपने शानदार इतिहास से बेखबर है उसी तरह इस बारे में भी उसे झकझोरने की ज़रूरत है. बाकी लड़ाई महिला संगठन आज़ादी के नाम पर खुद ही लड़ लेंगी.
मुझे तथा मुझ जैसे अनगिनत जमुना पार रहने वालों को बड़ी दिली तसल्ली हासिल हुई जब पता चला कि साप्ताहिक शुक्र बाज़ार वालों ने एक ‘मिस पटपड़गंज’ ब्युटि कॉन्टेस्ट स्पॉन्सर किया है. मेरा सिर घमंड से ऊँचा हो गया और छाती फूल गयी. बहुत सह लिए दोस्तों के ताने “...सारे दुखिया जमुना पार..” अब मैं भी सोसाइटी में उठने-बैठने लायक हो जाऊँगा. जमुना पार इलाक़ा बहुत दिनों तक एहसास-ए-कमतरीकी में रह लिया. अब वक्त आ गया है कि जमुना के इस पार वालों को जिसे वह साउथ दिल्ली कहते हैं बता दिया जाए कि ईस्ट दिल्ली ईस्ट दिल्ली है. अब हम भी हॉट डॉग और पिज़्ज़ा खाते हैं. तुम और क्या खा के मुक़ाबला करोगे. है तुम्हारे पास हमारी जैसी गंदगी, हैं तुम्हारे इलाक़े में हमारे जैसे मक्खी –मच्छर. नहीं न. वो दिन गए जब तुम स्टाइल से कहते थे सी.पी. जा रहे हैं. अब हम भी कहते हैं एस.पी. जा रहे हैं. नहीं समझे ? शकरपुर. आज के युग में जब सब अपना अपना बुंदेलखंड और तेलंगाना माँग रहे हैं तो हम ट्रान्स-जमुनाइट्स (टी.जेज) ने भी अपने कॉफी हाउस, अपने नेता, अपने घोटाले, अपने स्लम तथा वेश्यालय तक डेवलप कर लिए हैं.
आप आगे-आगे देखते जाइए. जैसे भारत को किसी ज़माने में ज्वेल ऑफ ईस्ट कहा जाता था उसी तरह ईस्ट दिल्ली को दिल्ली का ज्वेल कहा जाने लगेगा. लोग इठला के कहेंगे “मैं जी.के. में रहता हूँ” (गोकुलपुरी-कल्याणपुरी)
लेकिन ये सब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से नहीं होगा. टी.जेज को बहुत मेहनत करनी होगी. अभी दिल्ली दूर है. हमें अपने शॉपिंग सेंटर डेवलप करने होंगे जहाँ हमारा ठलुआ यूथ, बर्ड वाचिंग कर सके तथा वेतन आयोग के मारे सरकारी कर्मचारी विंडो शॉपिंग कर सकें. हमें अपने जुर्म, अपने मुजरिम अपनी जेल बनानी होगी. एक विकास मार्ग से ही खुश नहीं हो जाना है. अभी बहुत विकास करना है. हम अपनी जेल का नाम किसी डकैत से नेता बने व्यक्ति के नाम पर रख सकते हैं या फिर सर्वप्रथम क़ैदी के नाम पर. पता नहीं किसी नेता का ध्यान अभी तक इस ओर क्यों नहीं गया जो हर रोड, हर अस्पताल का नाम बदलते फिरते हैं और इस से राजनीतिक लाभ लेते हैं या फिर अपने देशभक्त होने का प्रमाण जुटाते हैं. मुझे एक लोकप्रिय फिल्म का डाइलौग याद आ रहा है जिसमें हीरो के यह कहने पर “मेरे पास धन-दौलत, बिल्डिंग हैं तुम्हारे पास क्या है ?” हीरो का भाई कहता है “मेरे पास माँ है”. तो सुन लो ऐ नयी दिल्ली वालो अगर तुम कहते हो तुम्हारे पास फाइव स्टार होटल,डिस्को.और बार हैं तो हम कहेंगे “ हमारे पास मदर डेरी है”
मेरी बड़े-बड़े नेताओं,अभिनेताओं अभिनेत्रियों से ये अपील है की आप यहाँ कोठी,कोठा,कोठरी अपनी अपनी हैसियत अनुसार बनवा लें. हम लोगों की इसमें बड़ी इज्ज़त अफजाई होगी. अभी तो हमारे पास केवल निम्न मध्यम वर्ग के वर्कर, सेवानिवृत अफसर,कुंठाग्रस्त पत्रकार (गुलमोहर पार्क के आगे) तथा दोयम दर्जे के नेता ही बसते हैं. कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में कुछ महीनों को राजधानी शिमला भी जाती थी. बस इसी तर्ज़ पर जो थोड़े से नेता अंग्रेजों के ज़माने के बचे हैं उनसे मेरा अनुरोध है कि कुछ महीनों को राजधानी को पार्लियामेंट स्ट्रीट से त्रिलोक पुरी लाया जाए. वजीरेआज़म अपनी खिचड़ी सरकार के वज़ीरों के साथ कभी खिचड़ीपुर भी पधारें. कुछ नहीं तो एक अदद हवाई अड्डा ही वहाँ बनवा दें. ताकि देशी-विदेशी वी.आइ.पीज के आने जाने से ही मेरा इलाक़ा सुर्खरू हो जाएगा. ‘रस्सी आवत – जावत से सिल पर पड़त निसान’. पुलों पर बढ़ते ट्रेफिक के चलते मेरा सुझाव है कि हेलिकॉप्टर, फैरी और होवरक्राफ्ट की सुविधाएँ भी मुहैया कराई जायें. विदेशी सरकारों से भविष्य में माँगे जाने वाले ऋणों तथा अनुदानों में अनिवार्य दान जमना पार में एक दूतावास अथवा कोंसुलेट का हो सकता है.
नोएडा और सोसाइटी वालों ने जमना पार का भरपूर शृंगार किया है. अनगिनत विहार बन गए है. जिन्हे ढूँढते-ढूँढते आप स्वयं खो जायेंगे. नयी दिल्ली वालों ने एक सफदरजंग के नाम से मकबरा, हवाई अड्डा ,अस्पताल, एंक्लेव, डेवलपमेंट एरिया आदि ना जाने क्या क्या बना लिए हैं. वे सोचते थे वे ही कनफ्यूजन कर सकते हैं. हमने भी जवाब में इंद्रप्रस्थ के नाम से स्टेडियम,बिजली घर, एस्टेट,एक्स्टेंसन,विहार,अपार्टमेंट,एंक्लेव सभी बना लिए हैं.
हमें अपनी यूनिवर्सिटी भी चाहिये. हम नहीं चाहते कि हमारे बे-रोजगार किसी अन्य यूनिवर्सिटी से आयें. हमें अपना मंडी हाउस जैसा हाउस भी माँगता है. जहाँ संघर्षरत बड़े-बड़े (ये छोटे होते ही नहीं) कलाकार और बुद्धिजीवी जुटेंगे. जो चाय और सिगरेट के बदले देश,कला संस्कृति साहित्य किसी पर भी धड़ल्ले से चिंतन कर सकेंगे. इसके लिए दिलशाद गार्डन का नाम प्रस्तावित है. शायराना नाम है. इस तरह से जब हमारे पास अपने नेता,अपने घोटाले, अपने परजीवी तथा बुद्धिजीवी हो जायेंगे तो वे दिन दूर नहीं जब बाकी दिल्ली वाले हमें देख बाल नोचेंगे,छाती पीटेंगे, और हसरत से आहें भर कहेंगे “साकिन तेरी गली का हर आन में वली है”
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