खुशहाल, समृद्ध, भाग्यवान, दिमागवाला, सेक्सी और पैसेवाला इन सभी के लिए हमारी हिन्दी भाषा में एक शब्द है – गंजा. जब बाल उड़ना शुरू होते हैं तो आपके शुभचिंतक आपको मीठा उलाहना देने लगते हैं, “ गुरु बहुत पैसे आ रहे हैं ...अमीर बन रहे हो ...भाग्य जाग रहा है..” आदि आदि. यह सब कहावतें इसलिये चला दी गयीं हैं की आपको बाल उड़ने से कहीं डिप्रेसन न हो जाए. सुना है यूरोप में तो बाकायदा गंजों के पृथक क्लब हैं . अब उनकी भली चलाई. आपको तो मालूम है वहाँ किस्म किस्म के लोगों ने किस्म किस्म की बातों के लिए क्लब खोल रखे हैं. बहरहाल भारत में जहाँ पत्नी पीड़ित जैसी गंभीर संस्था को भी लोग विनोदमिश्रित संदेह से देखते हैं. वहाँ गंजों के क्लब का भविष्य उतना ही उज्जवल है जितना उनके सिर पर पुनः बाल उग आने की संभावना. जिस तरह आँख के चश्मे से पढ़ाकू, चौड़े माथे से विद्वान होने का मिथ रहता है उसी तरह गंजेपन से मननशील,विचारशील होने का भ्रम होता है. वो भी बिना कुछ किए धरे ही. कितनी सुखद अनुभूति है,
मेरे गंजे होने की खबर सुन काफी लोग मुझे सांत्वना और मुफ्त के नुस्खे देने चले आए –
हज़ार ग़म पास आ बैठे
एक तेरे दूर जाने से
एक डाक्टर मित्र ने कहा की मैं फौरन आल इंडिया इंस्टीट्यूट चला जाऊँ और अमुक विभाग अध्यक्ष से मिलूँ. मैंने कहा की आप उनके लिए एक पत्र लिख दीजिये तो बोले “ पत्र की कोई आवश्यकता नहीं है बस देख भर आना “ अभी मैं चमत्कृत हो ही रहा था की वे ठठाकर हंस पड़े, बोले “भले मानस वो तक पूरे के पूरे गंजे हैं , इसलिये ये भूल जाओ की इसकी कोई दवा है. लेकिन वो मन ही क्या जो मान जाए. एलोपेथी न सही ‘होम’ पेथी सही. मोटापा घटाने, बाल काले करने, सेक्स क्षमता बढ़ाने,कद लंबा करने, रंग निखारने व लड़का पैदा कराने आदि कुछ ऐसे उद्योग हैं जो भारत में कभी अप्रासंगिक या आउट डेटेड न होने पायेंगे. ऐसा ही एक उद्योग है ये बाल उगाने का.
शुरू मैं जिसने जो बताया लगा लिया. चूल्हे की कालोंच, खीरे का गूदा,शलजम का रस,प्याज का अर्क और सतरह तरह के तेल. उल्टा उस्तरा चलवाने मैं इतनी बार सैलून गया कि वहाँ सभी मुझे पहचान गए थे. मुझे आता देख मूछों में मुस्कराने लगते थे. पहले अटपटा लगता था.फिर आदत हो गयी और इस समस्या पर मैंने एक प्रकार का दार्शनिक रुख अपना लिया .
एक मित्र हमारे यहाँ आए . उनकी नन्ही बेटी ने मेरी छोटी बेटी का मुंडन देखा तो चहक उठी, बोली “ अंकल आपने अस्मिता के तो सारे बाल कटा दिये मगर खुद अपने ऐसे डिज़ाइन वाले क्यों कटवाये हैं.” अब उसे क्या पता कि गंजेपन का झोंका आपके सिर पर किस देश का मानचित्र बना दे. सब ऊपरवाले के हाथ में है. पिछले दिनों केरल के एक तेल के बारे में पढ़ा. हमने भी आवेदन भेजा किन्तु उनका एक मुद्रित पत्र मिला जिसमे धन्यवाद के साथ हमारा रजिस्ट्रेशन नंबर दिया था और बताया था की आपका नंबर आठ साल बाद आएगा . मुझे बरबस ही ग़ालिब की याद हो आई
“कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक...”
बहरहाल एम.पी. कोटे से छह बोतलें मँगवाई परंतु अफ़सोस छह बाल भी न आए. उत्पादक की ज़रूर पौ बारह हो गयी. ऐसे अनेक खट्टे-मीठे अनुभव मुझे बाल उगाने की असफल कोशिश में हुए हैं.
एक इश्तिहार ने तो यहाँ तक ताकीद की थी – “ सावधानी से दस्ताने पहन कर लगाएं,तूफानी तेल की बूंद अगर हाथ पर पड गयी तो हथेली पर बाल ही बाल हो जायेंगे. इसके लिए उत्पादक जिम्मेवार न होंगे. नकली माल से सावधान. हमारी कोई ब्रांच नहीं है.’’ एक जोड़ी दस्ताने साथ बेच रहे थे. पढ़ कर तबीयत खुश हो गयी. दुकान से घर का रास्ता लंबा मालूम देता था. जी में आया कि दुकान में ही कोई टेलर की दुकान की तरह ट्राइल रूम हो. मैं तेल लगा लूँ और घर चलकर ‘सर’ प्राइज़ दूँ. अंग्रेजी में कहावत है कि ‘एज़ बाल्ड एज़ एग’ तो लाख जतन किए मगर खोपड़ी अंडे जैसी ही रही.
हाल ही में एक पोस्टर देखा. एक गंजे का ब्लो अप था. नीचे लिखा था “बाल्ड इज ब्यूटीफूल – शेष खोपड़ियों में त्रुटि थी सो ईश्वर ने अपनी गलती बालों से छुपा दी है.” बड़ी खुशी हुई कि इन पोस्टरवालों ने गोविंदा, जुही चावला के पोस्टरों की रेल-पेल में हम गंजों की भी सुधि ली.वैसे कई बार सोचता हूँ गंजे होने के कई लाभ भी हैं. कोई फैशन आए झंझट ही नहीं कि देव आनंद ,राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन या संजय दत्त कट बाल रखे जाएँ. अपना तो फेवरिट अनुपम खेर है. मनाता हूँ, हे भगवान कोई ऐसा फैशन आ जाए जिसमे बाल रखना निहायत भोंडापन और दकियानूसी माना जाने लगे. अपुन की तो बन आएगी. एवर ग्रीन फैशन में रहेंगे ‘नेचुरली’. तेल, शेम्पू, कंघी,और डाई के पैसों की बहुत बचत होती है. सोचिए नहीं तो हर माह इनका ही कितना खर्चा आ जाता है. नाइयों के रेट वैसे ही आकाश छू रहे हैं. ‘मनी सेव्ड इज मनी अर्नड’ ये पैसे जो बच रहे हैं, इन्हें एकत्र कर आप वैसे ही अमीर हो जायेंगे .कुछ नासमझ अच्छे प्यारे गंज को विग से छुपाने का असफल प्रयास करते हैं. मैं कहता हूँ विग तो आपके गंज का सरासर अपमान है. आपके दाढ़ी, मूंछ न हो तो क्या आप नकली लगाये फिरेंगे या फिर नकाब ओढ़ लेंगे ? नहीं न. मुझे तो घिन आती है. मैं तो आजकल की सिने-तारिकाओं की तरह डंके की चोट पर कहता हूँ –“हमारे पास कुछ है तो क्यों न दिखायें?”
गंजे लोग बहुत महान हुए हैं. वो गंजे थे इसलिये महान हुए या महान थे इसलिये गंजे हुए. यह अंडा पहले हुआ या मुर्गी पहले हुई के स्तर का विवाद है. अतः इसमे पड़ने की बजाय यह जानना ही पर्याप्त है कि जिस तरह मुर्गी और अंडे का संबंध है उसी तरह गंजेपन और महानता का है. नेहरू, गांधी और पटेल सभी इसके उदाहरण हैं. आप जितने भी विचारकों, मनीषियों और बुद्धिजीवियों को देखेंगे गंजा ही पायेंगे . महिलाएँ गंजी क्यों नहीं होतीं हैं ? आपको भी पता है. मुझ से क्यों कहलवाना चाहते हैं.
हमारे लड़कपन में हमारे पिताजी लगभग हर हफ्ते ही नाई को घर पर न्योत आते थे. हम सब भाइयों को ‘लाइन हाज़िर’ कर दिया जाता था . बेहद भयानक और भोंथरी मशीन से हमारा बालसंहार होता था. छोटे-छोटे क्रूकट बाल देख कर माँ बाप को बहुत संतोष होता था कि उन्होने अपनी संतान को बिगड़ने से बचा लिया और एक अच्छे माता-पिता के कर्तव्य का निर्वाह किया है . इसके विपरीत जब मैं प्राकृतिक तौर पर गंजा हुआ तो माताजी रोने लगी. रात-रात जाग कर नया लेप या तेल मलतीं –“हाय मेरे बेटे को भरी जवानी में ये क्या हो गया ?...शादी में ‘मार्किट वैलू’ डाउन होगी सो अलग .
पढ़ कर मजा आया. गंजा ही जाने गंजे की भाषा (दर्द)!
ReplyDeleteअनुपम खेर का एक प्रस्तुतिकरण भी देखा था इसी विषय पर. वो भी लाजवाब था.