Ravi ki duniya

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Monday, February 8, 2010

मत मतदाता मतदान


इस सदी के सामाजिक, राजनीतिक प्राणी को सबसे अधिक महत्वपूर्ण भेंट मताधिकार की मिली है. मत का अन्य अर्थ नहीं होता है. आपने रोको मत जाने दो की कहानी तो सुनी होगी. कैसे कौमा रोको के बाद लगाओ तो एक अर्थ होता है और मत के बाद लगाओ तो दूसरा एकदम उलट अर्थ. इसी प्रकार मतदान से आप प्रत्याशी को जाने दे सकते हैं. चाहे तो रोक भी सकते हैं. श्रद्धा आपकी, हृदय आपका, जो चिकनी चुपड़ी बातों में आए अथवा कंबल,शराब में.
जो प्रत्याशी हाथी,ऊँट, कार, सूरज चंद्रमा अपना चुनाव चिन्ह रखते हैं उनके लिए एक बुरी खबर है. एक प्रत्याशी ने अपना चुनाव चिन्ह छाता रखा और गाँव गाँव में छतरी बँटवा दीं. मेरी छतरी के नीचे आजा ! सूरज, चंद्रमा के चिन्हों वालों से अगर मतदाताओं की ऐसी ही अपेक्षाएं जागीं तो प्रत्याशी तो बेचारे मैदान से रातों रात उड़ जायेंगे. हम छोटे थे तो मोहल्ले में बिल्ले (बैज) बाँटने वाले आते थे. हम लोग बिल्ले में ही खुश हो जाते थे और बिल्ले वाले के लिए मन ही मन दुआ करते थे कि ऐसा कुछ हो जाए कि  हमें और बिल्ले मिल जाएँ. अब टेंकरों में शराब, जीप में हथियार  ले कर लोग आते हैं.  बोलो क्या माँगता? पर वोट अपुन को. पहले ज़माने में राजा लोग एक दूसरे के राज्य पर चढ़ाई करते थे, आजकल बूथ केप्चरिंग करते हैं. पहले लोग बात के धनी होते थे और बातों से मान जाते थे. अब लोग धन की बात करते हैं और बिना एडवांस लिए नहीं मानते, बात, लाठी-भाटा और दंगे की स्टेज से निरंतर क्रमिक विकास करती हमारी चुनाव प्रक्रिया अब कट्टा तमंचों, बम्ब और ए.के. 47 तक आन पहुँची है. ए.के.47 तो कहते हैं बनी ही हिंदुस्तान के लिए है. सन 47 में हमें आज़ादी  मिली थी. शायद उसी के स्मृति स्वरूप इसका नामकरण किया गया है.

पहले जनसंख्या कम थी अतः उम्मीदवार भी कम हुआ करते थे. एक ही दिन  में मतदान हो जाया करता था. अब जनसंख्या बढ़ी है. बेरोजगारी बढ़ी है. अतः उम्मीदवार भी बढ़े हैं. जिस तरह सिपाही या क्लर्क की भर्ती के लिए एक पद के लिए 10 हज़ार आवेदन आते हैं. उसी तरह अब चुनाव क्षेत्र में इतने प्रत्याशी ही जाते हैं कि अख़बार से भी बड़े-बड़े मतपत्र छपवाए जाते हैं. चुनाव चिन्हों की अलग मुसीबत. घड़ा,सुराही,मछली, बक्सा,मेज़,चूल्हा,साइकल ,टेलेफोन,थाली,बेलन,लोटा कटोरा जो हाथ में आए झपट लीजिये इस से पहले की प्रतिद्वंदी ले उड़ें. एक प्रत्याशी ने अपना चुनाव चिन्ह माचिस रखा. सभी को बताते थे कि  कैसे आग निर्माण करती है और शत्रुओं का विनाश करती है. वैसे ही वह चुनाव जीत जाने पर करेगा. बदकिस्मती से वह चुनाव हार गया. ज़मानत ज़ब्त हो गयी. बेचारे ने आग लगा कर आत्महत्या करनी चाही, मगर बचा लिया गया. समर्थकों ने सांत्वना दी इतने सब उप चुनाव होते रहते हैं. अबके किसी अन्य चुनाव चिन्ह से भाग्य आज़माना. उम्मीदवार की मृत्यु होने पर चुनाव रद्द करने का नियम जब से चला है उम्मीदवार को जान के लाले पड़ गए हैं. मुँह छिपाकर फिरते हैं, दूसरी पार्टी अलग ताक में रहती है. सुरक्षाकर्मी भी मिल जाते हैं. पिछले दिनों अख़बार में खबर आई थी एक उम्मीदवार के सुरक्षाकर्मी की वजह से उम्मीदवार की पत्नी उम्मीद से हो गयी. प्रत्याशी ने सरकार से गुहार लगाई चुनाव जाए भाड़ में पहले मेरी और मेरी बीवी की सुरक्षाकर्मी से सुरक्षा की जाए.

मतदान के दिनों खूब त्योहारमय माहौल रहता है. आपने देखा होगा जिन डाकियों की पूरे साल शक्ल भी नहीं देखी होती है वो सब कैसे होली दीवाली पर आपसे आपका ही डाकिया कह के घनिष्ठता दिखाते हैं. कोई मुझे बता रहा था डाकिया लोग कुछ दिनों पहले से ही खतों को जमा करना शुरू कर देते हैं ताकि होली दिवाली के आस पास डिलीवरी की जा सके. उसी प्रकार चुनाव के दिनों में ऐसे ऐसे प्रत्याशी आप से मिलते हैं जिन्हें पहले आपने कभी देखा न हो और यकीनन आगे भी पाँच साल भले जीतें या हारें देख न पायेंगे.जिस मोहल्ले में जनसंपर्क करना होता है वहाँ पहले ही जयकारा करने हेतु चेला पार्टी भेज दी जाती है, घरों में से माएं-बहुएँ निकल कर आशीष देती हैं तथा चेला पार्टी द्वारा पहले से वितरित पुष्पाहार पहनाती हैं. प्रत्याशी खीसें निपोरते  और सेवक भाव से हाथ जोड़ते आगे बढ़ते जाते हैं.

साक्षरता अभियान तथा प्रौढ़ शिक्षा की सफलता का मापदंड यही है कि व्यक्ति भले हो बौड़म, मगर मतदाता बनते ही वह बड़ों बड़ों का अन्नदाता और भाग्य विधाता बन जाता है. बड़े बड़े बुद्धिजीवियों द्वारा लगाये जा रहे कयास को धता बता देता है. स्वानाम धन्य बुद्धिजीवी फिर चुनाव के परिणामों की अपेक्षा रूरल मतदाता के मूड का विश्लेषण करने में जुट जाते हैं. वह भी अंग्रेजी में. दुकान चलती रहती है. आइटम बदलते रहते हैं. हम सब जानते हैं देखते-देखते कैसे हरिया की दुकान हरीश, हरि होते होते आज हेरीज कॉर्नर हो गयी है. पदयात्रा,बिल्ले-झंडे,झंडी से यात्रा करते हुए जनसंपर्क भी हाइ-टेक हो गया है. आडिओ कैसट  और जीप पुराने पड़ गए हैं. अब समय है टी.वी. नेटवर्क, चुनाव रथ, हेलिकॉप्टर और विडियो फिल्मों का. अब शराब की बोतलें नहीं बाँटी जातीं बल्कि पानी के बड़े-बड़े टैंकर शराब से भर कर गाँव, मोहल्लों में पार्क कर दिये जाते हैं.
                कबिरा खड़ा बाज़ार में, लिए टैंकर भराय
                जाको जितनी चाहिये बाल्टी भर-भर ले जाए

इस से उम्मीदवार की  फिराक दिली का पता चलता है. वह पुराने ज़माने के कैंडिडैटस कि तरह नहीं कि बोतलें बाँटे और हिसाब रखे.

                साकी मैं तेरी तंग दिली जानता  हूँ
                इसलिये ओक से पीता हूँ,कि अंदाज़ न हो

मैंने सुना है कि अगले चुनाव में विडियो की  प्रचारात्मक शैली में भी आमूल परिवर्तन लाये जा रहे हैं. बंबइया फिल्मों के निर्देशक,संगीतकार,गीतकार,डांस मास्टर,फाइट मास्टरों की कड़ी निगरानी में उम्मीदवारों की  शूटिंग गुपचुप चल रही है. इसमें शॉर्ट फिल्में बनाई जा रही हैं . जिसमें प्रत्याशी कभी डिस्को करता है, कभी गुंडों से भारत माता की लाज बचाता है. टाइटल गीत में वह गाता हुआ पेड़ों के या जो भी उसका चुनाव चिन्ह है के चक्कर लगाता है. बहुत ही चमत्कारिक डाइलॉग रखे गए हैं. विरोधी दल के नेता का नाम लेकर हीरो (नेता) आँखें लाल करके ललकारता है पूरन चंद अब ये ताला (सत्ता का)  मैं तेरी ज़ेब से चाबी निकाल कर ही खोलुंगा

प्रमुख राजनैतिक दलों ने अपने अपने स्टूडियो सेटअप कर लिया हैं व कहानीकार, गीतकार तथा डाइलॉग लेखक दिन-रात नयी नयी सिचुएशन बना रहे हैं. धांसू डाइलॉग लिखे जा रहे हैं.

टी.वी. के अलग अलग चेनल खोल दिये गए हैं जिन पर 24 घंटे प्रत्याशियों द्वारा अभिनीत फिल्में व गाने दिखाये जायेंगे. डच और फ्रेंच कपनियों को इसके ठेके मिल गए हैं. एक बोफ़ोर्स को देशवासी रो रहे थे. अब इतना फोर्स आने वाला है कि रोने के लिए भी मल्टी-नेशनल, मैनेजमेंट ट्रेनीज़ उपलब्ध कराएंगे जो कि एम.बी.ए. होंगे और सिचुएशन के मुताबिक ऐसा रोएंगे..ऐसा रोएंगे कि आप का सोशल स्टेटस बढ़ जाएगा. वैसे भी आगे आने वाले समय में टी.वी. के चेनलों से फुर्सत ही कहाँ रह जाएगी कि आप बीवी-बच्चों और सियासत के बारे में कुछ सोचें. बस फास्ट फ़ूड खाइये और सीरियल्स देखिये.

(व्यंग संग्रह मिस रिश्वत 1995 से )


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