Ravi ki duniya

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Tuesday, February 2, 2010

सीपियाँ..


तारों की इन नज़रों को पहचान सखि !
चाँद की मुस्कराहट का अर्थ जान सखि !
कुछ सोच ! क्या तोड़ने के
लिए ही हैं मेरे अरमान सखि !
तारों की इन नज़रों को..
कुछ करो कि ये उम्र ठहर जाए
कुछ करो कि ये समय का चक्र ठहर जाए
हम-तुम रहें सदा
अब जैसे जवान सखि !
तारों कि इन नज़रों को...
इसलिये तो नहीं मेरे प्राण छटपटाए
इसलिये तो नहीं मैंने गीत बनाये
मैं तेरी याद में सुध-बुध  खो बैठूँ
तू गुनगुनाए किसी और का गान सखि !
तारों की इन नज़रों को पहचान सखि !
चाँद की मुस्कराहट का अर्थ जान सखि !
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जवाँ अरमानों की लाश मिली थी
बदनाम बस्ती से कल रात
कुल शहर में पूछताछ की है
अभी तक शिनाख्त न हो सकी.
कहाँ जायेगी सबको पता है
कब जायेगी सबको खबर है
मगर लाश किस घर से निकली
ये बात अभी तक दरियाफ्त न हो सकी.
कब से मुफ्त की पी रहा है ज़ाहिद
उसे खुद भी याद नहीं
खुदा का फ़ज़ल देखिये,कहे है
अभी तक आदत न हो सकी.
ज़माना कर रहा है उनके मुकद्दर पे रश्क
और वो खुद को बदनसीब कहते हैं
लाख कोशिश की मगर उन जैसी
किसी की किस्मत न हो सकी.
वाइज़ एक उम्र से बता रहा है
मेरी महबूब और खुदा में अन्तर
समझता हूँ, फिर भी महबूब की
शान में कोई गुस्ताखी न हो सकी.
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खुदा की नियामतें फीकी पड़ जाएँ
मेरा महबूब गर मेहरबा हो जाए
तुमसे संभले न संभलेंगे शिकवे मेरे
गर मेरे दिल के फकत इक जुबां हो जाए.
कब तक यूँ रोके रहोगे
मेरी हसरतों के सैलाब को
हर बार ज़ब्त किया
चलो तुम्हारी आरज़ू जवाँ हो जाए.
मेरे चाहने में न थी कमी कोई
मगर क्या करे कोई
यह ज़मीं
अगर आसमां हो जाए .

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