Ravi ki duniya

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Saturday, February 20, 2010

सेवा सतर्कता सप्ताह

( सेवा सप्ताह हो या सतर्कता सप्ताह ..ये सब 'रिचुअल' होते जा रहे हैं, ऊपर से आदेश आया है, बजट आया है बस इसलिये करना है. औचित्य ? वो बात आप क्यों पूछते हैं जो ....)


पहले सतयुग में कोई दिवस,सप्ताह या पखवाड़ा नहीं मनता था, कारण ? लोग बाग तीसों दिन बारह महीनों सदाचार से पेश आते थे. सेवा, भ्रातृभाव,ईमानदारी ,प्रेम,बलिदान सारे गुण जनता में खलबट्टे से कूट-कूट कर और सील-बट्टे से पीस पीस कर भरे रहते थे. (तब मिक्सी नहीं चली थी ) फिर समय बदला और इन सभी गुणों को द्विगुणित करने तथा जनता-जनार्दन को इनकी याद दिलाने को सभी तरह के दिवस,सप्ताह,पखवाड़े मनाये जाने लगे. पब्लिक मेमोरी वैसे ही शॉर्ट होती है और आजकल की पीत पत्रकारिता, चेनलों और ब्रेकिंग न्यूज़ में आते घोटालों की दनादन में पब्लिक मॉरल और मेमोरी दोनों फ़ैशन मॉडल्स के वस्त्रों की तरह हो गए हैं.
एक बार सतर्कता सप्ताह से दो-चार होना पड़ा. मैं कहता हूँ गश आ गया. कल्चरल शॉक कहना, उसे कम आँकना होगा. क्या तर्क,क्या कुतर्क ? बुरा न मानो सतर्कता सप्ताह है.
मैं स्टेशन पहुँचा तो कोई अफरातफरी नहीं थी सब बहुत ही अनुशासित था.प्लेटफ़ॉर्म चमक रहे थे. एनाऊसमेंट का एक एक शब्द स्पष्ट सुनाई दे रहा था और कानों में मिश्री सी घोल रहा था. जगह-जगह कूड़ेदान लगे थे जिन पर लिखा था 'यूज़ मी ' और तो और लोग कूड़ा वहीं डाल भी रहे थे. इंकवारी वाले आ-आ कर पूछ रहे थे 'मे आई हेल्प यू'. न कोई स्वेटर बुन रहा था. न आपस में बात कर रहे थे. यहाँ तक कि फोन पर भी बातें नहीं हो रहीं थी. कुली ने पूछा " महोदय क्या मैं आपकी सेवा कर सकता हूँ ?" मैंने दाम पूछे तो वह विनम्रता से दोहरा हो गया बोला " केवल एक रुपिया " मुझे और हैरानी होती उस से पहले ही वह बोल पड़ा "देश के बड़े-बड़े मंत्री अक्सर एक रुपये मासिक के वेतन पर पूरे देश का भार उठाते हैं क्या मैं इतना निकृष्ट हूँ कि आपकी एक अटेची भी नहीं उठा सकता. साहब ये सतर्कता सप्ताह है. हर एक खिड़की मेज और कमीज पर एक ही तख्ती लगी थी ' मे आई हेल्प यू ' इंकवारी यहाँ करें. वे बुला बुला कर लोगों की हेल्प कर रहे थे हाँ बाबूजी कहाँ जायेंगे ? हे माई ..हे भैया जी ...हाँ बाबा ...हाँ बेबी ..कहाँ जाओगी ?मैं टिकट खिड़की पर पहुँचा तो टिकट बाबू ने मुझ से कहा " गुड मॉर्निंग मे आई हेल्प यू सर " और मुझे एक बूके देकर ठंडा गरम पूछा. और मेरे न कहते कहते भी उसने पेप्सी खोल ही तो दी. मैं गदगद हो गया. मैंने सोचा यह मुझे शायद रेल्वे के कमर्शियल विभाग का या विजिलेंस विभाग का समझ रहा है . मैंने कहा भाई मैं रेल्वे में नहीं हूँ. वह मुस्कराया,लजाया, और शहद में डूबे शब्द आए "कैसी बातें कर रहे हैं. सर ! आप कस्टमर हैं, कंजूमर हैं, ग्राहक ईश्वर का रूप होता है. मुझे सेवा का अवसर दे कर आपने मुझ पर उपकार किया है आप इस 'टिकट कुटिया' पर पधारे. आपने हमारे भाग्य जगाये हैं. " मैंने उस से टिकट माँगा और आरक्षण पत्र दिया तो उसने पलक झपकते ही कन्फ़र्म रिज़र्वेशन मेरे हाथ पर रख दिया. गिन के पूरे पैसे भी लौटा दिये. न कोई नोट खुली ड्रॉअर में गिराया न और कोई हाथ की सफाई दिखाई. मुझे 'बेस्ट ऑफ जर्नी, कम अगेन ' भी कहा.
डिब्बे के बाहर टी.टी. और गार्ड 'गार्ड ऑफ ऑनर' की मुद्रा में खड़े थे. एक ने सेलुट मारा और दूसरा मुझे मेरी सीट तक एस्कोर्ट कर के ले गया. उस ने मुझे कहा कि किसी भी तकलीफ में मैं उसे याद करूँ और सेवा का मौका दे कर उसके लोक-परलोक को सुधारने में सहायक बनूँ .
राजभाषा वाले अलग इठलाते घूम रहे थे. साल में ऐसे मौकों के लिए ही वे अपनी सारी एनर्जी बचा कर रखते हैं. उन्होने बताया कि हिन्दी में पट्टिका लगा दी गयीं हैं, साथ ही द्विभाषी पोस्टर,रबर की सीलें , और जिन अधिकारियों की हिन्दी 'वीक' हैं उन्हे बढ़िया आर्ट पेपर पर छपी लघु पुस्तिकाए उपलब्ध करा दी गयी हैं. उदाहरण के तौर पर " धुम्रदंडिका सेवन वर्जित है " (अधकचरी,अपसंस्कृति के कतई ख़िलाफ़ हैं राजभाषा वाले) " कुली क्या ट्रेन का सिग्नल डाउन है " का राजभाषान्तर कुछ यूँ किया गया है " हे भारवाहक ! क्या लौहपथगामिनी आवक-जावक सूचक डंडा नतमस्तक हो गया है ?" यदि इसका उत्तर सुनने कोई रुके तो उसकी तो ट्रेन ही छूट जाएगी. " पर्वताउत्पन्न दुग्ध एवं शर्करा मिश्रित उत्तेजनायुक्त उष्ण पेय (अर्थात चाय ) प्रति प्याला एक रुपया मात्र.
लेखा विभाग की तरफ मुड़ते ही देखा कि सब को पूरा वेतन दिया जा रहा था. लेखा विभाग की एक टीम सभी कटौतियों और भत्तों को तसल्ली से मदवार समझा रहा थी. किसी को भी कल आने, फ़ॉर्म ट्रिप्लीकेट में भरने, अटेस्टेशन और विटनेस के चक्करों में नहीं डाल रहे थे. लोग जाते और काउंटर से नए करारे नोट लेकर हँसते,इठलाते लौटते. सभी फ़ाइलें,प्रस्ताव, बिना वेट के ही वैट होकर उसी दिन आ रहे थे. वे कह रहे थे हम तो सर्विस डिपाट हैं, सर्विस डिपाट अर्थात सेवा. कुछ शरारती तत्वों ने पीछे लेखा विभाग की संधि-विछेद करके बहुत बदनामी की है. अच्छे भले लेखा विभाग को ले...खा विभाग कर दिया. इसकी भरपाई करना ही अब उनका टार्गेट मिशन है.
कार्मिक विभाग में सब एक दूसरे की मदद को तत्पर थे.सुविधा पास बनवाने जाओ तो पास बाबू बिना फ़ॉर्म में मीन-मेख निकाले और परसों आना कहने की बजाय खड़े-खड़े पास वहीं के वहीं दे रहे थे. बिना स्कूल प्रमाणपत्रों अथवा मेडिकल सर्टिफिकेट माँगे क्वाटर रोकने की अनुमति दनादन ऑन-द-स्पॉट दी जा रही थी.सब ओर मंगलमय वातावरण था. सब ओर एक ही पुकार थी "आइये साहब ...आइये बाई ...वॉट केन आई डू फॉर यू.. प्लीज ..प्लीज ...गिव मी ए चान्स टू सर्व यू" सभी फ़ाइलों को अफसर 'सेम डे' निपटा रहे थे. बिना 'प्लीज स्पीक'... प्लीज डिसकस ...प्लीज लिंक रूल्स ...लिखे हुए. लोगों के थोक के भाव प्रोमोशन हो रहे थे. सभी केस आज के आज ऑन-द-स्पॉट हो रहे थे. किसी को भी कल ..परसों...अगले हफ्ते..अगले महीने आने को नहीं कहा जा रहा था. न ही उनका पिछला आवेदन और कागजों की ढेर सारी प्रतियां, थ्रू प्रोपर चेनल आने की झिड़की दी जा रही थी. सीनियारिटी के सभी विवाद लोक अदालत की तरह निपट रहे थे. दोनों पार्टियाँ हँसती-हँसती लौट रही थी.
ट्रेन में खाना इतना लज़ीज़ था की पूछो मत . बार बार आग्रह करके ..और लीजिये....नरम पूड़ी है...दही का एक कुल्हड़ तो लेना ही पड़ेगा ... स्वीट डिश थोड़ी और चलेगी ..कम केलोरी की है. चारों ओर यही मनुहार थी. ..ये आइस क्रीम तो आपने टेस्ट ही नहीं की ...पैक करा दूँ .. वेटर ने टिप के लिए अपनी ओर से 100-50 के नोट डालकर सौंफ की प्लेट भी नहीं घुमाई थी.


सतर्कता विभाग का एक निरीक्षक टी.टी. से बड़ी ही विनम्रता से पेश आ रहा था. " भाई साहब, मेरा सुविधा पास नंबर नोट कर लें मेरा आरक्षण किस बर्थ का है कृपया देख कर बतायें.खाना वो घर से कटोरदान में साथ लाये थे. ताज्जुब की बात यह है कि उनका कहना था "बाहर" का खाना उन्हे माफिक नहीं पड़ता है.
उन्होने वेटर का चाय-पानी का बिल भी पूरा पूरा अदा किया. पैसे हाथ में लेते वेटर काँप रहा था. और हाथ जोड़े बहुत देर तक खड़ा रहा. उसकी आँखों से आँसू टप-टप गिर रहे थे. पता नहीं क्यों वह एक ही रट लगाये था " मैं बाल-बच्चेदार आदमी हूँ साब कोई गलती हो गयी हो तो माफ करें ..आगे नहीं करूँगा."
सायक्लोस्टाइल और फोटोस्टेट वाले न बीड़ी पी रहे थे न खैनी खा रहे थे. बस दनादन मशीन चला रहे थे और उनका हाथ ही न रुकता था. ये वो ही फोटोस्टेट वाला था जो अगर मशीन ठीक हो तो खुद बीमार हो जाता था और खुद ठीक हो तो मशीन बीमार. वह बिना मान-मनौवल के मशीन को हाथ ही न लगाता था दो-चार हफ्ते की देरी को वह 'डिले' नहीं मानता था.


जीवन में सभी अच्छी बातों का अंत आता है. और लो जी पलक झपकते ही सतर्कता सप्ताह अभी शुरू भी न हुआ था कि समाप्त हो गया. सोमवार को स्टेशन पर वापस अफरातफरी थी. कोई सीट पर न था. था तो फोन पर उसकी बातें ख़त्म होने को ही नहीं आती थी. एक बाबू से कुछ पूछना चाहा तो उसने आँख तरेर कर बिना बोले एक तख्ती की ओर इशारा किया जिस पर लिखा था 'नो इंकवारी' कुली यात्रियों से सामान लगभग झपट ही रहे थे और पैसों को लेकर मरने-मारने पर उतारू थे. जगह-जगह गंदगी के ढेर थे. कुत्ते,भिखारी, झपटमार, फकीर और गाय प्लेटफार्म पर ऐसे बेफिक्री से टहल रहे थे जैसे कई पीढ़ियों से यहीं के डोमिसाइल हों.
लेखा विभाग ने सभी फ़ाइलें लौटा दी थी और पिछले सभी संदर्भ मूल प्रति में लिंक करने तथा अगले-पिछले दस बरस का पूरा विवरण माँगा था.
कार्मिक विभाग का एक पास बाबू एक रिटायर्ड कर्मचारी से उलझा हुआ था और उसके जीवित होने का सबूत माँग रहा था. दूसरी ओर बाबू लोग यह कह कर कि आवेदन मिले ही नहीं जो भी आ रहे थे उनसे पिछले संदर्भ की प्रतियां माँग रहे थे किसी ने आवेदन की रसीद (पावती) मांगी तो उसने आवेदन हे फेंक दिया और ताकीद की कि वह " अब तो डाक से ही भेजे". बाकी सबको यह कह कर लौटा दिया गया कि तुम्हारे केस ऊपर गए हैं.


सतर्कता विभागवाला टी.टी. को घुड़का रहा था " क्यों बे तू जानता नहीं मैं कौन हूँ " टी.टी. घिघिया रहा था "हुज़ूर चार्ट देख लें एक भी बर्थ खाली नहीं है. मेरा कैश गिन लें न शॉर्ट है न एक्सेस" सतर्कता निरीक्षक उसकी एक न मान रहा था. वह सतर्क था और टी.टी. के सभी तर्क ताक पर रख रहा था. " बेटा तू अभी जानता नहीं है , तेरा 'बिज़्लंस' से कभी पाला नहीं पड़ा है "



हमें आती है बर्थ लेने की आर्ट
तू अपने पास रख अपना ये चार्ट


" बर्थ तो यूँ निकलती है " उसने हाथ झटक कर चुटकी बजाते हुए कहा. "जानता नहीं हम बिज़्लंस से हैं. ऐसा फंसाएगे कि नौकरी, पिंसन और ग्रैचुइटी सब से हाथ धो बैठेगा. कहे तो एग्रीड लिस्ट में डाल दें" . "साब ये एग्रीड लिस्ट क्या होती है ?" "अरे इतना भी नहीं जानता , जो पार्टी एगरी न करे उसे हम एगरी कराने को हम एग्रीड लिस्ट में डालने को एगरी हो जायें. चल तू नहीं समझेगा. हमें क्या पता नहीं है कि तुम लोग हमें मक्खी-मच्छर कह कर आपस में संबोधित करते हो. अभी उस दिन की बात है एक टी.टी. अपने साथ दूर के, पास के रिश्तेदारों के साथ ट्रेन में चढ़ा और टी.टी. से पूछने लगा कि ट्रेन में मक्खी -मच्छर तो नहीं हैं. बच्चू मच्छर जानता है न . काट ले तो मलेरिया ..फिलेरिया..क्या नहीं हो सकता फाल्सिपोरम का तो तूने नाम भी न सुना होगा. चल अब जल्दी से एक केबिन खाली करा और चिकन ..चल चिकन छोड़ ...आजकल बर्ड फ़्लू चल रहा है. मटन और फिश फ्राई भिजवा दे. सोडा और ग्लास भी. ज्यादा न नुकुर की तो तेरा ये चार्ट ज़ब्त ...कचहरी बंद ...मुक़दमा ख़ारिज..."
 
दूसरे दृश्य में सतर्कता निरीक्षक, निरीह रक्षक (चौकीदार) से उलझा हुआ था.क्या हमसे हमारा डेजिंग्नेशन पूछ रहा है. इतना काफी नहीं है की हम यम हैं. 'बिज्लंस' से हैं भाई. बात समझ में आई कि नहीं. नहीं आई तो चल अपने चादरें,तकिये, तौलिये गिनवा.


आज न छोड़ेंगे ..हरीप्पा



दृश्य तीन : निरीक्षक उत्तर पुस्तिका के पृष्ठ उलट फेरता उछल पड़ा.देखिये सर दस में से दस. ये क्या धांधलेबाजी है. सरासर अंधेरगर्दी है. भला कभी दस में से दस भी किसी के आते सुने हैं. वाह जी वाह आपने तो लूट मचा रखी है. वो भी हमारे रहते. अधिकारी ने कहा मुझे लगा प्रश्न का बहुत ही अच्छा उत्तर दिया है इसलिये दस में से दस दिये. भई वाह तुम्हें लगा हा..हा..हा.. और तुम्हें क्या क्या लगता है. ये तुम्हें ऐसा लगे इस के लिए कितने लगे ? आप क्या बात कर रहे हैं. वाह जी वाह अब हमारी बात ही समझ नहीं लग रही है. हम पूछ रहे हैं कि दस में से दस देने के तुमने कितने लिए, दस हज़ार, दस लाख. ये क्या बकवास है. यही तो जानना हमारी ड्यूटी है कि ये क्या बकवास है. भला कभी किसी के दस में से दस नंबर सुने हैं. जपत करो जी सब कॉपी ..किताबें, फ़ाइलें. सीजर मीमों दो और इसे जूलियस सीजर बना दो.




दृश्य चार : भई ये टेंडर कमेटी में चौथा मेंबर कौन है ? ये विजिलेन्स से हैं. ताकि बाद में हमारा चौथा न करे. आदेश आया है की सभी टेंडर कमेटी,सलेक्शन कमेटी, डी.पी.सी. वर्क्स कमेटी, हाउसिंग कमेटी,प्रेम, जे.सी.एम. पर्चेज कमेटी, महिला समिति, पी.एन.एम. नॉन-पेमेंट मीटिंग में विजिलेन्स का एक मेंबर कंपलसरी रहेगा.इसके कई फायदे हैं, बाद में कोई झंझट ही नहीं. चलो जिसे 'एल-वन' करना है सब यहीं भ्रातृ-भाव से निपटा लिया जायेगा. बाद की सिर दर्दी,पूछताछ से एक झटके में ही मुक्ति मिल जाएगी. चलो अब हम शपथ ले लें.


हे मैंने कसम ली ..


हे तूने कसम ली ..


नहीं होंगे जुदा..


हम...तुम....


ट्रेन में खाना ठंडा और बासी था.वेटर ने पूछने पर बताया "यही है, खाना है तो खाओ". दही खट्टी थी और अचार मीठा, चपाती पुराने टायर के रबर के तरह थीं.तथा दाल में दाल नहीं थी पर अन्य बहुत सी वस्तुएं थीं. सलाद के नाम पर पिलपिले प्याज की जड़ वाली गाँठे ही गाँठे थी. गाँठे जो जीवन के हर क्षेत्र में लगती ही जा रही हैं और सुलटने में ही नहीं आ रही हैं. वेटर बता रहा था "भई आप लोग 'कष्टमर' हैं. कष्ट हम देंगे, बाकी आपका" मुझे मशहूर शेर याद हो आया


महफिल उनकी, साकी उनका


आँखें मेरी, बाकी उनका


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