पहले ही क्यूँ नहीं इस रेस को 1.6 कि.मी. रखा गया ? ये 10 कि.मी. किसने और कब निर्धारित किया ? पुलिस के लिए भर्ती हो
रही है या चोरों के लिए। कांस्टेबल को आपका माल लेकर नहीं भाग छूटना है। यह रेस का
चक्कर बहुत पुरातन और आउटडेटेड है। अब चोर पैदल नहीं भागते। वो बाइक से आते हैं, कार से आते है, कितनी बार पढ़ने में
आता है कि फ्लाइट से आते-जाते हैं। आपको
बाइक की रेस करानी चाहिए, आड़ी-तिरछी बाइक चलाना जो जानता हो। स्पोर्ट्स-बाइक, सुपर-बाइक के गियर
सिस्टम से वाकिफ है कि नहीं। उसी तरह कार रेस में माहिर होना चाहिए। भई आप
कॉन्स्टेबल के लिए भर्ती कर रहे हैं या अगले जेम्स बॉन्ड का चयन कर रहे हैं।
अब क्राइम बहुत हाई-टैक हो गया है। यह
साइबर क्राइम का ज़माना है आप कुत्ता घसीटी में लगे हैं। अब अपराधी बहुत
सोफिस्टीकेटेड हो गए हैं। वो राजकुमार साब का डाॅयलाॅग सुने हैं कि नहीं “जानी !
हम आँख से सुरमा नहीं चुराते, हम पूरी आँख ही चुरा लेते हैं” तो आजकल बिना आउटडोर आए ही पूरा का पूरा खाता
साफ किया जा सकता है। आप इनका रिटन टेस्ट लीजिये। आप इनको लाइव-सिचुएशन दीजिये, आप इनका प्रेक्टिकल
लीजिये। ये क्या कि आव देखा न ताव दौड़ा दिया बेचारों को। आपका क्या ख्याल है ? नौकरी लग जाने के बाद
ये ऐसे दौड़ेंगे ? दौड़ पाएंगे ?
खंजर थामने के
काबिल नहीं
ये बाजू हमारे आज़माये हुए
हैं
एक दफ्तर
में अगलों ने क्लास फोर के सलेक्शन में एक बोरी मँगवा कर रखी हुई थी हरेक से उसको
उठाने को कह रहे थे। एक अन्य अधिकारी ने देखा तो बरबस ही कह उठा “अभी तो आप
बोरी-बोरा जो कहोगे, सब उठा लेगा, एक बार नौकरी लग जाये फिर
उस से झाड़न भी नहीं उठने का। एक क्लास फोर की लिखित परीक्षा में प्रश्न पूछा गया
‘गांधी जी का राजनैतिक गुरु कौन था?’ इसका कर्मचारी यूनियन ने
बहुत ऑबजेक्शन लिया उनका कहना था “साब ! आप इनसे मजदूरी करवाओगे, फांवड़ा-गैती
चलवाओगे या राजनीति करवाओगे? दरअसल यह सब इसलिए होता है कि एक रिक्ति के लिए
500 उम्मीदवार आवेदन देते हैं। अब कोई तो कसौटी रखनी ही पड़ेगी।
लिखित परीक्षा के साथ ट्रेजेडी यह है कि कितना ही टाइट बनाओ 10 में से 10 परीक्षा में
पेपर लीक कर जाता है। अब आप ही बताओ क्या किया जाये ? दौड़ाओ नहीं। कठिन
पेपर मत बनाओ। फिर ? उम्मीदवार की हाइट-वेट के आधार पर सलेक्ट कर
लें ? या काले-काले ले लें और
गोरियां नू दफा करें ! गरीब को लेने लगोगे तो आपके पास इतने गरीब आ जाएँगे
अपने-अपने सार्टिफिकेट लेकर कि आपको लगेगा पूरा देश ही गरीब हो गया है। इस प्राॅसस
में सर्टिफिकेट बनाने वाले बाबू की गरीबी जरूर हट जाएगी। सब तरह के सर्टिफिकेट अब सुलभ
शौचालय से भी अधिक सुलभ हैं। आप कुछ भी करो पर बेचारे कॉन्स्टेबल उम्मीदवारों को
दौड़ाओ मत। दौड़ा भी रहे हो तो सिर्फ क्वालिफ़ाइंग रखो। वे पहले ही कुपोषण के शिकार
हैं, किस के घर में क्या समस्या चल रही है। दो जून की रोटी नसीब
हो रही है कि नहीं ? उसने कब से पेट भर खाना खाया है, क्या खबर ?
आप गरीब
को दस किलोमीटर दौड़ा दिये। उसके लिए तो ये ज़िंदगी की दौड़ साबित हो रही है और इसी प्रपंच में एक दर्जन उम्मीदवार चल बसे हैं और ये पहली
बार नहीं हुआ। कुछ करें सर जी ! भले आपके पहले ही उस से इंडेमिनिटी बॉन्ड साइन
कराने से कि आपको ट्रायल के दौरान चोट लगने / मृत्यु होने पर आप ज़िम्मेवार नहीं
अपना दामन बचा लेते है पर क्या अपनी आत्मा बचा पाते हैं ?
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