अब आप ही बताइये क्या आपने कभी
कल्पना की थी कि ऐसे दिन भी आएंगे जहां न कोई कोचिंग, न कोई पढ़ाई-लिखाई, सीधे आई.पी.एस. किसी
फिल्म में संवाद था “न वकील, न जज, सीधे-सीधे फैसला और मुकदमा खारिज” सच तो यह है की यदि
आप आई.पी.एस. का सोचेंगे तो आपको कमसेकम ग्रेजुएशन तक पढ़ना होगा। पढ़ाई में बहुत
अच्छा होना होगा। फिर अपनी सेहत का बहुत ध्यान रखना होगा। उसके बाद लाखों रुपये
लगा कर कोचिंग लेनी पड़ेगी। वहाँ अलग परिश्रम करना ही करना है। उसके बाद चयन की न
जाने कितनी दुरूह सीढ़ियाँ प्रेलिम, मेन, इंटरव्यू,
मेडिकल, पार करते हुए जाकर कहीं ये सिद्धि
प्राप्त होती है। 'रांड, सांड, सीढ़ी, सन्यासी। इनसे बचे तो सेवे काशी’।
पिछले
कई सालों से असल में भर्ती बंद प्रायः है। जहां छिटपुट-छिटपुट भर्ती हो भी रही है
वहाँ रिक्ति इतनी कम हैं कि अब अनुपात लगभग 1:1000 का है। बाकी जो बचा तो लेटरल
एंट्री मार गई। चयन के बहुत सारे तरीके होते हैं। लेटेस्ट थी लेटरल एंट्री। लेकिन
दो लाख में जब आई.पी.एस. का मामला प्रकाश में आया तो एक और नई प्रणाली चल पड़ी है
इसको कहते हैं पैराशूट एंट्री। यह लेटरल एंट्री के बाद का सोपान है।
मैं सोच रहा हूँ कि इस चयन प्रणाली को
मजबूत बनाया जाये। ताकि घर-घर, गाँव-गाँव से आई.पी.एस.
निकल सकें। वैसे देखा जाये तो दो लाख क्या होता है। बेंक से आसान किश्तों पर अथवा
इंटरेस्ट फ्री लोन मिल सकता है। एक पोस्टिंग और सारे लोन साफ। वर्दी पहनिए और
पिस्टल/तमंचा खोंसिए और काम पर चलिये। हम कितना सुनते हैं कि पुलिस बन कर रास्ते
में आगे डर दिखा कर महिला से गहने उतरवा लिए। अब पता नहीं ये कौन से वाले पुलिस
वाले हैं ?
ऐसे लोग बहुत बढ़िया ‘रोल-मॉडल’
साबित हो रहे हैं। पुलिस में कैरियर के प्रति समाज में जागृति ला रहे हैं।
स्पोर्ट्स वाले बहुधा सुदूर ग्रामीण इलाके में जाकर रुरल प्रतिभाओं का चयन करते
हैं बोले तो कैच देम यंग। उसी तरह आई.पी.एस. के लिए हमें दूर-दराज इलाकों में जाकर
आई.पी.एस. बनाए जाएँ। जिस गाँव से ‘बल्क’ भर्ती हो वहाँ कुछ डिस्काउंट दिया जा सकता है बोले
तो कैश-बैक।
लोगों की ‘माई एम्बीशन इन लाइफ’ होती है पुलिस में
जाना। सबके अपने अपने कारण होते हैं। उन्हें कुछ तूफानी करना होता है ज़िंदगी में।
अब वक़्त आ गया है कि पी.एस.सी. का तुरंत गठन किया जाये। नहीं समझे ? पैराशूट सर्विस कमीशन। बाद में आप समुचित ट्रेनिंग देते
रहना। यकीन जानिए कोई बहुत ज्यादा फर्क न पाएंगे। हमारे पास टर्निंग सेंटर में ऐसे-ऐसे
‘उस्ताद’ ट्रेनिंग इंचार्ज हैं जो रंगरूट को बंदा बना देते हैं। बाकी तो नौकरी सब सिखा
देती है। वो कहते हैं न कुर्सी सब सिखा देती है। वैसे ही वर्दी सब सिखा देगी। ये
भी लाठी भाँज पाएंगे,
एक्स-वाई सिक्यूरिटी के लिए मुस्तैद
रहेंगे, एन्काउंटर कर पाएंगे। ड्रग्स रख कर
गिरफ्तार कर पाएंगे। और क्या बच्चे की जान लोगे ?
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