Ravi ki duniya

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Friday, September 20, 2024

व्यंग्य: रेलवे स्टेशन पर ठौर नहीं

 


              एक वरिष्ठतम रिटायर्ड रेलवे डॉक्टर अपनी डॉक्टर पत्नी के साथ नई दिल्ली स्टेशन पर अपनी ट्रेन के आने से दो घंटे पहले पहुँच गए। दरअसल रिटायरमेंट के बाद आपके पास वो अमला नहीं होता जो आपको स्टेशन पहुंचाता है, सीट तक एस्कॉर्ट कर के ले जाता है। टी.टी. को ब्रीफ़ करता है, कोच अटेंडेंट को बताता है आदि आदि। अतः रिटायर्ड लोग यह सब जानते हुए ट्रेन आने से पर्याप्त समय रहते पहुँच जाते हैं। तो जब हमारे ये डॉक्टर दंपति प्लेटफॉर्म पहुंचे तो उन्होने देखा कि पहले वाले वेटिंग रूम गायब हैं। कहीं कोई ऐसी जगह नही है जहा यह दंपति अपने दो घंटे गुजार सकते। तभी उन्हे बताया गया कि वेटिंग रूम अब वेटिंग रूम नहीं लॉउंज बन गए हैं। इनका अब वी.आई.पी. लॉउंज नामकरण हो गया है।

 

 

        जब डॉक्टर दंपति खुश-खुश इस तथाकथित वी.आई.पी. लॉउंज के द्वार पर पहुंचे। वहाँ डेस्क पर स्थित अनुबंध (ठेके) पर लगी महिलाकर्मी ने उन से दनादन सवाल पूछे कि वे कहाँ से आए हैं ? कहाँ जाएँगे ? टिकट न. क्या है ? आदि आदि फिर उसने ठहरने की/वेट करने की रेट लिस्ट बताई। उनको सौ रुपये प्रति व्यक्ति प्रति घंटे देने होंगे और जी.एस.टी. अलग से। तिस पर दंपति ने बताया कि वे रेलवे के रिटायर्ड वरिष्ठ डॉक्टर रहे हैं, बोले तो सी. एम.डी. किन्तु इतना सब बताने के बाद भी वह काऊंटर-महिला प्रभावित नहीं हुई। उसने दो टूक कहा आपको वेटिंग लॉउंज में रुकना है तो इस दर से फीस देनी ही होगी अन्यथा आप एंटर नहीं कर सकते। डॉक्टर दंपति भी अड़े रहे। आखिर दुनियाँ भर की उनकी आई.डी. की जांच की गई। इतनी तो डॉक्टर साब अपने मरीज की नहीं कराते होंगे। उसने अनमने भाव से उनको अंदर आने दिया। अंदर पानी और चाय-कॉफी आपको उनके काऊंटर से ही खरीदनी थी। दूसरे शब्दों में घर का खाना या बाहर के खाने को अंदर लाने की अनुमति नहीं है। उनके रेट तो आपको पता ही हैं।

 

              जब वो जाने लगे तो उनको ठहरने का बिल थमा दिया गया जी.एस.टी. लगा कर। जब उन्होने विरोध किया और आनाकानी की तो तीन-चार बाउंसर टाइप लड़के आ गए और उन्हें घेर लिया। और उनसे पैसे लेकर ही उन्हें छोड़ा।

 

          इससे पता चलता है कि रेलवे स्टेशन अब रेलवे वालों का नहीं। आप से ज्यादा से ज्यादा पैसे कैसे वसूल किया जाये इस पर नित नई योजनाएं बनाते रहते हैं। जिस दिन बस हो जाएगा उस दिन वह वेटिंग लाउंज खत्म  कर के कोई हाई-फाई रेस्टोरेन्ट खुल जाएगा। यूं अभी भी यह लॉउंज किसी रेस्टोरेन्ट से कम नहीं। एयरपोर्ट पर जिस तरह आपके वाहन को फुर्ती से आपको  उतार कर नौ दो ग्यारह होना पड़ता है अन्यथा आपको पार्किंग फीस में ही इतनी धनराशि देनी पड़ सकती है जितनी आपने अपनी हवाई यात्रा की टिकट खरीदते समय दी थी।

                

             मेरा देश बदल नहीं रहा है ! बदल गया है और इतनी तेजी से इतना बदल गया है कि पहचान में नहीं आ रहा है।   

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