Ravi ki duniya

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Wednesday, September 11, 2024

व्यंग्य: गंगाजल का प्रेशर लो , तीन हज़ार परिवार परेशान

 


            बरसों तक हमें यह कह-कह कर बहलाया गया कि जल्द ही आपका भाग्य खुलने वाला है। आपका गंगाजल आपकी ड्योड़ी पर ही आपको मिलेगा। अब आपको ये जमुना और ताल-तलैया का पानी पीने की कोई ज़रूरत नहीं। 


             हम सब खुशी के मारे किलकारियाँ भरने लगे। गंगा मैय्या हमारी कुटिया में पधार रहीं हैं। कहाँ तो लोग मृत्यु के समीप होते हैं तब बूंद दो बूंद गंगाजल को तरसते हैं और यहाँ हमारे जीते जी ही गंगा हमारे आँगन में !  खूब पियो ! नहाओ ! छपाक-छपाक करो। वांदा नहीं। मगर हमारी खुशी शॉर्ट लिव्ड बनके रह गयी पहले तो इतनी दिलासा दी। अब कह रहे हैं कि प्रेशर लो है अब हम क्या करें। हो न हो हमारी सोसाइटी में ही कोई पापी रहता है जो गंगा मैय्या अपना प्रेशर लो कर दी हैं। गंगा मैय्या आप तो अपने पूरे रौद्र रूप में आइये और पापियों का नरसंहार कीजिये। ये कौन है जिसकी वजह से आप झिझक रही हैं और अपने फुल प्रेशर में नहीं आ रही हैं। अखबार में आया है कि तीन हज़ार परिवार परेशान हैं। हे माते ! तीन हज़ार परिवार का अर्थ है लगभग 15 हज़ार परिवार करुण क्रंदन कर रहे हैं आपके वास्ते। मैय्या जल्दी आओ। ये 'लो-हाई' हम नहीं जानते। हम तो इस इलाके में फ्लैट ही इसलिए खरीदे कि प्रातः नित-प्रतिदिन आपके दर्शन हुआ करेंगे। आचमन आप के पवित्र जल से ही हुआ करेगा।

 

         देखिए माते ! ये जो बोतल में भर-भर के पानी बेच रहे हैं। सब नकली है। आपके नाम पर कितना छल-प्रपंच हो रहा है आप को खबर भी नहीं। जब इन पापियों की अस्थियां  विसर्जन को आपके पास आयें, आप देख लेना। आपको स्वच्छ करने को इतने फंड आबंटित हुए हैं, इतने फंड आबंटित हुए हैं कि आप अंदाज़ नहीं लगा सकतीं और दुष्ट पापी आपके फंड के नाम से अपनी-अपनी पॉलिटिक्स चमका रहे हैं। आप भी कब तक इनके पाप धोएंगी। अभी तो तीन हज़ार परिवार परेशान हैं एक समय आयेगा जब इनको अपनी गलती का एहसास होगा कि इन्होंने आपको केवल और केवल लिप-सर्विस दी है। फिल्मों में, समाज में आपकी तारीफ में सैकड़ों गीत हैं मगर आपकी खोज खबर लेने वाले कोई नहीं। आप जस की तस हैं। मैं समझ सकता हूँ आप कितनी परेशान होगी।

 

इन्सानों ने आपके स्वरूप को गंदा करने में कोई कोर-कसर नहीं उठा रखी है। कैमिकल फैक्ट्री हो या शहर की समस्त गंदगी, क्या जीवित क्या मृत सब आपको गंदा करने में लगे हैं। कहाँ गए वो दिन जब लोग आपकी कसम उठाते थे। घर में पूजा गृह में आपको रखते थे। आपकी कुछ छींटे ही अपवित्र को पवित्र करने को पर्याप्त होते थे। अब तो लोग कसम झूठी खाते हैं, गंगा जल के नाम पर सादा दूषित पानी बेच रहे हैं। अब ये जो 'प्रेशर लो' हुआ है इसमें भी उन्होने अपनी कमाई का कोई न कोई साधन ढूंढ लेना है। आपका प्रेशर 'लो' नहीं हुआ इन लोगों ने आपकी प्रेस्टीज़ 'लो' की है। आगे आप देख लेना ! इनको मुक्ति नहीं मिलनी चाहिए ! इन्हें भी आप 'लो' से 'लो' कीटाणु बनाने का उपक्रम करना।

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